शनिवार, 14 अगस्त 2021

सुरेन्द्र वाजपेयी का एक नवगीत प्रस्तुति : ब्लॉग वागर्थ

सुरेन्द्र वाजपेयी 
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          वाराणसी के चर्चित नवगीतकार सुरेन्द्र वाजपेयी जी का एक नवगीत उनकी चर्चित कृति 'खेत में महल' से साभार कवि और कविता कॉलम में प्रस्तुत है।
                      वाजपेयी जी की रचना धर्मिता पर बात करते हुए कभी वीरेन्द्र मिश्र जी ने अपनी एक प्रतिक्रिया में कहा था कि, बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से वाजपेयी जी द्वारा व्यक्त आज का यथार्थ, प्रतिबद्ध नारों वाली कविताओं से कहीं अधिक प्रभाव छोड़ता है।

प्रस्तुत है एक 
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जनगीत
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काम है न काज है
जनता का राज है

सबके सब कटे हुए
मन ही मन बँटे हुए
जात-पाँत भेद-भाव
जगह-जगह डँटे हुए

रंग-ढंग बदला है
नाम का स्वराज है

नाम का हवाला है 
गड़बड़ घोटाला है 
धंधा ही अंधा है मुं
मुँह सबका काला है 

आन-शान दौलत है 
हया है न लाज है 

गंगा भी दूषित है 
विष लगता अमरित है 
नारों से वादों से 
लोकतंत्र पीड़ित है 

आज हर कबूतर का 
सरगना बाज है 

मंत्री अधिकारों में 
अधिकारी कारों में 
झूम रहे, घूम रहे 
बारों- दरबारों में 

कुरसी की माया है 
चमचों का ताज है

सुरेन्द्र वाजपेयी
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प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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