वागर्थ में आपका स्वागत है!
आज वागर्थ में वरिष्ठ कवि नवगीतकार आदरणीय रमेश गौतम जी के तीन नवगीत प्रस्तुत हैं।
_______________________
एक
धूप
खिलेगी तुम
कोहरे पर तीर चलाओ तो
तिमिर-जाल के
आलिंगन में भोले-भाले गाँव
मत उदास हो
आएँगे आँगन किरणों के पाँव
एक
सारथी बन
सूरज को देहरी लाओ तो
सोच-समझ धरना
कलियों पर कोई तेज छुरी
इनकी किलकारी
से बनता घर भी जनकपुरी
कन्या-रत्न
किसी सीपी से
अलग हटाओ तो
ऊँच-नीच के
कारागृह साँस बहुत टूटी
मिल जाएगी
मृत समाज को संजीवन-बूटी
पहले
बेर किसी
शबरी के जूठे खाओ तो
नारी नहीं मुद्रिका केवल अपनाओ छोड़ो
कोई वचनबद्धता
अपनी अनायास तोड़ो
किसी
स्वयंवर के
प्रांगण में धनुष उठाओ तो।
दो
सच न जाने
इस हवा को क्या हुआ
तितलियों की पीठ पर
चाकू चलाती यह हवा
जुगनुओं को धर्म के
रिश्ते बताती यह हवा
किस दिशा ने
इस हवा का तन छुआ
यह हवा जो कल फिरी
हर एक माथा चूमती
आज सड़कों पर यहाँ
कर्फ्यू लगाती घूमती
लग गई
इसको किसी की बददुआ
इस हवा ने दाँव कुछ
ऐसे चले
मार डाला भाईचारे को
गली में दिन ढले
अब कहे
मामू किसे किसको बुआ
_______________________
तीन
तीर्थयात्रा
करो तो सही
आत्मा के अमरनाथ की
पुण्य-फल
के लिए परिक्रमा
मित्र संवेदना की करो
एक लकवा लगी भोर के
संग में दो कदम
तो कदम तो चलो
पढ़ सको तो
लकीरें पढ़ो
एक मजदूर के हाथ की
आचरण से बड़ी कौन सी
है तपस्या हमारे लिए
आत्ममंथन करो बैठकर
पाप कितने अभी तक किए
बस मिलेगी
नयन कोर में
बूँद प्रायश्चित के साथ की
पहन कर हम बड़े हो गए
एक हीरा जड़ी मुद्रिका
झुर्रियों से भरी देह को छोड़ कर चल दिए द्वारिका
व्यर्थ
माता-पिता के बिना
प्रार्थना है झुके माथ की
परिचय
________
आदरणीय रमेश गौतम जी
नवगीतकार, लघुकथाकार एवं समीक्षक है
अध्यापन कार्य से सेवा निवृत्त के बाद स्वतंत्र लेखन प्रारंभ
नवगीत संग्रह 'इस हवा को क्या हुआ ' व दोहा संग्रह 'बादल फेंटें ताश ' प्रकाशित
निवास-रंगभूमि, 78 बी संजय नगर बरेली-243005 (उ प्र) मो-9411470604,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें