शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

मनोज जैन का एक नवगीत

सुख के दिन
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सुख के दिन छोटे-छोटे से,
दुख के बड़े-बड़े।

सबके अपने-अपने सुख हैं,
अपने-अपने दुखड़े।
फीकी हँसी, हँसा करते हैं,
सुन्दर-सुन्दर मुखड़े।

रंक बना देते राजा को,
दुर्दिन खड़े-खड़े।
सुख के दिन छोटे-छोटे से,
दुख के बड़े-बड़े।

सबकी नियति अलग होती है,
दिशा, दशा सब मन की।
कोई यहाँ कुबेर किसी को,
चिन्ता है बस धन की।

समझा केवल वही वक़्त की,
जिस पर मार पड़े।
सुख के दिन छोटे-छोटे से,
दुख के बड़े-बड़े।

हाँ, यह तय है चक्र समय का,
है परिवर्तनकारी।
सबने भोगा सुख-दुख अपना,
चाहे हो अवतारी।

अंत नही होता कष्टों का,
जी हाँ बिना लड़े।
सुख के दिन छोटे-छोटे से,
दुख के बड़े-बड़े।

मनोज जैन 

@everyone