उठी भागवत
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साधकर सब
मौन मन में
दूर तक बैठे शिकारी।
ठाकुर जी को भोग
लगा फिर
करुणा का रस बरसा।
वाचक ने पाखण्ड
पसारा
नेता ने छल परसा।
अपने हिस्से की
बढ़ चढ़ कर
सबने खेली पारी।
म्यूजिक सिस्टम नें
म्यूजिक का
झटका धीरे मारा।
डिस्को में तब्दील
हो गया
चारों तरफ़ नजारा।
चिंता तजकर नची
गोपियाँ
जमकर बारी-बारी।
भरी सभा में पुण्य
पाप के
जुमले जमकर छोड़े।
भक्ति-भाव के
रस में डूबे
भगत खड़े कर जोड़े।
चंदे के धन से
पण्डित के
घर की चुकी उधारी।
उठी भागवत
भक्तगणों ने
मिल जयकारे बोले।
धीरे धीरे चढ़े
सभी के
फिर से उतरे चोले।
निकल लिये कुछ
इधर उधर से
कुछ चल दिये कलारी।
मनोज जैन