मंगलवार, 24 जनवरी 2023

महेश कटारे सुगम जी के गीत नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ

महेश कटारे सुगम जी के गीत नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ
विरले कवि ही ऐसे होते हैं, जिनके हिस्से में जीते जी उनके सामने ही अपार यश आ जाता है। महेश कटारे सुगम ऐसे ही जनकवि हैं। आज महेश जी उम्र के सत्तरवें सोपान पर आ पहुँचे हैं। समूह वागर्थ जनकवि महेश कटारे सुगम को इस अवसर पर शुभकामनाएँ देता है।
प्रस्तुत हैं सुगम जी के 
गीत नवगीत

एक

बहिना ने राखी के कच्चे 
धागे भेज दिए 
पाती में लिख दिया की 
बीरन आ न पाऊंगी

गुड़िया का स्कूल ,
ललन की ज़िम्मेदारी है 
सासू माँ को गठुआ
और दिल की बीमारी है 
पीहर में इस बार मल्हारें 
गा न पाऊंगी .

उर्दा बोये थे खेतों में
मौसम मार गया 
खाद बीज जो भी 
डाला था सब बेकार गया
सूखे मन सावन की 
खुशियां मना न पाऊंगी .

गहने गिरवी रखे दूसरा 
बीज नया लाये
तब जाकर खेतों में 
फिर से बौनी कर पाए 
नंगे हाथ,गला लेकर मैं 
आ न पाऊंगी 

मन से टूट चुके वे रहना 
साथ ज़रूरी है 
ढाढस उन्हें बँधाना खुश 
रखना मज़बूरी है 
उन्हें अकेला छोड़ फर्ज मैं 
निभा न पाऊंगी 

भेंट क्वारें माँ को भौजी 
को दुलार कहना 
गुड़िया,लल्लन को फूफा 
का खूब प्यार कहना 
बाकी बातें मैं चिठिया में 
बता न पाऊंगी 

दो

जन कवि 
केदारनाथ अग्रवाल जी 
को समर्पित 

केन तट बैठे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

आज भी बहते हुए जल में 
कहीं कुछ ढूंढते हैं 
ऊँघती चट्टान से कुछ प्रश्न 
अब भी पूछते हैं 

धार से लिपटे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

ज़िंदगी जड़ता के चारों ओर
अब भी नाचती है 
धार में लेटी हुई चट्टान 
डूबा साधती है
दर्द से ऐंठे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

पूछते हैं धार से देखी कभी 
ऐसी निराशा 
पास ही होते हुए जल दिख 
रहा है घाट प्यासा 
प्रश्न पर लेटे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

रोज़ सूरज ऊँगकर सब को 
सवेरा बांटता है 
किन्तु दादुर के लिए कब ये 
अँधेरा काटता है 
जाल में सिमटे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

प्यार करते मछलियों से 
रोज़ दाना डालते हैं 
सर्प के विष दंत पैने खौफ 
बनते,सालते हैं 
प्यार में पैठे हुए हैं 
आज भी केदार बाबू 

तीन

कोई तुमसे प्यार करे तो 
क्यों बोलो 

तुमने जो पीठों में खंज़र 
घोंपे हैं 
धोखे ही धोखे अब तक तो 
सोंपे हैं 
कोई फिर जयकार करे तो 
क्यों बोलो 

माना मेरे सपने सभी 
अभागे हैं 
रात रात भर जो नींदों में 
जागे हैं 
मन उनको स्वीकार करे तो 
क्यों बोलो 

हरयाली का शोर हुआ 
सहराओं में 
खुशहाली का छद्म उगाया 
गाँवों में 
अब कोई आभार करे 
तो क्यों बोलो 
कोई तुमसे प्यार करे तो 
क्यों बोलो 

चार

नवगीत 

देखी देखी हमने देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

बैठी देखी चौपालों में 
हाथों के उभरे छालों में 
रोज़ रोज़ के जंजालों में 
चावल औ रोटी ,दालों में 
करती हुई मज़ूरी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

मन से डूबे अवसादों में 
घायल होते संवादों में 
जुड़े करों की फरियादों में 
भिक्षा जैसी इमदादों में 
बिन मोती की सीपी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

देखी सब्ज़ी के थैलों में 
देखी बाज़ारों मेलों में 
बेकसूर कैदी जेलों में 
ठुसे जानवर से रेलों में 
सह जाने की खूबी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

देखी भोजन की थाली में 
चिथड़े पहने घरवाली में 
माँ बहिनों वाली गाली में 
बीमारी और बदहाली में 
बेहद ही पथरीली देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

देखी है रूखे बालों में
फ़टे हुए चिथड़े गालों में 
बिन दरवाज़े ,बिन तालों में 
खाली कुठिया में आलों में 
फ़ैली बेतरतीबी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

देखी छप्पर औ छानों में 
देखी घुने हुए दानों में 
देखी देहरी ,दालानों में 
देखी खोती पहचानों में
पसरी हुई गरीबी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी

देखी है दुनियादारी में 
हर नाते रिश्तेदारी में 
पाने की मारामारी में 
वफादार में गद्दारी में 
सारी दुनिया डूबी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 
सीमाओं पर लड़ते देखी 

शिखरों पर भी चढ़ते देखी 
कोठी,बंगले गढ़ते देखी 
दुःख,दर्दों में सड़ते देखी 
पर खुशियों से दूरी देखी 
मुफ़लिस की मज़बूरी देखी 

पाँच

पलक पलक पर आंसू बैठे 
दिल में बैठे गम 
कहाँ आ गए हम

रिश्तों की तस्वीरों में 
नफरत के रंग भरे 
त्याग तपस्या की चौखट पर 
कर्म सभी बिखरे 
कदम कदम पर धोखे बैठे 
डगर डगर पर तम 
कहाँ आ गए हम 

जंग लगे संघर्षों के बल 
समाधान चाहें 
बुढयाये सिद्धांत बताते 
रहे गलत राहें 
चुके हुए नारे के नीचे 
झुके हुए परचम 
कहाँ आ गए हम 

नकद मुनाफों के चक्कर में 
घाटे भूल गए 
खतरनाक साज़िश के झूले 
हंसकर झूल गए 
समझौतों की गलत नीति को
समझ लिया मरहम
कहाँ आ गए हम 

छह

ये रंग फरेबी उतरेगा 
ये नशा कभी तो टूटेगा 

जब स्वप्न सुनहरे बिखरेंगे
अरमान सभी ज़ख़्मी होंगे 
विश्वास का सूरज डूबेगा 
चर्चित चेहरे दागी होंगे 
मुद्दत से मौन चाहतों का 
जब धैर्य प्रतीक्षित छूटेगा

जब राष्ट्रवाद का छद्म रूप 
नफ़रत की फ़सल उगायेगा 
संकीर्ण सोच की घुटन तले 
भाई चारा मर जायेगा 
ये पूंजीवादी सोच सुनो 
सुख,शांति सभी की लूटेगा

जब तथाकथित उद्धारक ये 
कश्कोल हमें पकड़ा देंगे 
अपनी तिजोरियां भर लेंगे 
जीवन को नर्क बना देंगे 
जब काम न होगा हाथों को 
लावा बन गुस्सा फूटेगा

इस मंहगाई की मार सभी 
जब सह सहकर थक जायेंगे 
लाचार तरक्की के पहिये 
जब घिसटेंगे, रुक जायेंगे 
तब जन मानस का ये रेला 
गाली दे, मिट्टी कूटेगा

सात

जिन लोगों ने तेल लगाया 
उन लोगों का काम हो गया 
मैंने बात न्याय की, की तो 
नाम मेरा बदनाम हो गया 

दो घोड़ों पर पैर जमाकर
लूट रहे हो हंसा हँसाकर
जाने कितने घर फूंके हैं 
रामायण की कथा सुनाकर
कितनी बार कहा है छोडो 
अवसरवादी ये परिभाषा 
बस इतनी सी बात बताई 
तो काला परिणाम हो गया 

इसे तोडना ,उसे बनाना 
इसे गिरना उसे उठाना 
उनके इस बेहूदेपन से 
तंग आ गया सभी ज़माना 
मैं बोला आचरण सम्भालो 
कहने लगे बने रहने दो 
बस इतनी सी बात कही तो 
मेरा चैन हराम हो गया 

खींचा अज़ब तरह का पाला 
फिर उसको काला कर डाला 
बोले ,इस पर चलो किन्तु हाँ 
पैर तुम्हारा पड़े न काला 
मैं बोला यह तर्क नहीं है 
बोले तर्कहीन बन जाओ 
मेरे नामुमकिन कहने पर 
बस आखिरी सलाम हो गया 

आठ

झूठे प्रेम समंदर से तुम 
मुझको दूर खड़ा रहने दो 
वरना मेरे विश्वासों का 
नाहक खानदान टूटेगा 

अपनी मोहक मुस्कानों से 
मेरे मन को करो न गंदा 
पाखंडी शीतल आहों से 
तप्त हृदय को करो ना ठंडा 
जहर बुझी अमृतवाणी की
तुम मुझ पर बरसात मत करो
वरना मेरी कड़वाहट का 
नाहक स्वाभिमान टूटेगा

अपने सिंदूरी सपनों को
मेरे पास नहीं आने दो
खुशियों को बेमन पीड़ा से 
पीड़ित गीत नहीं गाने दो 
शहनाई के सामंती स्वर
मेरे द्वार नहीं छेड़ो तुम
वरना मेरे दुख दर्दों का 
नाहक मान पान टूटेगा

पीड़ा मेरे घर सोई है 
दस्तक देकर नहीं जगाओ 
मेरी विधवा इच्छाओं से 
नहीं व्याह का ढोंग रचाओ
बार बार कहता हूं देखो 
धन दौलत का गुमाँ मत करो
वरना दबे हुए शोलों का
तुम पर आसमान टूटेगा

परिचय
________

नाम-महेश कटारे "सुगम"
जन्म.. 24 जनवरी 1954 में ललितपुर जिले के पिपरई गाँव में.
प्रतिष्ठित हिंदी पत्र पत्रिकाओं हंस,नया ज्ञानोदय,इंडिया टुडे,इन साइड, इंडिया,साक्षात्कार,प्रयोजन,कला समय, कथादेश,वीणा,अविलोम,इंगित,निकट, अभिव्यक्ति,संविदा, साहित्य भारती, म. प्र.विवरणिका,वर्तमान साहित्य,हरिगंधा, लहक,साहित्य सरस्वती, स्पंदन, नान्दी, अक्षर शिल्पी, राग भोपाली,शब्द शिखर, बुंदेलखंड कनैक्ट,अविलोम,शब्द संगत, व्यंग्य यात्रा,सरिता,इंद्रप्रस्थ भारती,अर्बाबे कलाम,अनामा,शुचि प्रिया,सुख़नवर, सरस्वती सुमन,संबोधन,समकाल, इलैक्ट्रॉनिकी,भू भारती,कहानियाँ मासिक चयन,कथाबिंब,सुमन,सौरभ,पराग, लोटपोट,बाल भारती,अच्छे भैया,देवपुत्र, चकमक आदि में रचनाएँ प्रकाशित.

प्रकाशन..... 
उपन्यास
रोटी पुत्र
कहानी संग्रह
1.....प्यास.
2......फसल
कविता संग्रह
पसीने का दस्तख़त.
नवगीत संग्रह
तुम कुछ ऐसा कहो.
बाल गीत संग्रह
हरदम हंसता गाता नीम.
लंबी कविता
1....वैदेही विषाद.
2.......प्रश्न व्यूह.
ग़ज़ल संग्रह
आवाज़ का चेहरा, दुआएँ दो दरख़्तों को, सारी खींचतान में फ़रेब ही फ़रेब है, आशाओं के नये महल, शुक्रिया, अयोध्या हय हय, ख़्वाब मेरे भटकते रहे, कुछ तो है, ऐसी तैसी, ला हौल बला कुब्बत,प्रतिरोधों के पर्व.
बुंदेली गजल संग्रह
गाँव के गेंवड़े, बात कैसे दो टूक  कका जू, अब जीवे कौ एकई चारौ, कछू तौ गड़बड़ है, सुन रये हौ.
ग़ज़ल गलियारा सीरीज़ के पांच ग़ज़ल संकलन संपादित
संपादन
महेश कटारे "सुगम "का रचना संसार.(डाॅ.संध्या टिकेकर) . 
महेश कटारे " सुगम " की श्रंगारिक ग़ज़लें ( प्रवीन जैन) . 
सम्मान..... हिंदी अकादमी दिल्ली  सहभाषा सम्मान,जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान ग्वालियर (म.प्र.),स्पेनिन सम्मान रांची ( झारखंड),जनकवि नागार्जुन सम्मान गया ( बिहार) , लोकभाषा सम्मान दुष्यंत संग्रहालय भोपाल ( म. प्र.)  गुंजन साहित्य सदन जबलपुर म.प्र. द्वारा लोक साहित्य अलंकरण सहित अनेक महत्वपूर्ण संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
पुरस्कार
कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (कथा बिंब) मुंबई
रामनारायण शास्त्री (स्वदेश) कथा पुरस्कार म. प्र.
उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में सम्मिलित.
कुछ विश्वविद्यालयों से शोध
पता-काव्या चंद्रशेखर वार्ड, माथुर कालोनी बीना, जिला सागर, म. प्र. पिन 470113
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मेल आईडी- prabhatmybrother@gmail.com