बाल किलकारी में प्रस्तुत है एक लोरी नवगीत
कवि विजय बागरी विजय जी की कलम से
प्रस्तुति 
वागर्थ
लोरी नवगीत
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चंदन  का   है  झूला
रेशम  की   है   डोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।
लेकर  परी  कहानी।
आजा निंदिया रानी।।
गुड़िया को आकर दे,
सपनों की गुड़धानी।।
झूला   तुम्हें  झुलाते
चंदा   और   चकोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।
थपकी दे  सहलाती
गीत प्यार  के गाती।
सपनों की फुलवारी
तुमको पास बुलाती।।
देगी   सुबह  'सुनंदा' 
भरकर  दूध  कटोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।
मेरी   गुड़िया  प्यारी
फूलों सी  सुकुमारी।
ममता के आँचल में
लगती   राजकुमारी।।
मेरी    लाडो   न्यारी
कंचन   जैसी   गोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।
----विजय बागरी 'विजय'