रविवार, 19 सितंबर 2021

कवि प्रदीप के अमर गीत प्रस्तुति : वागर्थ

समूह वागर्थ की सितम्बर माह की तालिका के अनुसार आज वागर्थ में केन्द्रीय पोस्ट का दिन है वागर्थ आज की केन्द्रीय पोस्ट कवि प्रदीप के अमर गीतों पर केन्द्रित कर अपने पाठकों को इन गीतों के वैशिष्ट्य से जोड़ता है।
आज भी कवि प्रदीप अपने चाहने वालों के दिलों में राज करते हैं ।
    आइए पढ़ते हैं कवि प्रदीप के अमर गीत

     *
वागर्थ फिल्मी गीतों और गीतकारों के योगदान को समय समय पर अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता रहेगा।
 

प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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1

पिंजरे के पंछी रे, तेरा दर्द ना जाने कोए

कह ना सके तू, अपनी कहानी
तेरी भी पंछी, क्या ज़िंदगानी रे
विधि ने तेरी कथा लिखी आँसू में कलम डुबोए
तेरा दर्द ना जाने कोए

चुपके चुपके, रोने वाले
रखना छुपाके, दिल के छाले रे
ये पत्थर का देश हैं पगले, यहाँ कोई ना तेरा होय
तेरा दर्द ना जाने कोए

2

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान
सूरज न बदला चाँद न बदला न बदला रे आसमान
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान

राम के भक्त रहीम के बन्दे
रचते आज फरेब के फंदे
कितने ये मक्कार ये अंधे
देख लिए इनके भी फंदे
इन्ही की काली करतूतों से
बना ये मुल्क मसान
कितना बदल गया इंसान

क्यूँ ये नर आपस में झगड़ते
काहे लाखों घर ये उजड़ते
क्यूँ ये बच्चे माँ से बिछड़ते
फूट फूट कर क्यूँ रो
ते प्यारे बापू के प्राण
कितना बदल गया इंसान
कितना बदल गया इंसान

3

हमने जग की अजब तस्वीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं
ये प्रभु की अद्भुत जागीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं

हमे हँसते मुखड़े चार मिले
दुखियारे चेहरे हज़ार मिले
यहाँ सुख से सौ गुनी पीड़ देखी
एक हँसता है दस रोते हैं
हमने जग की अजब तस्वीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं

दो एक सुखी यहाँ लाखों में
आंसू है करोड़ों आँखों में
हमने गिन गिन हर तकदीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं
हमने जग की अजब तस्वीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं

कुछ बोल प्रभु ये क्या माया
तेरा खेल समझ में ना आया
हमने देखे महल रे कुटीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं
हमने जग की अजब तस्वीर देखी
एक हँसता है दस रोते हैं

4

तूने खूब रचा भगवान्
खिलौना माटी का
इसे कोई ना सका पहचान
खिलौना माटी का

वाह रे तेरा इंसान विधाता
इसका भेद समझ में ना आता
धरती से है इसका नाता
मगर हवा में किले बनाता
अपनी उलझन आप बढाता
होता खुद हैरान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का

कभी तो एकदम रिश्ता जोड़े
कभी अचानक ममता तोड़े
होके पराया मुखड़ा मोड़े
अपनों को मझधार में छोड़े
सूरज की खोज में इत उत दौड़े
कितना ये नादान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का

5

चल अकेला चल अकेला चल अकेला
तेरा मेल पीछे छूटा राही चल अकेला

हजारों मील लम्बे रस्ते तुझको बुलाते
यहाँ दुखड़े सहने के वास्ते तुझको बुलाते
है कौन सा वो इन्सान यहाँ पे
जिसने दुःख ना झेला
चल अकेला चल अकेला चल अकेला...

तेरा कोई साथ न दे तो
तू खुद से प्रीत जोड़ ले
बिचौना धरती को करके
अरे आकाश ओढ़ ले
पूरा खेल अभी जीवन का
तूने कहाँ है खेला
चल अकेला चल अकेला चल अकेला
तेरा मेल पीछे छूटा राही चल अकेला

6

तुमको तो करोड़ो साल हुए बतलाओ गगन गंभीर
इस प्यारी प्यारी दुनिया में क्यूँ अलग अलग तक़दीर

मिलते हैं किसी को बिन मांगे ही मोती
कोई मांगे लेकिन भीख नसीब ना होती
क्या सोच के है मालिक ने रची ये दो रंगी तस्वीर
इस प्यारी प्यारी दुनिया में क्यूँ अलग अलग तक़दीर

कुछ किस्मत वाले सुख से अमृत पीते
कुछ दिल पर रख कर पत्थर जीवन जीते
कहीं मन पंछी आकाश उड़े कहीं पाँव पड़ी ज़ंजीर
इस प्यारी प्यारी दुनिया में क्यूँ अलग अलग तक़दीर

7

चलो चलें मन सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें मन...

हो रहे इशारे रेशमी घटाओं में
चलो चलें मन...

आओ चलें हम एक साथ वहां
दुःख ना जहाँ कोई गम ना जहाँ
आज है निमंत्रण सन सन हवाओं में
चलो चलें मन...

रहना मेरे संग में हर दम
ऐसा ना हो के बिछड़ जायें हम
घूमना है हमको दूर की दिशाओं में

चलो चलें मन सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें मन...

8

सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते
कड़वे मीठे फल करम के यहाँ सभी पाते
कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते अजब समय के पाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव

क्या खुशियाँ क्या गम, यह सब मिलते बारी बारी
मालिक की मर्ज़ी पे चलती यह दुनिया सारी
ध्यान से खेना जग नदिया में बन्दे अपनी नाव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव

परिच
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कवि प्रदीप का मूल नाम 'रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी' था। उनका जन्म मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में बड़नगर नामक स्थान में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है" ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा.

पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे. उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में "चल चल रे नौजवान", फिल्म जागृति (1954) में "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं", "दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल" और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में "यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां" है। इस गीत को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी था।

आपने हिंदी फ़िल्मों के लिये कई यादगार गीत लिखे। भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।

कवि प्रदीप कुमार के सम्‍मान में मध्‍यप्रदेश सरकार के कला एवं संस्‍कृति विभाग ने कवि प्रदीप राष्‍ट्रीय सम्‍मान की स्‍थापना वर्ष 2013 में  की ।[मृत कड़ियाँ] पहला कवि प्रदीप राष्‍ट्रीय सम्‍मान पुरस्‍कार उत्‍तर प्रदेश के प्रसिध्‍द गीतकार गोपालदास नीरज को दिया गया।

आज की सामग्री 
सन्दर्भ
कविताकोष और गूगल से साभार ली गयी है।