शनिवार, 26 जून 2021

राहुल आदित्य राय के समकालीन दोहे प्रस्तुति : वागर्थ


राहुल आदित्य राय के समकालीन दोहे
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दोहे
दर्द पराया देखकर, अगर न उभरे पीर
तो समझो मर गया है, दो नयनों का नीर

अपना भी कुछ इस तरह, मिलना होता काश
जैसे सावन में मिले, धरती से आकाश

आंखों आंखों में मिले, जब दो दिल की प्यास
सागर भी छोटे पड़ें, बढ़ती जाती आस

बाहर से ज्यादा मिला, दिल के अंदर शोर
चिंता, शोक और खुशी, मांगें अपना ठोर

सागर ने समझी नहीं, उस नदिया की प्यास
जो पर्वत को लांघकर, आई उसके पास

बांटें से बढ़ती सदा, पूंजी ऐसी प्यार
दिल के द्वारे खोल दो, बांटो प्रेम अपार

ऐसा हो इस देश में, धर्मों का सम्मान
मस्जिद में गीता पढ़ें, मंदिर पढ़ें कुरान

प्यार बिना जीवन नहीं, ये जीवन का सार
जब तक ये धड़कन रहे, दिल चाहे बस प्यार

अपनों ने समझी नहीं, मेरे मन की पीर
आंखों से बहता रहा, दुख में भीगा नीर

नीचे कितना गिर गया, देखो अब इंसान
पीड़ा का दोहन करे, बस पैसों पर ध्यान

कदम कदम पर छल मिला, कदम कदम पर झूठ
सच के रस्ते में मिले, जाने कितने ठूंठ

धंधे चौपट हो गये, छिना यहां रुजगार
उस पर महंगाई बढ़ी, जीवन है दुश्वार

आसमान तक चढ़ गये, सब चीजों के दाम
सरकारें इठला रहीं, मुश्किल में आवाम

बातों से बनती नहीं, कैसे भी तकदीर
पाना है मंजिल अगर, सन्नाटे को चीर

कुछ भी स्थायी नहीं, सब कुछ है गतिमान
तुम पद का गुरूर करो, या धन का अभिमान

दर्द पराया देखकर, पिघले गर इंसान
दुनिया की मुश्किल सभी, हो जाएं आसान

राजा आत्ममुग्ध है, भक्त करें जयकार
दुखियारी प्रजा मगर, करती हाहाकार

तब तक दुनिया साथ है, जब तक चले नसीब
बुरा हुआ जो वक्त तो, मिलते रोज रकीब

(राहुल आदित्य राय)