सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

शीला पाण्डेय जी के नवगीत

~ ।।वागर्थ।। ~

    में आज पढ़ते हैं शीला पाण्डेय जी के नवगीत।

     शीला पाण्डेय जी साहित्यिक गलियारे का बेहद सक्रिय नाम हैं । आपके दो नवगीत संग्रह ' परों को तोल ' एवम्  ' गाँठों की करधनी ' प्रकाशित हो चुके हैं । आपके नवगीतों में व्यवस्था विरोध , सामाजिक विसंगतियाँ, स्त्री विमर्श , प्रेम एवम् लोकजीवन  के  सहज दृश्य उपलब्ध हैं । 
    उल्लेखनीय है कि आपने ' सूरज है रूमाल में ' नवगीत समवेत संकलन का संपादन किया । इस संकलन में विशेष श्रम और समय लगा इस महत्वपूर्ण नवगीत साझा संकलन पर नवगीत समाचोकों का ध्यान जाना चाहिए।हमारा अपना मानना है यदि काम हुआ है तो देर -सबेर बोलेगा ही ।
         वागर्थ आपको हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता है ।

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(१)

गाँठों की करधनी 
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भीत ढहाकर नींव खोदते ,
ईंट बिछाते हैं ।
नये मसीहा देश जोत
मजदूर उगाते हैं ।

सोने के सब महल बनेंगे ,
जन्नत के तहखाने भीतर ।
भोग-योग का न्यौता देंगें ,
मारेंगे सब विषधर, चीतर ।

सड़कों पर सैलाब बहाये ,
हमें जगाते हैं ।

काँधों-काँधों देश उठेगा ,
देश-विदेशी साथी लेकर .
हौदा रख प्राचीन मनौती ,
सज निकलेगा हाथी थेथर ।

झुंड-मुंड बलिदान चढ़ाकर 
भोग लगाते हैं ।

गाँठों की करधनी चीर से ,
पेट छुपाकर तन के ऊपर ।
गिरहस्थी का कलश शीश पर,
पैर थिरकते मन के ऊपर ।

निर्जन किलो हजारों मीटर 
पाँव भगाते हैं ।

(२)

 राजा ने आचार संहिता
जन-जन से स्वीकार करा ली ।

कर्ज़ा  डूबा, पूँजी डूबी
पूँजी पति की शान बढ़ी ।
यत्र-तत्र सर्वत्र चतुर्दिक 
बेनामी पतवार गढ़ी ।
नाव खेवइया राज सिपाही 
खेये तिरे विदेशी भूमि ,
उसी नाव से जनता ने भी 
अपनी गठरी पार करा ली ।

राजधर्म व्यापार सरीखा ,
राजा साहब दे निपटाये ।
झूठ, दम्भ, पाखंड हमेशा 
जिम्मेदारी कब ले पाये ।
इसी राह की संस्कृति बुनती 
जनता मनबढ़ चली हनक से,
रिश्ते-नाते, दीन धरम में
करके घातें, रार करा ली ।

राज-पाट का मान बेंच कर 
घाट-घाट का पाट बेंच दो
मानवता का वध कर के फिर 
लोकतंत्र को काट बेंच दो ।
खुली तिजोरी लूट-पाट के 
जनता के मुँह ताला जड़ना,
इसके -उसके सबके बाबत
चौतरफा  तलवार उठा ली ।

(३)

मौन में हलचल
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मौन में हलचल बड़ी है
शोर बाहर थम गया है
सिंधु सा तूफान गहरा
रोकने में दम गया है

घुमचियों के लाल- काले
रंग से दोनों जुडे हैं
ख़्वाब की यायावरी में
गंध केसर के उड़े हैं 

झर पड़े हैं फूल सारे
वायु में कुछ रम गया है ।

पंछियों, पेड़ों, हवाओं
ने नये अनुवाद पाए
बाजरों ने बालियों को
खत लिखे, प्रिय मुस्कराए

बाग़ का कचनार बहका
गूँजता सरगम नया है ।

पान में थोड़ा बताशा
सौंफ, मिसरी घुल गयी है
सुर्ख लम्हों में उनींदी
चाँदनी घुल-मिल गयी है 

प्रेम पगने की मधुरता 
में कहीं क्षण थम गया है । 
            
(४)

साग खोट लाएँ
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चलो चलें खेतों से
साग खोट लाएँ ।

माया, सुभद्रा
हे सखियाँ सहेली ,
धूप खिली जाड़े की
दोपहर नवेली ।

उठो, हाथ डलिया लो
सरसों और बथुआ
चना ओट लाएँ ।

गेहूँ के खेतों से
सरसों हैं पाये,
बथुआ भी कोंइछा में
फूला समाये ।

बातों का गलचउरा ,
हँसिनियाँ खेतों में,
झुकीं छोट जाएँ ।

नून, मिर्च, लहसुन
की चटनी, हथेली ।
धरे खेत बैठी है ,
पंगत, सहेली ।

अँचरा से पोंछ-पोंछ
चना खोट गाल भरें
हँसें लोट जाएँ ।

(५)

हमला  
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कर रहा सैय्याद हमला
बुलबुलें पिंजरों में जाएँ ।

बाहरी आबो-हवा की
लत लगेगी, धूप ओढ़ें ।
सीढ़ियाँ चढ़कर, खिलेंगे
नित नये कुछ फूल लोढ़ें ।

तरु किसी सत्ता की पहुँचें
फिर फलों को बीन खाएँ ।

संविधानों में कसी ये
क़ैद की विरुदावली भी ।
पालना पिंजरों में चूज़े,
थापना रोटी भली भी ।

सेविका बन जन्मना है ,
यह कहीं मत भूल जाएँ !

तीज, त्योहारों, महावर
की गठरियाँ फेंक भागें ।
आँख में फिर आँख डालें
बाज को भी मार टाँगें ।

घेर दें साँचें में उल्टे ही
घिरें, दीवार पाएँ ।

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परिचय
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नाम--शीला पांडे
जन्म--30 जनवरी 1968
शिक्षा--एम.एस.सी. ( कार्बनिक रसायन ), एम.ए ( प्राचीन इतिहास )

प्रकाशित कृतियाँ--
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बाल साहित्य--
सांची की गुड़िया ( बाल कहानी-संग्रह --चार संस्करण ), उत्तर भारत की लोककथाएँ
( बाल कहानी संग्रह-बाल लोक साहित्य -दो संस्करण ), भूली बिसरी लोककथाएं 
(बाल लोककथाएं 2021 )-【उपरोक्त तीनो के प्रकाशक --सूचना प्रसारण मंत्रालय,
भारत सरकार, प्रकाशन विभाग, दिल्ली 】ताल कटोरा--( बाल कविता- संग्रह ) 
【 न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली 】
निबंध-संग्रह--समय में घेरे--( साहित्य भंडार, इलाहाबाद )
कविता-संग्रह-
मुक्त पलों में ( अतुकांत कविता-संग्रह ), रे मन गीत लिखूँ में कैसे -गीत-संग्रह

परों को तोल( नवगीत-संग्रह --दो संस्करण ), गाँठों की करधनी ( नवगीत- संग्रह ) प्रलेक प्रकाशन मुम्बई

संपादन--
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सूरज है रूमाल में ( स्त्री नवगीतकर संचयन ) श्वेतवर्णा, दिल्ली, 21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ, उत्तर प्रदेश ( समवेत बाल कहानी संग्रह उ प्र) डायमंड बुक्स,दिल्ली

अनुवाद--
नील विहग( मोरिस मेटर लिंक--'ब्ल्यू बर्ड' ) यश  प्रकाशन, दिल्ली

प्रकाशनाधीन साहित्य--
आलोचना --
निर्वासिनी का युद्ध (आलेख-स्त्री-विमर्श ),पुस्तकों से गुजरते हुए ( समीक्षाएं ) एवं
अन्य ।
कृतियों पर शोध--
समय में घेरे ( निबंध-संग्रह ) पर एम.फिल.कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, हरियाणा

विशेष--10 दिवसीय 'लखनऊ पुस्तक मेला' की कार्यक्रम प्रभारी का दायित्व निर्वहन

पुरस्कार एवं सम्मान--
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पुस्तकों पर पुरस्कार--

उत्तर भारत की लोककथाएं--उ प्र हिन्दी संस्थान द्वारा बलभद्र प्रसाद दीक्षित 
सर्जना पुरस्कार 2014, एवं अन्य पुरस्कार
सांची की गुड़िया--उ प्र हिन्दी संस्थान द्वारा नामित सूर-पुरस्कार 2017, भारतीय
प्रकाशक संघ द्वारा बाल साहित्य 2016 प्रथम पुरस्कार, सलिला संस्थान सलूम्बर,
राजस्थान द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार 2019 एवं अन्य पुरस्कार ।
सम्मान---
साहित्य गौरव सम्मान 2017, 
( उ प्र राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान,लखनऊ द्वारा साहित्य परिक्रमा सम्मान 2019)
( अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा )
प्रोफ महेंद्र प्रताप स्मृति विशेष साहित्य सम्मान 2018, ( सांची की गुड़िया ) एवं
अन्य ।
संस्थापक एवं अध्यक्ष--

आकाशगंगा ,न्यास ( साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ) लखनऊ, भारत
साहित्यिक विदेश यात्रा
एवं आयोजन-- सिंगापुर, वियतनाम, कम्बोडिया और थाईलैंड ।
अध्यक्षता--- हिन्दी भाषा पर वैश्विक परिचर्चा
( भारतीय महावाणिज्य दूतावास,
वियतनाम -अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव )
वर्तमान---
स्वतंत्र लेखन के साथ आकाशगंगा न्यास के माध्यम से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक
गतिविधियों का आयोजन एवं संपादन ।
सम्पर्क---1/82 विक्रान्त खंड, गोमतीनगर, लखनऊ 226010
                मो 9935119848, 9140262314,
                ईमेल- sheelapandey657@gmail.com
                 Akashganga2019@gmail.com

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