ठण्डा शरबत
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आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा,
ठण्डा शरबत पीते हैं।
मौसम तो है सिर्फ बहाना,
यह तो आते-जाते हैं।
सर्दी गरमी या हो बारिश,
मन को बहुत लुभाते हैं।
आओ मिलकर सुख-दुख बाँटें,
देखो ऐसे जीते हैं।
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा,
ठण्डा शरबत पीते हैं।
कठिन पहेली जैसी जिनगी,
यह अनबूझ पहेली है।
उलझन बुलझन प्रेम-प्रीत की
इच्छाशक्ति सहेली है।
बाहर है मुस्कान होंठ पर
अंदर से सब रीते हैं।
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा,
ठण्डा शरबत पीते हैं।
उत्सवधर्मी है यह जीवन
खुशी श्वांस में टाँकेंगे।
दूर देश से चंदा सूरज
हमें गगन से झाँकेंगे।
घाव जिगर के हँसी-खुशी से
कुछ ऐसे हम सीते हैं।
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा,
ठण्डा शरबत पीते हैं।
मनोज जैन