वीरेश कुमार त्यागी का एक गीत
जीवन को हतप्राण देखकर वरुणा सरस पड़ी!
एक देवता के अंतस की करुणा बरस पड़ी।
दिन पर दिन हो रहा निरंकुश
तेज दिवाकर का!
लगे, सुखाकर रख देगा
पानी रत्नाकर का!
हो जाएगी 'थार' धरा की
हरी भरी काया,
शेष बचेगा जंगल नागफनी
औ कीकर का!
सोचमग्न होकर जलदेवी 'माराह' किलस पड़ी!
एक देवता...........
'जल जीवन का मूल' सदा
ऋषियों ने समझाया!
मर्म मगर जीवन का अनुभव
हमें न हो पाया!
रहे गँवाते व्यर्थ रात दिन
अमृत जीवन का,
जिस कारण युग पर है अब
जल संकट गहराया!
निरी बूँद जल को चातक की रसना तरस पड़ी!
एक देवता..............
जलचर थलचर नभचर सारे
प्राणी त्रस्त हुए!
झरने, नदियाँ, ताल, सरोवर
जल बिन पस्त हुए!
फटे कलेजे ताक रही है
वसुधा नीलांम्बर,
धूप उमस से उसके धानी
सपने ध्वस्त हुए!
कुटिल कर्मनाशा जग की विपदा पर विहँस पड़ी!
एक देवता...................
बिगड़ा पर्यावरण धरा पर
किसको दोष धरें!
सभी व्यस्त हैं प्रगति-दौड में
कोशिश कौन करें!
नहीं भगीरथ ऐसे अब जो
संकल्पित होकर,
मरुथल होती धरती माँ की
फिर से गोद भरें!
चिंताकुल दशरथ की मानो तृष्णा झुलस पड़ी!
एक देवता के अंतस की करुणा बरस पड़ी।।
वीरेश कुमार त्यागी
Very good song by viresh tyagi.
जवाब देंहटाएंMany many congratulations and best wishes