शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

कवि धनञ्जय सिंह जी के दो गीत प्रस्तुति~।।वागर्थ।।~


कवि धनञ्जय सिंह जी के दो गीत
प्रस्तुति

~।।वागर्थ।।~

एक

बहुत दिनों के बाद 
आज कुछ पत्र लिखे
पहला पत्र लिखा अपने ही नाम 
किये और भी ऐसे ही कुछ काम!

पत्र लिखा मन के मौसम को
आओ और छा जाओ 
और लिखा फिर दुस्स्वप्नों को
अब अपने घर जाओ 

मुझको देना अब 
निंदियारी आशा को आराम!

पत्र लिखा मञ्जुल भावों को
रचो सुमंगल गीत 
और लिखा फिर विश्वासों को
रहे अबाधित प्रीत 

कुत्सा पर लग जाए जिससे
अविचल पूर्ण विराम!

पत्र लिखा बंधुत्व भाव को
सबके हृदय मिलाओ
तेरा-मेरा करे तिरोहित 
वह परिपाटी लाओ

विश्व-मनुजता सरसे
धरती स्वर्ग बने अभिराम!
और मने तब सुख-समृद्धि का
उत्सव ललित-ललाम!

दो

गीतों के मधुमय आलाप 
यादों में जड़े रह गये
बहुत दूर डूबी पदचाप 
चौराहे पड़े रह गये!

देख-भाल लाल-हरी बत्तियाँ
तुमने सब रास्ते चुने
झरने को झरीं बहुत पत्तियाँ
मौसम आरोप क्यों सुने

वृक्ष देख डाल का विलाप 
लज्जा से गड़े रह गये!

तुमने दिनमानों के साथ-साथ 
बदली हैं केवल तारीखें
पर बदली घड़ियों का व्याकरण 
हम किस महाजन से सीखें

बिजली के खम्भे से आप
 एक जगह खड़े रह गये!

वह देखो नदियों ने बाँट दिया
पोखर के गड्ढों को जल 
चमड़े के टुकड़े बिन प्यासा है
आँगन-चौबारे का नल

नींदों के सिमट गये माप 
सपने ही बड़े रह गये!

धनञ्जय सिंह
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