बुधवार, 23 जुलाई 2025

एक जिंदगी क्या कह रही है- मनोज जैन

#गीत

#ज़िंदगी_क्या_कह_रही_है 

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खूबसूरत ज़िंदगी के पल तुम्हारे पास हैं,
फिर भला क्यों तुम उदासी 
ओढ़ कर बैठे हुए हो।
 
तनिक देखो घाट के भुजपाश में,
लिपटी नदी को,
खिलखिलाकर हँस रही है जोर से।

झाँककर देखो जरा भिनसार का,
यह रूप मनहर,
बहुत प्यारा लग रहा हर ओर से।

सृष्टि की खुशियाँ तुम्हारे पास हैं,
ज़िंदगी से फिर भला
मुख मोड़ क्यों बैठे हुए हो।

उड़ चला पाखी गगन में,
धूप से कर चार बातें।
हवा मद्धिम और ठंडी वह रही है।

चूसती मकरंद तितली,
भृंग मँडराया कली पर,
सुन जरा लो, जिंदगी क्या कह रही है?

सामने सत्यं शिवम है सुंदरम है,
और तुम नाता इसी से,
तोड़कर बैठे हुए हो।

मनोज जैन 
23/7/25

मंगलवार, 21 जनवरी 2025

मनोज जैन का एक नवगीत

एक नवगीत
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चुहिया से भी,
शेर डरेगा,
दबे बशर्ते जमकर नस।

निर्णय करती चतुर लोमड़ी,
सचमुच सुनने लायक है।
कोयल घोषित हुई कर्कशा,
कौआ सच्चा गायक है।

बकरा थानेदार
हो गया
भिड़ा लिया उसने टिप्पस।

पाला छूकर घोड़ा लौटा,
बस थोड़ा सुस्ताया है।
मसका मारा इधर गधे ने,
ढेंचू-राग सुनाया है।

फेल हो गया,
तुरकी घोड़ा
नम्बर मिले,गधे को दस।

चंट-फंट गीदड़ के आगे,
बाघ खड़ा मुँह लटकाए।
भगवा पहना बंदरिया ने,
सारा जंगल गुण गाए।

बूला उसका,
बिका हमेशा,
जिसकी हो बातों में रस।

हंसों के आवेदन ख़ारिज,
हुए पुरस्कृत गिद्ध सभी।
परिवर्तन के नए दौर में,
जंगल बदला अभी-अभी।

उल्लू बोला
हम राजा हैं
काहे का है असमंजस।

मनोज जैन
20/01/2025