गंगा की बाढ़-2024 : हरिनारायण सिंह हरि के पाँच गीत
( एक )
घिरे बाढ़ से जूझ रहे हैं, घर-आँगन में पानी
कौन-कौन-से दुख बतलावें, अपनी यही कहानी
कहने को हम जोतदार हैं बड़ी किसानी करते
चास-वास है बड़ी हमारी, बड़े ठाठ से रहते
किंतु न इसका ठौर-ठिकाना, कब पानी-बेपानी
फसल एक केवल होती है, शेष समय यह परती
सबके हिस्से हरी भूमि है, निज हिस्से भू तपती
हम कटाव से पीड़ित रहते, गंगा की मनमानी
ऊँचे बाँध किये जाते , नीचे हमको करने को
और दियारा कह छोड़े जाते हमको मरने को
तिकड़म करके छीनी जाती धरती हमसे धान •
( दो )
तीन दिनों से दीयर वाले हैं पानी के अंदर
आँख मूँदकर देख रहे हैं गाँधी जी के बन्दर
तीन दिनों से जूझ रहे ये दाहर अपने बूते
अफसरशाही बचा रही है काले अपने जूते
तीन दिनों से सोच रहे एसी में बैठे राजा
आने दो परयागराज से खबर गंग की ताजा
तीन दिनों से जनता मरती, नहीं पेट में दाने
प्यादे घूम रहे राजा के सब जाने-अनजाने
बाँध करो ऊँची ज्यादा फिर,अँटके ज्यादा पानी
राजा जी की पुनः चलेगी आगे भी मनमानी
सब स्रोतों को बंद करेंगे बाढ़ न बाहर आये
चाहे भीतर रहनेवाले सब के सब मर जाये
•
( तीन )
हम मछली हैं जल में ही किल्लोल करेंगे
राजा जी के प्यादे ऐसा सोच रहे हैं
आँटे की गोली फेकेंगे इतरायेंगे
हमें तड़पता देख तनिक वे घबरायेंगे
रहो धैर्य से पार करो संकट के ये दिन
उड़नखटोला पर उड़कर वे समझायेंगे
जाल चाँदनी लेकर हल्लबोल करेंगे
राजा जी के प्यादे ऐसा सोच रहे हैं
जलप्लावन के दिन आये मस्ती ही मस्ती
चाहे कागज पर तैरे किश्ती-दर-किश्ती
चहल-पहल है चार दिनों की सुखद चाँदनी
हासिल कर लो माल यहाँ बिकती है सस्ती
किस हिसाब से कैसे हिस्सा गोल करेंगे
राजा जी के प्यादे ऐसा सोच रहे हैं
उठो मछलियो! अपने हक का पानी माँगो
न्याय करेंगे राजा जी शक अपना त्यागो
दीनबंधु, परजावत्सल एसी में बैठे
अब निकलेंगे, अब निकलेंगे भागो-भागो
रुको घोषणा अबकी वे अनमोल करेंगे
राजा जी के प्यादे ऐसा सोच रहे हैं
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( चार )
हम उब-डुब में और तुम्हें किल्लोल दिखाई पड़ता है यह साहब तो साहब जी! बकलोल दिखाई पड़ता है
चौकी पर चौकी रखकर हम रात गुजारा करते हैं
बहरे के आगे साहब ! पुरजोर पुकारा करते हैं
बैठक-दर-बैठक होती है हमें मदद करने खातिर
यह राजा का बंदा तो अनमोल दिखाई पड़ता है
सर्वेक्षण में लगे हुए हैं, दौर हवाई होती है
कागज पर ही रुग्णजनों की खूब दवाई होती है
ऊपर-ऊपर पीने वाले लगे हुए आगे-पीछे
सिस्टम का यह खेल हमें भंडोल दिखाई पड़ता है
रहने दो साहब जी! अपनी बंद करो यह नौटंकी
खुले मंच पर दौड़ रहे हैं गाँधी के तीनों मंकी
डाॅयलाग, स्टोरी सब ही मूवी के विपरीत लगे
चश्में से इतिहास इन्हें भूगोल दिखाई पड़ता है
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( पाँच )
कम सेवा, कुछ अधिक दिखावा,अखबारों में नाम छपे
यह दस्तूर बढ़ा जाता है, प्रजातंत्र की माया है
इंस्ट्राग्राम, फेसबुक, सोशल मीडिया छाये रहते हैं
ओछे- बड़े सभी तबकों ने ऐसे नाम कमाया है
आत्मश्लाघा, विज्ञापन का दौड़, सजा बाजार बड़ा
राजनीति का यह चमकीला यों ही क्या व्यापार खड़ा
यह इन्भेस्ट मुनाफा वाला, एक लगा सोलह पाओ
इसी राह चलकर यारों ने ऊँचा महल बनाया है
आपत्काल सुनहरा अवसर सेवादारों को मिलता
काले बादल घिर जाने पर मन-मयूर तत्क्षण खिलता
भँजा रहे सब रिश्तेदारी, जात-धरम सब देख रहे
यों ही नहीं अडिग-अविचल यह खड़ा कीर्ति का पाया है
उजला कोट पहनकर काला दिल वाला है चढ़ धाया
चूहे सौ-सौ खाकर बिल्ली ने यह नुस्खा अपनाया
कहते ऐसी ही राहों से हिम्मत वाले चढ़ जाते
लालकिलों पर किस्मत वालों ने झंडा फहराया है
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जौनापुर, मोहीउद्दीननगर
समस्तीपुर-848501