गुरुवार, 15 सितंबर 2022

अनामिका सिंह के नवगीत


जीवन खूँटे से बाँधे हैं
छुट्टे आदमखोर ।

उन्मादी बन फिरें बावले,
लाज शर्म पी ली ।
रग-रग टीसे देह देश की ,
आह ! पड़ी नीली ।

समरसता में रोज़ पलीता 
लगा रहे पुरजोर ।

सर्प नेवलों की यारी ने 
दुर्गति कर डाली ।
गुलशन दहका, कलियों को खुद, 
मसल रहा माली ।

लोकहितों को जो पानी दें 
उनको दण्ड कठोर ।

बस्ती-बस्ती ख़ौफ़ ,
भेड़िये घूम रहे खूनी ।
लगा धर्म के तिलक ,
द्वेष की
रमा रहे धूनी ।

मानवता के माथे कालिख 
पोतें रह-रह ढोर ।

          2

मौन रहना हम सभी का 
अब भयानक है !

न्याय की पलटी तराजू
सत्य की हँस डाँड़ मारे ,
वंचितों का स्वर बने जो
दण्ड के खोले किवारे ।

न्याय के अन्याय से कब
सच गया छक है !

बाँटते संकेत पर भय 
तान बन्दूकें दरोगे ,
और रख झूठी दलीलें
फैसले दें श्याम चोगे ।

कोई  भी उम्मीद 
इनसे झूठ 
नाहक है ।

डंक जहरीले चुभातीं 
नव पनपती आस्थाएँ ,
और पुजती जा रहीं हैं
मुँह सिले फिर भी शिलाएँ ।

आग है, 
धर्मांधता के हाथ
चक़मक है !

                 3

तालियों की,
थाप के शुभ स्वर ।
हर सगुन के 
काज आये 
द्वार पर किन्नर ।

सगुन के गीत गाते , 
दें 
बधाई लो बधाई ।

ब्याह,गौने ,जच्चगी में 
नाचते 
छम छम ।
नयन रंजन कर रहे 
जन ,
देख तन के खम ।

जिए लल्ला जिए जच्चा,
दुआएँ दे रहे माई।

बोलते , 
लगते बहुत बरजोर 
हैं सारे ।
चल रहे 
लचका कमर नर 
देह से हारे ।

हिकारत से 
गये देखे
सहे हर साँस रुसवाई ।

मारता कहकर 
शिखंडी 
जग इन्हें ताना ।
कौन है 
हम-आप में
इंसान जो माना ।
  
उद्धारकों की 
आँख की 
छँटती नहीं काई ।

जी रहे जीवन 
कटी ,
सबसे अलग धारा ।
दर्द  है अनकथ 
हुई , ऐसी 
इन्हें कारा।

सहारा नेग का केवल
नाचकर ,
जोड़नी पाई ।

 4

क्या-क्या देख रहीं  हैं आँखें 
क्या-क्या और देखना बाकी !

चलें धर्म की ओट 
यहाँ पर सिर्फ़ द्वेष के 
गोरखधंधे ।
कर असत्य की पैरोकारी 
सच भूले  
आँखों के अन्धे ।

पीस रहे 
समरसता सारी
फेर-फेर कर उल्टी चाकी ।

पत्रकारिता हुई बेहया ,
लोकतंत्र 
के मुँह पर गाली ।
कर सत्ता की अंध चाकरी ,
अर्थी अपनी 
स्वयं निकाली ।

सारे अमले 
बिके हुये जब
पीछे कैसे रहती खाकी ।

अव्वल हैं नकटौरे में वो ,
जिनके हाथों 
बागडोर है ।
उजियारे को सौंप अमावस 
कहें सुहाना 
सुखद भोर है ।

लोकतंत्र की 
नाव पलटकर
पार लगाई कहे पताकी ।

5
    
ढोलकी  की थाप गुम है ,
कोख भी  कुछ  
कसमसाई ।

है विकट संताप बखरी
वंश का वारिस  
न आया । 
सोच में जच्चा , न सोहर 
कंठ कोई    
गुनगुनाया ।।

झूठ मुँह  फूटी  नहीं   है ,
जन्म  बिटिया पर   
बधाई ।

सब  पढ़ेंगे सब  बढ़ेंगे , 
मुँह  चिढ़ाता  
रोज स्लोगन ।
भेद  की  है भीति   ऊँची ,
रोपता है खेत  
बचपन ।।

आखरों संग हैं अपरिचित ,
क्या  इकाई   
क्या  दहाई  ।

नित्य  ही  होती   बलत्कृत ,
राह  में  
हर  रोज   ' मीना '।
और आरोपी  विचरते ,
खोलकर 
बेलौस सीना ।।

न्याय उनके  हित खड़ा 
ले मुट्ठियों  में    
नून   राई ।

देह का  यह  चाक   घूमा ,
है  कटा  जीवन   
अलोना ।
पृष्ठ  जो  पलटें  विगत , है
आखरों का स्वाद  
नोना ।

उम्र भर  ठहरी अमावस ,
फेर  मुँह बैठी    
जुन्हाई ।

                      - अनामिका सिंह

 परिचय -
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नाम- अनामिका सिंह 
०९ अक्टूबर १९७८
जन्मस्थान -इन्दरगढ़ जिला कन्नौज 
शिक्षा - परास्नातक (विज्ञान ), बी.एड.
संप्रति -शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में कार्यरत
अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में नियमित नवगीत प्रकाशन
सम्पादन ' सुरसरि के स्वर ' ( साझा छंद संकलन ) 

 संपादन साहित्यिक पत्रिका  'अंतर्नाद ' एवं  ‘ कल्लोलिनी’ 

प्रकाशित पुस्तक :  ' न बहुरे लोक के दिन ' नवगीत संग्रह 

सम्पादक / संचालक   वागर्थ ( नवगीत पर एकाग्र साहित्यिक समूह )

पता -
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अनामिका सिंह
स्टेशन रोड गणेश नगर , शिकोहाबाद- जिला -फिरोजाबाद (283135)

yanamika0081@gmail.com
सम्पर्क सूत्र-9639700081