के दो नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ ब्लॉग
1-
जाने कहॉं खो गए
नानी दादी के किस्से ।
राजा रानी के ऋषि मुनि
शहजादी के किस्से।
जगह जगह से बैरंग
चिट्ठी सी चिड़िया लटके।
तिनका तक रखने के खातिर
कितने वन भटके।
उस चिड़िया से पूछो तो
आबादी के किस्से।
आधी दुनिया जीत चुके थे
जो इक गोटी से ।
हार गए लेकिन लाठी पर
टिकी लंगोटी से ।
झूठे हैं या जादू हैं
आजादी के किस्से।
जिस डाली पर बैठे हैं हम
उसको काट रहे।
दिखा रहा जो हमें आईना
उसको डांट रहे ।
उपलब्धी पर हावी हैं
बर्बादी के किस्से।
इक पसली का चरखा मिल से
भिड़ कर टूट गया।
संग में चला स्वराज,
कहीं नुक्कड़ में छूट गया।
खत्म हो गए सत्याग्रह के
खादी के किस्से ।
अदब और तहजीबों का अब
यहां अकाल पड़ा।
जगह-जगह बेशर्म दुशासन
ठोके ताल खड़ा।
राज खुशामद का, अब चलते
चांदी के सिक्के ।
जाने कहॉं खो गए
नानी दादी के किस्से।
2-
अपने मन की बात किसी से
कहना मुश्किल है।
घर हो गया अजायबघर -सा
रहना मुश्किल है।
जीवन है शतरंज और हैं पिद्दी जैसे हम
राई जैसी खुशी और हैं खाई जैसे गम
अपने बलबूते लंका का
ढहना मुश्किल है ।
आँख मूँदकर भेड़ बकरियों जैसे चलना है।
किस पर करें यकीन चतुर्दिस पसरी छलना है।
धारा के विपरीत मीन -सा
बहना मुश्किल है ।
ज्यादा देर नहीं उड़ पाते पंछी सपनों के।
व्यंग बाण अतिशय चुभते हैं मन में अपनों के।
नफरत से निर्मित दुर्गों का
ढहना मुश्किल है।
सीताराम पथिक
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०७-०५-२०२२ ) को
'सूरज के तेवर कड़े'(चर्चा अंक-४४२२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका कृतज्ञ मन से आभार
जवाब देंहटाएंजीवन संदर्भ से जुड़े दोनों नवगीत सराहनीय और प्रेरक हैं। बहुत बधाई। कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त नवगीत,वाह वाह वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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