बुधवार, 28 दिसंबर 2022

एक समीक्षा सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी

मनोज जी के नवगीत पढ़कर मन में तृप्ति का भाव जगा। साथ ही एक अपूर्व पाठकीय आनन्द भी मिला। छन्द जिसे लापरवाह या अ-मौलिक कविगण तुकबन्दी, मुलम्मागीरी, भौंडी गायकी आदि के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे लोगों के निशाने पर कई दशकों से है जो छन्दोबद्धता को जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं, ऊहापोहों और सूक्ष्मतम द्वन्द्वों के प्रस्तुतीकरण में बाधा मान रहे हैं। मनोज जी जैसे सर्जक जो हर शब्द और हर बिम्ब की खोज में समय लगाते हैं और खानापूरी करने वाली तुकों और जगह भरने वाली बतकही से संतुष्ट नहीं होते, छन्द के प्रयोग का औचित्य अपने नवगीतों से ठहराने का साहस रखते हैं। उनके पास कहन की नवीनता भी है, अभिव्यक्ति की सामान्यता से बचकर निकलने का धैर्य भी है। समाज उनके विचारों के गलियारों में लैम्पपोस्ट की तरह अपनी मौजूदगी बिखेरता है। ज़िन्दगी जिसके अर्थ और सौन्दर्य का अनुसन्धान सृजन का प्राप्य माना जाता है, उनके नज़दीक गौरैया की तरह बेहद आत्मीय अंदाज़ में आती है।
    मनोज जी के नवगीतों पर मैं अलग-अलग टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ। सुधीजन उनके बारे में अपने विचार पहले ही व्यक्त कर चुके हैं।
    मेरा मानना है कि अच्छी कविता हर स्थिति में अच्छी कविता होती है। उसका वैशिष्ट्य, उसकी तरलता, उसकी धार पाठकों को उनकी सहृदयता और संवेदना के मुताबिक़ पृथक्-पृथक् ढंग से छूती है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वह किस तरह के शिल्प में है यानी छन्द में है या मुक्त अंदाज़ में किसी बड़ी जीवन-स्थिति को रच रही है।
    भाषा कई बार गहरे मक़सद रचती है। वह सिर्फ़ कहती नहीं, पूछती भी है, बताती भी है, टोकती भी है, घूरती भी है, वक़्त ज़रूरत आगाह भी करती है, हमारी सुस्तियों और जम्हाइयों का मज़ाक भी बनाती है, कभी-कभी हमारी किसी नासमझी के लिए हमें धिक्कारती भी है, कायरतापूर्ण समझौते करने की हमारी आदत में दख़ल भी देती है।
    साहित्य हमें अपने दैनन्दिन विचारों से बाहर निकालकर उन अभिव्यक्तियों के मैदान में ले जाता है जिसकी दूब की एक-एक पत्ती रचनाकार ने सँवारी होती है। यह यात्रा कितनी ही छोटी हो, कई अर्थों में नायाब होती है। हम नये तजुर्बों से रूबरू होते हैं, दुनिया के तमाम अनदेखे-अनसोचे संघर्षों को समझते हैं, जीवन की ऊष्मा को अपने अन्तर्जगत में कुछ इस तरह महसूस करते हैं जैसे हमारा कुछ छूटा हुआ हमारे पास उस रचनाकार की पंक्तियों  के माध्यम से वापस आ रहा हो।
    मनोज जी के सातों नवगीत हमें कुछ विशिष्ट अनुभूतियां देते हैं जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।
    वह स्वस्थ, प्रसन्न, सक्रिय और इसी तरह कवितामय रहें, उनके जन्मदिन के अवसर पर मेरी यह शुभकामना है।
सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी


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