कीर्तिशेष महेश अनघ जी का एक नवगीत
राजी राजी या नाराजी
राज करेंगे राजा जी ।
जब से होश सम्हाला हमने
इतना ही संदेश मिला है।
मंदिर मसजिद बैसाखी हैं
सबका मालिक लाल किला है।
चाहे छाती जोड़ें चाहे
लाठी भांजें बामन-काजी।
राज करेंगे राजा जी।
चाहे जिस पर मुहर लगा दें
इतनी है हमको आजादी ।
उनको वोट मिलेंगे दो सौ
पौने दो सौ की आबादी ।
टका सेर मिलते मतदाता
महँगी गाजर मूली भाजी ।
राज करेंगे राजा जी ।
वे बोलेंगे सूरज निकला
हम बोलेंगे हाँजी-हाँजी ।
उनकी छड़ी चूमते रहना
हम चिड़ियाघर के चिम्पांजी।
पानीदार अगर रहना हो
दिल्ली से निकलें गंगाजी।
राज करेंगे राजा जी ।
राजा जी का राज अचल हो
ब्रत रखते हम दस दिन प्यासे।
दस दिन अनशन दस दिन फाके
बाकी ग्यारह दिन उपासे ।
यही करेंगे पोते अपने
करते रहे यही दादा जी।
राज करेंगे राजा जी ।