बाल
आया भालू काला
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प्रस्तुति
मनोज जैन
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एक रोज़ गुमटी पर आकर
बोला भालू काला
चौरसिया जी पान बना दो
हमें बनारस वाला
इसमें नहीं डालना बिल्कुल
जर्दा और सुपारी
सेवन से हो जाता इसके
अपना तो सर भारी
ऊपर से दस बीस डालना
लाल-लाल-से दाने
कत्था भले लगा दो ज्यादा
दिन भर होंठ रचाने
तेज करो गुलकंद स्वाद में
उम्दा लगे निराला
सुनो बाँध दो चार एक है
मुझे यहीं पर खाना
कुछ भी करना ध्यान रहे पर
चूना नहीं लगाना
इन्तज़ार करता हूँ कहकर
मन ही मन गुर्राया
ठुमक ठुमक कर मन ही मन में
प्यारा गाना गाया
खुश हो जाता टोपी छूकर
कभी पकड़कर माला
देख भयानक भारी भालू
चौरसिया घबराएँ
मन ही मन बजरंगबली को
और राम को ध्याएँ
देर हो गई बहुत आज घर
मुझको जल्दी जाना
चौरसिया ने गढ़ा अचानक
मन में एक बहाना
बत्ती गुलकर जैसे-तैसे
भालू जी को टाला।
©मनोज जैन
चित्र साभार गूगल
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