एक प्रसङ्ग
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परम सखा को याद करते हुए
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कुछ घण्टों की अनुपस्थिति ही जब आपको बेचैन कर दे तो इस भाव को आप क्या कहेंगे?
प्रेम और स्नेह की पराकाष्ठा में परस्पर ऐसा भाव संभव है। वर्तमान में देखा जाय तो, जो सबसे ज्यादा मूल्यवान वस्तु है, वह है 'समय' बस, हम लोग परस्पर बड़े पावन भाव से एक दूसरे को अपने हिस्से का समय देते हैं। आज, जबकि आप की भौतिक उपस्थिति भोपाल में नहीं है, तब मेरा यह हाल है; जैसे किसी मछली को तालाब से निकालकर, किसी ने किनारे पर डाल दिया हो। क्या न मिला मुझे आपके सानिध्य से, कृष्ण सा सखा , भरत सा भ्राता, चाणक्य सा नीतिकार! और भी बहुत कुछ जो अतुलनीय है।
यह सही है की विष्णु भगवान (छोटे भाई के अर्थ में) सहोदर है पर अनुज होने का जो स्नेह मैंने पाया है वह किसी और के हिस्से में नहीं आ सकेगा।
आप ऐसे में और ज्यादा प्रासङ्गिक हो जाते हैं जब, हमारे अपने परिजन ही हमसे बेगानों सा व्यवहार करते हों!
इस समय आप बहुत याद आ रहे हैं मित्र! ज्ञानदीप स्कूल परिसर से आरम्भ हुई हमारी यह यात्रा दिन पर दिन आनन्द से परमानन्द में बदलती जा रही है।
आज मैं मिस कर रहा हूँ! आपका कॉल! फिर कॉल पर यह पूछना की कहाँ हो?आओ इन्तज़ार कर रहा हूँ?
आपके सखा भाव और पावन मन को श्रद्धा सहित नमन।
स्नेह और आशीष सदैव बना रहे
आपका अपना सखा
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चित्र में आप देख रहे हैं मेरे कैमरे से ली गई एक तस्वीर जिसमें हम दो मित्र ऐतिहासिक नगरी भोजपुर मन्दिर प्रांगण में बैठे दिखाई दे रहे हैं।