मंगलवार, 24 अगस्त 2021

बाल गीत मेरार रज़ा प्रस्तुति वागर्थ ब्लॉग

कविता- सुनो पेड़ जी

खड़े-खड़े हरदम रहते हो,
कुछ ना कहते, चुप रहते हो!
नीम, आम, जामुन, बहेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

कभी बैठकर हमसे बोलो,
दही-जलेबी खा ख़ुश हो लो!
ललचाए से खड़े भेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

मिट्टी से तुम जल लेते हो,
मीठे-मीठे फल देते हो!
खाएँ बच्चे औ' अधेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

करो सुखी जीवन की राहें, 
जो भी तुम्हें काटना चाहें; 
हम उनको देंगे खदेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!



कविता- बीज की चाह

दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना,
मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा!
कैसी होगी दुनिया बाहर,
सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा!

मीठा-मीठा पानी पीकर, 
अंकुर मैं बन जाऊँ! 
बढ़िया खाद मिले तो खाकर,
खिल-खिलकर मुस्काऊँ!

बाहर आकर धीरे-धीरे,
बड़ा पेड़ बन जाऊँ!
नीले-नीले अंबर नीचे,
हवा संग लहराऊँ!

नन्हीं चिड़िया मेरे ऊपर,
अपना नीड़ बनाए!
सुंदर मीठे गीत सुनाकर,
मेरा मन बहलाए!

तपती गर्मी से थककर जब,
राहगीर भी आए!
शीतल-शीतल छाया पाकर,
खुश तुरंत हो जाए!

तेज हवा के झोंके खाकर,
मीठे फल बरसाऊँ!
मेरे पास चले जब आओ,
तुमको ख़ूब खिलाऊँ!


बालगीत- बुढ़िया के बाल

खा लो, खा लो, जी भर खा लो,
मिठाई बेमिसाल।

घूम-घूम घिरनी से निकली,
मुँह में जाते ही मैं पिघली।
देखो, तो स्पंज लगूँ मैं,
रंग गुलाबी-लाल।

गली-मुहल्ले में जब जाऊँ,
सब बच्चों को मैं ललचाऊँ।
हल्की हूँ मैं रुई सरीखी,
रेशा-रेशा जाल।

मज़ेदार हूँ मैं खाने में,
चीनी मेरे हर दाने में।
हवा-मिठाई कह लो मुझको,
या बुढ़िया के बाल। 



कविता- जूँ

इल्लम-बिल्लम, झिल्लम झूँ,
काली-काली जूँ! जूँ! जूँ! 

बालों में की घुस-पैठी,
खून चूसकर है बैठी !

मुनिया का सिर खुजलाया,
उसको तो ग़ुस्सा आया!

जल्दी से कंघी लाई,
फिर जूँ की शामत आई!



कविता- सो गया घोड़ा खड़े-खड़े

नीचे सड़क, ऊपर पहाड़ी,
सड़क पर चली घोड़ा गाड़ी!

आगे गाड़ी, पीछे गाड़ी,
जाम हुआ अगाड़ी-पिछाड़ी!

पीं पो, पीं पो, चिल्लम चो,
धक्का-मुक्की, पिल्लम पो!

क्या हुआ भाई अरे, अरे,
सो गया घोड़ा खड़े-खड़े!



पहेली कविता- उजाला लाऊँ

सूरज चाचू सो जाएँ जब,
चुपके-चुपके आऊँ!
काले-काले गाँव-शहर में,
ख़ूब उजाला लाऊँ!

नीलगगन के चंदा-तारे,
नहीं दिया, ना बाती!
दही-बड़े, ना आइसक्रीम,
बिजली मुझको भाती!

बाबा एडीसन लाए थे, 
मुझको इस संसार में!
मेरा नाम बताकर झटपट,
रहो सदा उजियार में! 



कविता- पेड़ बहुत उपकारी

हरे-हरे पत्तों वाला मैं,
पेड़ बहुत उपकारी!
हरी-भरी धरती है मुझसे,
मैं कितना हितकारी!

फूल-पत्तियों और फलों से,
है गुणकारी काया!
थककर राहगीर जब आते,
पाते ठंडी छाया!

पाकर खूब हवाएं ताज़ी,
चलती जीवन-धारा!
हमें काट क्यों लाते अपने,
जीवन में अंधियारा!



बालगीत- अटकूं-मटकूं

अटकूं-मटकूं,
छत से लटकूं।

हौले-हौले
घर में आऊँ।
लारों से मैं
जाल बनाऊँ।
उन जालों पर
दौड़ूं, झटकूं।

मक्खी-मच्छर,
कीट फसाऊँ।
बहुत मजे से
उनको खाऊँ।
बच ना पाए
जिसको पटकूं।

सुलझे धागे
को उलझाऊँ।
बच्चों मकड़ी
मैं कहलाऊँ।
देख छिपकली
पास न फटकूं।

बालगीत-  आओ बतियाओ मम्मी

करो नहीं जी कुट्टी हमसे,
आओ बतियाओ मम्मी!

की गलती जो मैने उसकी,
सजा नहीं ये दो ना!
लगती बातें भली आपकी,
गुमशुम चुप बैठो ना!
मुझे बिठा गोदी में अपनी,
मुझको समझाओ मम्मी!

जानबूझ ना करना चाहूं,
गलती हो जाती है!
आप बताओ भला किसी को,
गलतियां सुहाती है?
माना हुई तकलीफ आपको,
अभी मुस्कुराओ मम्मी!

अरे आप हो प्यारी मम्मी,
मैं हूं बिटिया रानी!
वादा है जी नहीं करूंगी,
अब कोई शैतानी!
मीठा-मीठा गीत सुनाओ,
रस बरसाओ मम्मी!



बालगीत- दूँगा दाना-पानी

मेरा प्यारा गाँव छोड़कर,
कहाँ उड़ चली हो गोरैया!

दरवाजे पर देखो सूना,
खड़ा नीम का पेड़!
है आवाज़ लगाती तुमको,
वो छत की मुंडेर!
भूल गईं क्या गाँव सलोना,
यहीं पली थीं तुम गोरैया?

बना नीम पर एक घोसला,
करना यहीं बसेरा!
गूँजे मीठा कलरव फिर से,
जीवन डाले डेरा!
साथ चिरौटे को भी लाना,
भला एक भोली गोरैया!

जो आओगी आँगन मेरे,
दूँगा दाना-पानी!
रातों को मेरी दादी से,
सुनना रोज़ कहानी!
फुदक-फुदक आँगन में खाना,
भात, बाजरा, फल गोरैया! 



कविता- लगती साँप-सपोली

दौड़ूँ सर-सर पटरी-पटरी,
धूल उड़ाती आऊँ!
भीड़-भड़क्का, धक्कम- धक्का,
ख़ूब सवारी लाऊँ!

दिल्ली, पटना और आगरा, 
सारे शहर घुमाऊँ!
एक शहर से शहर दूसरे,
चक्कर रोज़ लगाऊँ!

दिखे जहाँ पर स्टेशन कोई,
वहीं ज़रा रुक जाऊँ!
चलने के पहले तेज़ी से,
दो सीटियाँ बजाऊँ!

बहुत दूर से देखो तो मैं,
लगती साँप-सपोली!
मुसाफ़िरों को लादे ख़ुद पर,
दौड़ूँ लेकर खोली! 



उत्तर दे दो 

पतली-दुबली काया मेरी,
लंबी, लाल, लचीली!
बहुत रसीली मैं रहती हूँ,
हरदम रहती गीली!

कैंची-सी चलती हूँ हरपल,
रहती नहीं हठीली!
दूध-मलाई मुझे लुभाए,
चाटूँ चार पतीली! 

खुश हो जाएँ लोग सभी,
जब बोलूँ बात चुटीली!
लेकिन बिगड़ी अगर कहीं तो,
बन जाऊँ जहरीली! 

कच्ची अगर मिले इमली तो,
होती बहुत पनीली!
दातों के पिंजरे में छुपकर,
रहती हूँ शर्मीली!

प्यारी-प्यारी गुड़िया रानी,
बनो नहीं नखरीली!
झट से इसका उत्तर दे दो, 
बोली बोल सुरीली!



चाँद मियां

बैठे हो कि खड़े हो,
या खाट पर पड़े हो!
झूल रहे झूला या
कहीं लटके पड़े हो!

ताड़ पर या झाड़ पर
कहाँ अटके पड़े हो!
घर के अंदर अपने
कितने बल्ब जड़े हो?

तारों के आंगन में
आकर भटके हो?
सच में चाँद मियां तुम
सबसे हटके हो!



बालगीत- नाच दिखाने आऊँ

रंग-बिरंगे पंख सुनहरे,
सबके मन को भाऊँ!

काले-काले बादल नभ में,
घुमड़-घुमड़ कर आए!
सन सन चले हवा सुहानी,
भौंरा गीत सुनाए!
तभी पंख फैलाए अपने,
नाच दिखाने आऊँ!

इंद्रधनुष से रंग चमकते,
सुंदर मेरे पँख!
लगता उनपर बने हुए हों,
नन्हे-नन्हे शंख!
अपने ऊपर ताज सजाकर,
राजा मै बन जाऊँ!




जीवन परिचय
मेराज रज़ा
पिता- मो. सिराज उद्दीन
माता- खैरूल निशा
जन्म स्थान- ग्राम- बाजिदपुर, थाना- विद्यापतिनगर, जिला- समस्तीपुर, राज्य- बिहार-848503
जन्मतिथि- 06.03.1988
शिक्षा- एम० ए० (राजनीतिशास्त्र), डी.एल.एड.
प्रकाशित पुस्तक- मेरे मन का फूल
प्राप्त पुरस्कार- 
हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, दरभंगा द्वारा आचार्य रामलोचन शरन शिखर बाल साहित्य सम्मान 2020।
संप्रति- शिक्षक
प्रकाशन- नंदन, चकमक, बालवाटिका, पाठक मंच बुलेटिन, अभिनव बालमन, उजाला, बच्चों का देश, साहित्य समीर दस्तक, संगिनी, बाल भास्कर,  बाल साहित्य की धरती, बाल किलकारी,  दी अंडरलाइन, बाल प्रभा, चिरैया बाल पत्रिका, प्रेरणा-अंशु, खुशबू मेरे देश की, संभावना सुरभि, हमारा बाल प्रभात, पंजाब केसरी, प्रभात खबर सुरभि, डेली हिंदी मिलाप हैदराबाद, पायस, पत्रिका समाचार भोपाल, पत्रिका समाचार पत्र जबलपुर, दैनिक वर्तमान अंकुर, हम हिन्दुस्तानी(USA), जय-विजय मासिक पत्रिका आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
संपर्क सूत्र- 9113731588
ईमेल- merajraza.bazidpur@gmail.com
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सादर
मेराज रज़ा
ग्राम+पोस्ट- बाजिदपुर,
थाना- विद्यापतिनगर,
जिला- समस्तीपुर,
बिहार-848503
मोबाइल-9113731588