आज वागर्थ में कीर्तिशेष डॉ.ओम प्रभाकर के तीन नवगीत(कविता कोश से साभार) श्रद्धांजलि-स्वरूप उनके संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत हैं ।
आप सभी प्रबुद्ध पाठकों, कवियों व समीक्षकों से प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा है ।
~~ टीम वागर्थ ~~
प्रस्तुति
ईश्वर दयाल गोस्वामी
नवगीतकार एवं समीक्षक
(1)
|| इस क्षण ||
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इस क्षण यहाँ शान्त है जल।
पेड़ गड़े हैं,
घास जड़ी।
हवा सामने के खँडहर में
मरी पड़ी।
नहीं कहीं कोई हलचल।
याद तुम्हारी,
अपना बोध।
कहीं अतल में जा डूबे हैं
सारे शोध।
जमकर पत्थर है हर पल।
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(2)
|| सरोवर है शवासन में ||
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सरोवर है
शवासन में !
हवा व्याकुल
गंध कंधों पर धरे
वृक्ष तट के
बौखलाहट से भरे ।
मूढ़ता-सी छा रही है
मृगों के मन में !
मछलियाँ बेचैन
मछुआरे दुखी
घाट-मंदिर-देवता
सारे दुखी ।
दुखी हैं पशु गाँव में
तो पखेरू वन में ।
सरोवर है
शवासन में !
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(3)
|| रातें विमुख दिवस बेगाने ||
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रातें विमुख दिवस बेगाने
समय हमारा,
हमें न माने !
लिखें अगर बारिश में पानी
पढ़ें बाढ़ की करूण कहानी
पहले जैसे नहीं रहे अब
ऋतुओं के रंग-
रूप सुहाने ।
दिन में सूरज, रात चन्द्रमा
दिख जाता है, याद आने पर
हम गुलाब की चर्चा करते हैं
गुलाब के झर जाने पर ।
हमने, युग ने या चीज़ों ने
बदल दिए हैं
ठौर-ठिकाने ।
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-- ओम प्रभाकर
(तीनों गीत कविता कोश से साभार )
संक्षिप्त जीवन परिचय
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पूरा नाम - डॉ.ओमनारायण अवस्थी
साहित्यिक नाम - डॉ.ओम प्रभाकर
जन्म- 5 अगस्त 1941 को भिण्ड, मध्य प्रदेश, भारत में।
मृत्यु - 23 फरवरी,2021
शिक्षा- हिन्दी साहित्य में परास्नातक तथा पी-एच.डी.
कार्यक्षेत्र- लेखन व अध्यापन।
प्रकाशित कृतियाँ-
गीत संग्रह- पुष्पचरित, छंदमुक्त रचनाओं का संग्रह- कंकाल राग
कहानी संग्रह- एक परत उखड़ी माटी,आलोचना- अज्ञेय का कथा साहित्य, कथाकृति मोहन राकेश।
संपादन- नवगीत-संग्रह ’कविता-64’ तथा ’शब्द’ पत्रिका का सम्पादन।
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