श्विजय राठौर जी के व्यक्तित्व पर एक छोटी सी टिप्पणी की ईश्वरी यादव जी ने
जांजगीर-छत्तीसगढ़ निवासी श्री विजय राठौर जी लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार हैं।हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में इनकी 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।अनेक ग्रन्थों और पत्रिकाओं का इन्होंने संपादन किया है।ये छंदाचार्य हैं।समकालीन कविता,ग़ज़ल, सजल,दोहा, मुक्तक आदि की पस्तकों का इन्होंने प्रणयन किया है। 'वैदेही' इनका चर्चित खण्डकाव्य है।चंडीगढ़ की मंजीत इंदिरा के द्वारा इनके ग़ज़ल संग्रह 'मेरा और तुम्हारा चाँद' (2015)का 'शीशे दा घर' शीर्षक से पंजाबी भाषा में अनुवाद किया गया है।
गीत/नवगीत के सृजन में श्री विजय राठौर ने सर्वाधिक श्रम किया है।सन् 1993 से 2016 तक छः गीत संग्रह और सन् 2018 से 2024 तक इनके सात नवगीत संग्रह प्रकाश में आ चुके हैं।
श्री विजय राठौर गीतों/नवगीतों में छांदस शुचिता के पक्षधर हैं।इनके नवगीत टटके बिंबों,प्रतीकों,उपमानों और अर्थघन पदबंधों से बुने जाते हैं। काव्य-लेखन में इनकी त्वरा अद्भुत है।अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्राप्त शताधिक सम्मान और पुरस्कार इनकी सारस्वत साधना के परिणाम हैं।
ईश्वरी प्रसाद यादव
नाम-विजय राठौर
● जन्मतिथि-15. 3. 1950
● जन्म स्थान-जांजगीर छह.ग.
● पिता का नाम-स्व.बुद्धूराम राठौर
● माता का नाम -श्रीमती जलमती देवी
● पत्नी का नाम- श्री मती शैलेन्द्री देवी राठौर
● शिक्षा- बी एस सी
● सम्प्रति-सेवानिवृत्त अधिकारी
● पुस्तकों का नाम और प्रकाशन वर्ष-
1.गीत संग्रह-- अंजुरी भर धूप (1993)प्यासी लहरें(2005) दिन उजालों के(2012) स्मृतियों के दीप (2008)दर्द की अंतर्कथा (2016)कुछ आँसू कुछ फूल2014)
2.नवगीत संग्रह--संबन्धों में चीनी कम है 2018)फूल अमलतास के(2019)यह समय कितना कठिन है(2021) हैं सफर में पाँव मेरे(2022)पानी प्यास मरे(2024)
3.गजल संग्रह--मेरा और तुम्हारा चाँद (2001)जैसी दुनिया वैसा हूँ(2010)
4 . सजल संग्रह--चाँद पर घर बना के देखेंगे(2016) सच का गोमुख बन्द है (2018)सबके हिस्से में सूरज है(2019),रिश्तों की तुरपाई हो(2019) धूप बहुत है छाया कम(2020)बात करो तो मिश्री घोलो(2021) एक टुकड़ा धूप का(2022)छंदों की लहरों पर तैरती सजल(2021)आँख का यह सिंधु खारा है(2023)धूप की चिट्टियाँ(2023)छंदों की लहरों पर तैरती सजल -2 (2023)
5.मुक्तक संग्रह--रोशनी है तो रोशनी बाँटो(2014)
6.खण्डकाव्य--वैदेही(2012)
7.कविता संग्रह--ऐसे समय में(1995) हमें एक ईश्वर चाहिए2003) इत्यादि के पहले(2005) यह जो मेरा नहीं है (2015)पतली सी हँसी (2018)कलम की नोक पर(2020) खुरदुरे समय में (2024)
8. दोहा संग्रह- दोहे समकालीन
9.पंजाबी में अनुवाद-शीशे द घर(2010)
10.छंद संग्रह- छंदनुशासन(2021)
10.अन्य--मीठे जल में मछली पालन2000) मछली पालन आय का उत्तम साधन(2005)
● पिन कोड सहित पूरा पता
गट्टानी कन्या उ.मा.विद्यालय के सामने
जांजगीर 495668
जिला जांजगीर-चाम्पा
● मोबाइल नंबर9826115660
7987457490
● ईमेल-rathorevijay@gmail .com
एक
मैं न रहूँ लेकिन
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मैं न रहूँ लेकिन मेरे
गीतों की महक रहेगी कायम।
मैं तो एक हवा का झोंका
आज यहाँ कल नहीं रहूँगा।
दुनिया एक समय की धारा
कैसे कह दूँ नहीं बहूँगा।
मैं न रहूँ लेकिन मेरे
रुतबे की ठसक रहेगी कायम।
नश्वर है संसार मगर ये
बाग रहेंगे,फूल रहेंगे
नदियाँ होंगी,पर्वत होंगे
सभी सृष्टि के मूल रहेंगे।
मैं न रहूँ लेकिन पंछी की
मधुरिम चहक रहेगी कायम।
फीकी कर देगी इस तन को
ढलने वाली उम्र हमारी
सारे अवयव साथ छोड़ते
जाएँगे ही बारी-बारी
मैं न रहूँ लेकिन वसुधा की
सारी चमक रहेगी कायम।
विजय राठौर
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दो
पढ़ सको तो पढ़ो
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पढ़ सको तो पढो
मैं भी तार-सप्तक हूँ
ये न सोचो व्यर्थ हूँ, बिल्कुल निरर्थक हूँ।
इसी दम से आज सारी
सृष्टि चलती है।
जिंदगी गिरती हुई मुझसे
सम्हलती है।।
बंद दरवाजे खुलेंगे,एक दस्तक हूँ।
बात मेरी है लिखी,चलती हवाओं में।
व्याप्त हूँ मैं देख लो,चारों
दिशाओं में।।
विश्व के कल्याण का मैं ही प्रबंधक हूँ।
बीज को धारण करूँ,पोसूँ
उसे पालूँ।
आँसुओं के बीच जीवन गीत
मैं गा लूँ।
जन्म से सबको समर्पित एक सर्जक हूँ।
विजय राठौर
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तीन
शीर्षक बनकर तुम इतराते
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शीर्षक बन कर तुम इतराते
हमें हासिए पर रखते हो।
लोक लुभावन शब्दकोश तो
अब तक रही बपौती तेरी।
बात-बात में कर जाते हो
जाने कितनी हेरा- फेरी।।
सारे तलछट हमें बाँट कर
शुद्ध मलाई तुम चखते हो।।
नासमझी में हमने तुमको
चुनकर दिल्ली भेज दिया है।
तुम ही सोचो मिर्च चबा कर
हमने कितना रिस्क लिया है।।
नून-तेल को हम पिसते हैं
काजू किसमिस तुम भखते हो।।
तुम पाकिट में रखते ग्रह सब
हम पर रोज शनीचर भारी।
रोज तुम्हारा राजयोग है
हमको पीस रही लाचारी।।
हम गड़ते जाते धरती में
रोज मगर तुम नभ लखते हो।।
विजय राठौर
चार
पुस्तकों से लुप्त रोटी की कहानी
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देश का झुलसा हुआ
वातावरण है
धैर्य धरकर, शांत हों
यह आज क्षण है
आग में झुलसी हुई
दिखती जवानी
पुस्तकों से लुप्त
रोटी की कहानी
आज क्यों भटका हुआ
भावी चरण है
प्रश्न में लिपटी हुई
हैं योजनाएँ
हर कदम पर पिन
चुभाती हैं व्यथाएँ
जिंदगी में हर घड़ी
अब घोर रण है
है तिलस्मी ताकतें
अब शासकों में
झूठ की आई कला
अभिभाषकों में
अनसुना होने लगा
अंतःकरण है
विजय राठौर
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पाँच
शब्द को तलवार जैसे चलते हम
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डाल से
बिछड़े हुए
पत्ते नहीं हम
दर्द के
तूफान से
लड़ते हुए ही
दुश्मनों की
आँख में
गड़ते हुए ही
तोड़ते हैं
त्रासदी के
रोज ही दम
शब्द को
तलवार जैसे
चालते हम
और श्रम से
रोज सिक्का
ढालते हम
कुछ नहीं ,
पर हैं नहीं
सम्राट से कम
स्वाभिमानी हैं,
नहीं लेकिन
घमंडी
हम बिकें ऐसी
नहीं है मित्र!
मंडी
श्रेष्ठ हैं सबसे
न ऐसा
पालते भ्रम
विजय राठौर
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छह
नवगीत
अब न फँसेंगी वाग्जाल में
हैं भारी चालाक मछलियाँ
फँसती आई हैं जुमलों के
तेरे रण के चक्रव्यूह में।
अब हैं ये संगठित ताल में
निर्णय लेते हैं समूह में।।
तुमने क्या-क्या किया अभी तक
पूछ रहीं बेबाक मछलियाँ।
मुफ्त रेवड़ी बाँट-बाँट कर
चारे जैसा फेंक रहे हो।
आग लगाकर सद्भावों में
अपनी रोटी सेंक रहे हो।।
चाल नई किस भांति चलोगे
रोज रही हैं ताक मछलियाँ।।
महँगाई की धार तेज है
धीरज के तटबंध पुराने।
दल-दल से सड़ांध उठती है
बुनते नव-नव ताने-बाने।।
हक अपना पहचान गईं हैं
जमा रहीं अब धाक मछलियाँ।।
विजय राठौर
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