रविवार, 11 जून 2023

डॉ.विनय भदौरिया जी के नवगीत प्रस्तुति: वागर्थ ब्लॉग

डॉ.विनय भदौरिया जी के नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ ब्लॉग

एक
____

मजदूर
                
सुख -सुविधाओं से
वंचित हैं 
दूर हैं।
क्यों कि -
लिखा खातों मे
हम मज़दूर हैं।

पाँव हमारे ही
बिजली के खम्भे हैं,
तार नही ये-
मेरी खिंची अतड़ियाँ हैं।
बल्ब नही ये-
मेरी आँखे टँगी हुई,
हम से रूठी हुई
भाग्य की लड़ियाँ है।

अन्धकार-
जीने में हम
मशहूर हैं।

होकर विनत कभी-
जब माँगा पोखर ने,
अपने हक़ व हिस्से
वाला मीठा जल।
तब प्यासे ओंठो को-
तुमने सौंप दिया
तत्क्षण ही तपती
रेती वाला मरुथल।

कर लो-
अत्याचार कि
हम मज़बूर हैं।

सहन शक्ति की-
सीमा की भी सीमा है,
ज़रा ग़ौर से देखो
इन वैलूनो को।
खडा़ हुआ है वक़्त -
तान कर मुट्ठी फिर,
सबक सिखायेगा
सब अफलातूनो को।

छैनी-
पत्थर को
कर देती चूर है।

दो

     अँजुरी भर-प्यास लिए  

सागर के पास गया।
पता लगा-
सागर ही
सागर भर प्यासा  है।

पोखर सब तालों को
ताल  सभी नालों  को
नाले सब नदियों को
जी भर कर दान करें,
नदियाँ  भी ख़ुद जाकर
 सागर को सौंप रहीं
बिना किसी लालच  के
प्रति पल सम्मान करें

जिनके-जिनके 
बलपर ,है-
धन्नासेठ बना,
समझ रहा
उनको ही
आज वह तमाशा है।

पोखर से नालों  तक
वाजिब कर ले नदियाँ
अपने दायित्व सदा 
बेहचिक निभाती हैं
ये अगाध जल वाला
कोष जो सुरक्षित है
 समझ रहा है सागर
बप्पा की थाती है।

धरती के
स्रोत सभी
हो जाते जब दम्भी
तब जन-मन  
बादल से 
करता प्रत्याशा है।

तीन

नदिया के पानी मे
मगरों का कब्जा है,
मर रहीं 
मछलियाँ है प्यासी।
किन्तु उन्हे
आती  है हाँसी।

चापलूस घड़ियालों ने
ऐसा भरमाया।
सब कुछ उल्टा -पुल्टा 
दरपन मे दिखलाया।

पलते -पलते 
बढकर
अब तो 
छय रोग हुआ
कल तक थी जो 
हल्की खाँसी।।

कउवों व बगुलों के
आपस मे समझौते।
बेचारे हंस आज
क़िस्मत पर हैं रोते।

धारा धारा  भँवरें
दहशत
जीती लहरें,
चेहरों में 
है उगी उदासी।

असली सिक्के समस्त
हैं गा़यब हाट से।
सब नकली सिक्के ही
काबिज हैं ठाट से।

हैं कुत्ते -
हउहाते
और बाघ घिघियाते,
बाते हैं 
केवल आकाशी।

चार

बड़ा पुराना बरगद

गाँव किनारे-
बाईपास निकलने
वाला  है,
बड़ा पुराना-
बरगद जिसमे जाने
वाला है।

झूले हैं चरवाहे  हरदम
जिसकी पकड़  बरोही
जिसके नीचे सँहिताते हैं
हारे-थके बटोही,

सड़कों का संजाल-
काल बन खाने
वाला है।

जिसको पूज  सुहागिन
पति की आयु बढाती हैं
पीढ़ी-दर-पीढी़ श्रद्धा-
का पाठ पढा़ती हैं।

जे.सी.बी.
इस ऋषि को-
मार गिराने  वाला है।

साँझ सकारे  जब मित्रों के
साथ उधर हम जाते,
भूतों का आवास बताकर
बाबा हमे डराते।

दुर्घटनाओं का-
ख़तरा
मड़राने वाला है।

भाँति-भाँति के पक्षी
जिसमे करते रैन  बसेरा,
उल्टा लटके  चमगादड़़
गिद्धों-कउवों  का डेरा।

भवन सामुदायिक
मे मातम  छाने
वाला है।

गाँव हमारे जब बरात-
सँग हाथी  आते हैं
धजा चीर , पत्ते खाकर के
क्षुधा मिटाते हैं।

उपकारी का
'मर्डर '  दिल दहलाने
वाला है।
           विनय भदौरिया
साकेत नगर लालगंज 
राय बरेली( उ.प्र.) 229206
मोबाइल नंबर 9450060729