लोकप्रिय समूह वागर्थ में प्रस्तुत है एक नवगीत
प्रस्तुति
मनोज जैन
षष्ठीपूर्ति
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गाना,
जिसका मोल नहीं,
वह गाकर धन्य हुए।
षष्ठीपूर्ति
के आयोजन में,
जाकर धन्य हुए।
लघुता में भी हम विराटता!
मढ़ते चले गये।
ग्रंथ विमोचित हुआ क़सीदे,
पढ़ते चले गये।
पैग मार हम,
सघन मेघ-से,
छाकर धन्य हुए।
दया,धरम,ईमान,विधाता,
इनकी झोली में।
रस टपकाया हमने भी
शहदीली बोली में।
प्रायोजित,
उपहार लाख का,
पाकर धन्य हुए।
तिकड़म,गुणा,भाग,विज्ञापन,
लकदक शैली है।
हमनें निर्गुन स्वच्छ कहा, पर !
चादर मैली है।
झूठ बोल हम,
कसम राम की,
खाकर धन्य हुए।
मनोज जैन