पुस्तक समीक्षा
“बच्चे होते फूल से”
आज के बहुचर्चित गीत एवं नवगीतकार, मेरे अनुज, साहित्य सृजन में मेरे मार्गदर्शक, और देश के प्रतिष्ठित गीत-नवगीत-बालगीत साहित्यकार आदरणीय मनोज जैन 'मधुर' जी की बहुप्रतीक्षित बालगीत कृति “बच्चे होते फूल से” डाक से प्राप्त हुई।
पुस्तक के हाथ में आते ही मनमोहक कवर पृष्ठ ने प्रथम दृष्टि में ही मन जीत लिया। सुन्दर पुष्पों के साथ दो बच्चों का वह चित्र—जैसे किसी नदी के घाट पर बैठकर जल तरंगों से अठखेलियाँ कर रहे हों—बाल मन को आकर्षित करता है।
मुखपृष्ठ के पश्चात लेखक, प्रकाशक व मुद्रक की जानकारी प्राप्त होती है। अगले पृष्ठ पर मनोज जी ने इस कृति में लगे मानसिक व शारीरिक परिश्रम को विख्यात बाल साहित्य कल्याण केंद्र को समर्पित किया है, जो उनके साहित्य के प्रति समर्पण और उदार मनोवृत्ति को दर्शाता है।
शुभकामना संदेश अनुभाग में आदरणीय डॉ. विकास दवे (निदेशक, साहित्य अकादमी, म.प्र. शासन), आदरणीय महेश सक्सेना (सचिव/निदेशक, बाल कल्याण एवं साहित्य शोध केंद्र, भोपाल), सुप्रसिद्ध बालगीतकार डॉ. परशुराम शुक्ल, सुनील चतुर्वेदी, घनश्याम मैथिल, डॉ. अभिजीत देशमुख (लेप्रोस्कोपिक सर्जन), मनोज जी के साहित्यिक मित्र श्री सुबोध श्रीवास्तव, रचनाकार कविता सक्सेना एवं कुँवर उदयसिंह ‘अनुज’ जैसे विद्वानों ने मनोज जी को इस नवप्रयोग पर अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं।
आत्मकथ्य में लेखक ने बाल साहित्य सृजन की अपनी यात्रा को अत्यंत आत्मीयता से साझा करते हुए अपने शुभचिंतकों के सहयोग और संबल के लिए आभार व्यक्त किया है।
इस कृति में कुल 103 कविताएँ संकलित हैं। प्रथम पृष्ठ पर पाँच बाल पहेलियाँ हैं—यह एक सराहनीय प्रयोग है जो बच्चों के जिज्ञासु मन को विशेष रूप से आकर्षित करता है।
शीर्षक कविता "बच्चे होते फूल से" बच्चों के कोमल स्वभाव, नटखटपन, ममता, दया और करुणा जैसे भावों को अत्यंत सरस ढंग से प्रस्तुत करती है।
तीसरी कविता में माली काका के माध्यम से पर्यावरण-संवेदनशीलता, पशु-पक्षियों के प्रति करुणा और हरियाली के महत्व को रेखांकित किया गया है।
"चंट चतुर लोमड़ी", "मातादीन", "गिनती गीत", "प्यारी माँ", "जादूगर", "मेरी प्यारी दोस्त गिलहरी", "दिल्ली पुस्तक मेला" सहित सभी कविताएँ रोचक, सरस और सुरुचिपूर्ण हैं।
"हमारा प्यारा देश भारत" कविता भारत की विविधता में एकता और उसकी महिमा को बहुत सुंदर रूप में चित्रित करती है।
लोरी गीत, चूहों के सरदार, सैर सुबह की, पॉली क्लिनिक, पलकों पर बैठाओ पापा जैसी रचनाएँ बच्चों की मानसिक दुनिया को स्पर्श करती हैं।
इन सभी कविताओं में बाल मनोविज्ञान, मनोरंजन और नैतिक संदेश का समन्वय है। कई कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा अनुभव हुआ जैसे लेखक अपने बचपन की स्मृतियों में डूबकर उन्हें शब्द दे रहे हों।
यह आदरणीय मनोज जैन 'मधुर' जी की तीसरी कृति है। पूर्व की दोनों रचनाएँ भी गीत-नवगीत की श्रेष्ठ कृतियों में सम्मिलित रही हैं।
मैं मनोज जी को न केवल साहित्य के क्षेत्र में निकट से जानता हूँ, बल्कि उन्हें एक सच्चे साहित्य-साधक और पथ-प्रदर्शक के रूप में मानता हूँ। उनकी प्रतिभा, अनुशासन और साहित्य के प्रति समर्पण उन्हें आज देशभर में विशिष्ट स्थान दिला चुका है।
मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस अद्भुत कृति के लिए उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ।
संजय सुजय बासल
बरेली, जिला रायसेन, मध्यप्रदेश
मो. 9617541519
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