टुकड़ा कागज़ का
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समूह वागर्थ के एडमिन श्री अनिल जनविजय जी ने पिछले दिनों, कुछ गीत वागर्थ में चर्चार्थ हमें उपलब्ध कराए थे, जिन्हें समूह के सम्मानीय सदस्यों ने जमकर सराहा। आज उन्होंने वागर्थ के आत्मीय पाठकों को एक और नया नवगीत उपलब्ध कराया है, जिसे हम सहर्ष समूह में पाठकों की प्रतिक्रियार्थ जोड़ रहे हैं।
अनिल जनविजय पर कवि नागार्जुन का गहरा असर है। नागार्जुन और त्रिलोचन वैसे भी उनके प्रिय कवि रहे हैं। ये दोनों कवि उनकी रचनाओं में भी झलक रहे हैं।
आइए, पढ़ते हैं अनिल जनविजय जी का नवगीत
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
टुकड़ा कागज़ का
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चलो ! डस्टबिन ढूँढें,
डालें,
टुकड़ा कागज़ का
पिछड़ेपन की पृष्ठ-पृष्ठ पर,
भूमि मिली हमको।
सीता जी को लेकर जैसे,
राम चले वन को।
कन्ने,बांधें और
उड़ालें
टुकड़ा कागज़ का।
पढ़ी,भूमिका दकियानूसी,
फर्जीवाड़ा था।
लगा गधे के स्वर में जैसे
सिंह दहाड़ा था।,
है तो जाली, नोट
तुड़ालें,
टुकड़ा कागज का।
गड़बड़झाला हुआ छंद में,
गहरा लोचा था।
सोचा, कवि निकलेगा चोखा
लेकिन पोचा था।
इससे, पीछा चलो,
छुड़ालें,
टुकड़ा कागज़ का।
अनिल जनविजय
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