गुरुवार, 25 अगस्त 2022

रामबाबू रस्तोगी के पाँच नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग



 नवगीत --1

शब्द जीते हो
उसे ही आजमाते हो
गीत की पदचाप पर
पहरे लगाते हो ।

जीत कर भी हर जाना
सीख लो 
आंसुओं को घर बिठाना 
सीख लो ।

दर्द के वन में 
नए बिरवे उगाते हो ।

सोचना था तो सफर में 
रोक लेते
जो हृदय में था भरा
वो बोल देते ।

चीख होठों पर सजा कर
मुस्कराते हो ।

चांदनी का मर्म भी कुछ
जान जाओ
रात को आवाज़ से
पहचान जाओ ।

बादलों को धूप से लड़ना
 सिखाते हो ।

ये सियासत है किसी
कछुए सरीखी 
है जो जगबीती 
वही है आपबीती ।

तुम इसी मनहूस के 
किस्से सुनाते हो ।



नवगीत--2

हम सरल कितने
कहीं मुश्किल नहीं हैं
पर तुम्हारे नेह के 
काबिल नहीं हैं ।

जिंदगी को फूल समझे 
चोट खाई
क्यों चढ़े तूफान में 
कश्ती चलाई ।

इस थकन में
हमसफर शामिल नहीं हैं ।

बोनसाई बन गईं 
अपनी कथाएं 
चार शब्दों में 
समाई भूमिकाएं ।

हैं नदी के साथ
पर साहिल नहीं हैं ।

पी रहा है रोज़ सूरज
रोशनी घट
भाग्य में अपने लिखी है
सिर्फ तलछट ।

क्या बताएं किस तरफ
क़ातिल नहीं हैं ।



नवगीत---3

बादलों का 
धूप से रिश्ता नहीं होता ।


रोशनी की  
डबडबाई आंख क्या बोले
भावना खोले कि वो
संभावना खोले ।

दर्द कोई भी 
बड़ा छोटा नहीं होता ।

किस कदर 
कड़वाहटें फैली हुई हैं
चाहतों की तीलियां 
सीली हुई हैं ।

मौसमों का  
चीखना अच्छा नहीं होता।

हम सियासत की जबानी
कुछ नहीं कहते 
किस तरफ है राजधानी
कुछ नहीं कहते ।

लोग चुप हों
वक्त तो गूंगा नहीं होता ।


नवगीत--4

चले समय के साथ
मगर अब 
खोज रहे पगडंडी ।

साधू बाबा ,ज्ञानी , साधक
शौर्यवान,विद्वान ,विचारक
चोटीवाला ,कोटीवाला 
पहलवान ,संगीत सुधारक।

जो जैसा हो 
भाव लगाती
राजनीति की मंडी ।

सुचिता दरवाज़े के बाहर
धूर्त दिखाते अपना तेवर
एक दाम में माल सभी है
रसगुल्ला , गुझिया, गुड़ ,घेवर।

सब कुछ तो दिखता है 
पहनो
वायल या अरगंडी ।

निष्ठावान सहायक देखे 
कितने भांड विदूषक देखे
राजनीति इस नगरी में 
सबके सब खलनायक देखे ।

धुआं , राख कुछ नहीं
सुलगती
इच्छाओं की कंडी

नवगीत--5

समय का 
अपना गणित है 
हम नहीं जाने ।

तीर अर्जुन के , शकुनि का
गृह विनाशक दांव
राज पर भारी पड़े थे
पांच याचित गांव ।

सह सका गांडीव कब
इतिहास के ताने ।

आज भी हावी वही
धृतराष्ट्र के वंशज
सामने हैं पौत्र ,बाबा 
भ्रात औ भ्रातज ।

स्वार्थ कब संबंध 
रिश्ते नात पहचाने ।

राम का सौजन्य बदला
युग बदलते ही 
कृष्ण के रथ ने किया 
कोहराम चलते ही ।

योगियों का रूप समझे 
सिर्फ दीवाने ।


समय का अपना गणित है 
हम नहीं जाने ।

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