वागर्थ के अनन्य शुभ चिंतक
कविवर रघुवीर शर्मा जी Raghuvir Sharma जी का एक सारवान नवगीत
कविवर रघुवीर शर्मा जी इन दिनों सेवा निवृति के उपरान्त खण्डवा में एक जगह टिककर, हरसूद की पीड़ा से उबरने के लिए जमकर नवगीत लिख रहे हैं।
शर्मा जी के समग्र लेखन में विस्थापन की पीड़ा रह रहकर उभरती है।आपका लिखा इन दिनों खूब पढ़ा और सराहा जा रहा है।
प्रस्तुत है
रघुवीर शर्मा जी का एक गीत
शुभचिंतक का बाना
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पहने हुए शिकारी सारे
शुभचिंतक का बाना ।
दाने ऊपर जाल बिछाकर.
भूखे पेटों को भरमाकर।
फिर मुट्ठी में कैद करेंगे
आसमान के ख्वाब दिखाकर।
अच्छी तरह समझते हैं वे
कैसे किसे फँसाना।
जंगल के चप्पे-चप्पे पर
काब़िज हैं,जागीर समझकर।
रुकी हुई है सभी उड़ाने
धुआँ-धुआँ मौसम के तेवर।
मुश्किल में इस वन के पाखी
बनते रहे निशाना ।
पहने हुए शिकारी सारे
शुभचिंतक का बाना ।
रघुवीर शर्मा
खंडवा म.प्र.
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