यात्रा संस्मरण
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मनोज जैन
21 घण्टे की रोमांचक यात्रा की एक झलक
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निःसन्देह यात्राएँ हमारे अनुभव संसार में बहुत कुछ नया जोड़ती हैं। कभी-कभी यह नया जोड़ आपको 360 डिग्री के कोंण तक अचानक बदलने के लिए विवश कर देती है। ऐसा ही कुछ देखने और समझने, सुनने और गुनने का अवसर मिला जब हम लोग, अपने शहर के प्रख्यात लेप्रोस्कोपिक सर्जन और बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक डॉ.अभिजीत देशमुख जी के साथ, एक छोटी सी यात्रा भोपाल से ग्वालियर जिसकी योजना, विशेषकर मेरी लिए तो बिल्कुल ही औचक ही थी। यह यात्रा मेरे घर के ठीक दूसरे छोर यानी कटारा हिल्स से आरम्भ हो चुकी थी। मेरे पास जब कॉल आया तब मैं गहरी नींद में था। बतय
मैं मीठे स्वप्न में खोया हुआ था। काल पर दूसरी तरफ हमारे मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी थे। मैंने सिर्फ इतना ही सुना,"गेट रेडी विदिन टेन मिनिटस, मैं पहुँच रहा हूँ, सर के साथ ग्वालियर चलना है!" ठीक 6 बजे डॉ.अभिजीत सर की गाड़ी ब्रेक के हल्के इशारे से ठहरती है, और हम लोग सर को जॉइन करते हैं। अभिजीत सर की गाड़ी 1080 ऑडी जिसे हम आपस में रथ कहते हैं। रथ के सारथी ने रथ को हवा में ऐसा दौड़ाया की कब ग्वालियर के पास उदय ढाबा आ गया, पता ही नहीं चला।
अंदर और बाहर के टेम्प्रेचर का अहसास हमें अपनी गाड़ी और ढ़ाबे के AC हाल तक के पहुँच मार्ग मात्र 3 मिनिट के समय ने कराया। ग्वालियर-चम्बल इलाके की तपिश और उठते लू के थपेड़ों
ने हमारा भले ही जोरदार स्वागत किया हो, पर ढाबे में उप्लब्ध छाछ के स्पेशल गिलास (जो आकार में नॉर्मल गिलास से स तीनगुने होंगे रहे होंगे) ने हमें अन्दर तक शीतल कर दिया।
डॉ.अभिजीत जी अपनी टीम का नेतृत्व करते हुये अपने गंतव्य तक ठीक निर्दिष्ट समय सीमा के पहले ही पहुँचे। बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक की टीम यहाँ पहुँचते पहुँचते एक बड़े काफ़िले में तब्दील हो गई।
ग्वालियर, महल पहुँच कर, सर ने अपनी टीम के साथ माधवी राजे सिंधिया जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके यशश्वी पुत्र श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी से भेंट की। डॉ.देशमुख जी के शिड्यूड पहले से ही तय थे प्री प्लान शैडयूल्ड के अनुसार सर के साथ उनकी पूरी टीम के लंच का जिम्मा भोपाल शहर के चर्चित डेंटल सर्जन डॉ रोहित श्रीवास्तव जी, जो स्वयं बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ से जुड़े हैं; ने सम्हाल रखा था। ग्वालियर रेलवे स्टेशन के कैंटीन की यह ट्रीट सचमुच हम सभी के लिए बहुत यादगार और खास थी।
लंच के बाद डॉ अभिजीत जी के स्वागत सम्मान के पलों के फोटो सदैव इस यात्रा से जुड़ी यादें ताज़ा करते रहेंगे।
एक बात मैंने जो डॉ.अभिजीत जी के व्यक्तिव में नोटिस की वह यह है की डॉ देशमुख जी, यात्रा के हर पल का डूबकर आनन्द लेते हैं। इस दौरान उन्होंने सारे जरूरी कॉल अटेंड किये, फॉलोअप लिए
पेशेंट्स से या उनकें परिजनो के जो काल थे उन्हें बहुत धैर्य से जरूरी समझाइशें दी।
यात्रा का दूसरा चरण ग्वालियर से गंतव्य स्थल भोपाल की ओर आरंभ हो चुका था और हम लोग डॉ. साहब के साथ दतिया स्थित पीताम्बरा पीठ के दर्शनार्थ माँ बगुलामुखी के दर्शनार्थ मन्दिर परिसर में आ चुके थे। स्थानीय दो पुजारियों के निर्देशन में हम सभी ने माई के दर्शन और माई से जुड़े रोचक तथ्यों को बहुत मनोयोग से जाना।
भीषण गर्मी और दतिया के झुलसा देने वाले टेम्प्रेचर के बाबजूद मन्दिर परिसर में हमें अतीव शान्ति का अनुभव हुआ और यह हम सभी की अनुभूति का विषय लम्बे समय तक बना रहा।
यहाँ हमारी भेंट दतिया के वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र बुधौलिया जी से हुई जो मेरे एक काल पर टेम्प्रेचर को धता दिखाते हुए
मन्दिर परिसर में आ पहुँचे। यद्धपि यह सौजन्य भेंट बहुत कम समय की थी पर कुछ लोगों का प्रभाव उनके स्वभाव के चलते ऐसा पड़ता है जिसे कभी भुलाया ही नही जा सकता। हम सभी वापसी के मूड में थे और वाया शिवपुरी-गुना हमें भोपाल आना था। पर क्या पता बुधौलिया जी के दिमाग में कौन सी ग़ज़ल या गीत की पंक्ति चल रही थी कि अचानक उन्होंने बिना माँगे एक सलाह हवा में उछाल दी।
बुधौलिया जी बोले आप लोग दिनारा वाले पुल से होकर वाया पिछोर होते हुये भोपाल जाइए। एकदम चकाचक रोड और समय भी बचेगा सो अलग।
फिर क्या था डॉ.अभिजीत देशमुख जी का रथ उसी रोड पर मुड़ गया।
मुड़ तो गया पर यह दिशा गलत थी फिर भी हम सबने इस यात्रा का पूरा आनन्द लिया। मैं अपने गाँव बामौर कला से गुजरा यहीं पर मेरे अपने बाल सखा हाईकोर्ट के एडवोकेट संजीव पांडेय के होटल "जैनपथ" पर छोटा सा स्टे और लाइट खिचड़ी लेकर हम वाया चन्देरी होते हुए डॉक्टर साहब के रथ के सारथी भाई दलभान यादव उर्फ छोटू के गाँव जहाँ छोटू भाई ने डॉक्टर साहब के खासे आतिथ्य के साथ स्वागत सम्मान का खासा इंतज़ाम अपने मित्रों के सानिध्य से करा रखा था। सचमुच यह आत्मीयता मोहने वाली थी। यह सब डॉ.अभिजीत जी के दिल जीत लेने वाले व्यवहार का सुफल था जिसका सुख हम लोग भी संग साथ भोग रहे थे।
यात्रा के दौरान मैने अपनी जिज्ञासा के बशात डॉ देशमुख जी से एक प्रश्न पूछा। मेरा प्रश्न था, डॉक्टर साहब! सब लोग आपकी सफलता को देखते हैं पर मैं इस सफलता के पीछे के संघर्ष के बारे में जानना चाहूँगा। इस प्रश्न पर डॉक्टर अभिजीत देशमुख जी ने ठहरकर और सविस्तार बात की। उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को फ़्लैश बैक में जाकर याद किया।
डॉक्टर साहब को दो संस्कृतियों में पलने बढ़ने फलने और फूलने का अवसर मिला है। वे मध्यप्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के कल्चर से जुड़े हैं। डॉक्टर साहब मध्य प्रदेश के प्रमुख चारों शहरों में पढ़े हैं। उन्होने अपने नाना जी, जो अपने समय के चर्चित सांसद रहे हैं, के जीवन में आये उतार चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा है।
कठोर परिश्रम और ईमानदारी का संस्कार नाना जी ग्रहण करते हैं तो वही शख़्त अनुसाशन की सीख का श्रेय अपने पिता जी को देते हैं।
डॉ.अभिजीत देशमुख जी अपने क्षेत्र में एक सफल व्यक्तित्व का नाम है। फिर चाहे क्षेत्र चिकित्सा का हो या राजनीति का पूरे मनोयोग से वे अपने समय का सदुपयोग करते हैं। जनसम्पर्क उनकी ख़ूबी है। उन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है। ट्विटर का नया रूप एक्स हैंडलर, फेसबुक , व्हाट्सएप्प या फिर इंस्टा सोशल मीडिया के लगभग सभी प्लेटफार्म पर अभिजीत सर की उपस्थिति आपको खुल कर दिखाई देती है। इस यात्रा में मुझे एक बात का उत्तर बिना पूछे ही मिल गया जब डॉक्टर साहब ने चलती हुई गाड़ी से रेयर क्लिक कैप्चर करते दिखाई दिए।
एक दृश्य जो उन्होंने कैप्चर किया वह सचमुच रेयर था जिस पर मेरा ध्यान गया। तीन पहिया वाले खुले ऑटो में तरबूजों के ऊपर 47 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर में गहरी नींद में सोते दो बच्चों का एक बेहतरीन क्लिक !
एक सफल व्यक्ति के साथ की गई 21 घण्टे की छोटी सी यात्रा हमारे अनुभव संसार में बहुत कुछ जोड़ सकती है। रात को 3 बजे हम लोग भोपाल सकुशल पहुँचे। इस औचक यात्रा का श्रेय मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी को ही जायेगा जिन्होंने मुझे एक सफल व्यक्तित्व को निकट से जानने का सुयोग बनाया।