धरम की ध्वजा ले खड़े चौधरी जी
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उठो रे सुज्ञानी जीव, जिनगुण गाओ रे! निशि तो नसाई गई भानु को उद्योत भयो ध्यान को लगाओ प्यारे नींद को भगाओ रे
उठो रे सुज्ञानी जीव !
आदरणीय प्रमोद भाईसाहब से सबसे पहले परिचय का आधार, जहाँ तक मुझे स्मरण है, यही पँक्तियाँ बनी थी। जैन नगर में स्थित नन्दीश्वर जिनालय के किसी आयोजन में भाईसाहब यह पद डूब कर पढ़ रहे थे। पद शैली की अदायगी में एक किस्म का आकर्षण था जिसे सभागार में विराजमान हर एक भावक मन महसूस कर सकता था।
आरम्भिक परिचय से उनके सरल-तरल मन और भक्ति-भाव की आस्तिकता के आस्वाद को आसानी से पहचाना जा सकता था। भाईसाहब का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी है। उनके कृतित्व का आँकलन उनके द्वारा पोषित, संचालित और निर्देशित संस्थानों से होता जो उनके संरक्षण में निरन्तर फल और फूल रही हैं।
राजधानी भोपाल से पहले ऐतिहासिक नगरी चन्देरी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। फिर बात चाहे,औषधालय की हो या पाठशाला की या फिर शैक्षणिक संस्थान की। उन्होंने जो काम अपने हाथ में लिया उसे प्राणपण से पूरा किया।
आज तीर्थ धाम नन्दीश्वर जी की धमक पूरे भारत में महसूस की जा सकती है। अपने आप में अनूठा और अद्वितीय तीर्थ। यह सब प्रमोद भाईसाहब की निष्ठा और लगन का सुपरिणाम है।
प्रमोद जी, समाजसेवियों में अनूठे और विरल हैं जो, समाज को एकसूत्र में पिरोंने की सोच रखते हैं और तदनुरूप योजनाओं का क्रियान्वयन भी करते हैं।
धर्मआयतनों का संरक्षण हो या कोई अन्य धार्मिक अनुष्ठान भाईसाहब की भूमिका सदैव अग्रणी होती है।
आज हमारी समाज के गौरव और समाज के रत्न आदरणीय प्रमोद भाई साहब जी का जन्मदिन है। इस अवसर पर प्रसंगवश मुझे तुलसी का एक दोहा याद आ रहा है, जो मैं पूरी समाज की तरफ से, आदरणीय भाईसाहब को पूरी निष्ठा के साथ समर्पित करना चाहता हूँ।
तुलसी कहते है कि-
"मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक। पाले पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।
यह हम सबका सौभाग्य है कि हम लोग भी तुलसी के दोहे में वर्णित ऐसे ही मुखिया के संरक्षण में, विभिन्न संस्थाओं से जुड़कर उनके अनुभव संसार से बहुत कुछ सीख रहे हैं।
प्रमोद भाईसाहब शतायु हों! स्वस्थ्य रहें! और हम सबको अपने स्नेह और आशीर्वाद से अभिसिंचित करते रहें। भाईसाहब के प्रेरक व्यक्तित्व और कृतित्व से बहुत कुछ ग्रहण किया जा सकता है। आप उन्हें कभी भी, कहीं भी, किसी भी, समय धार्मिक अनुष्ठान या धर्मायतन की चर्चार्थ आमन्त्रण दें,!
भाई साहब धरम की ध्वजा लेकर अग्र पंक्ति में खड़े दिखाई देंगे।
मनोज जैन "मधुर"
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106, विट्ठलनगर
गुफामन्दिर रोड
लालघाटी भोपाल
462030
उठो रे सुज्ञानी जीव,जिनगुण गाओ रे
निशि तो नसाई गई भानु को उद्योत भयो
ध्यान को लगाओ प्यारे नींद को भगाओ रे उठो रे सुज्ञानी जीव
भववन चौरासी बीच,भ्रमे तो फिरत नीच
मोहजाल फन्द परयो,जन्म-मृत्यु पायो रे उठो रे सुज्ञानी जीव
आरज पृथ्वी में आय, उत्तम जन्म पाये
श्रावक कुल को लहाये,
मुक्ति क्यों न जाओ रे॥
उठो रे सुज्ञानी
विषयनि राचि-राचि, बहुविधि पाप साचि-२
नरकनि जायके, अनेक दुःख पायो रे ॥ उठो रे सुज्ञानी. ॥४॥
पर को मिलाप त्यागि, आतम के जाप लागि-२
सुबुद्धि बताये गुरु, ज्ञान क्यों न लाओ रे॥ उठो रे सुज्ञानी. …॥५॥