शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

रामकिशोर नाविक जी का एक गीत प्रस्तुति : वागर्थ

वागर्थ में आज 
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रामकिशोर नाविक जी के एक गीत के बहाने दो जरूरी बातें।
    प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
  
                 चर्चित कवि रामकिशोर नाविक जी के गीत को हम अपने पाठकों को बहुत पहले से पढ़वाने का मन बना चुके थे। इस सन्दर्भ में हम लगातार उनकी फेसबुक वाल पर नजर बनाए हुए हैं। नाविक जी कई रचनाएँ समूह के स्तर से मेल खाती हैं, पर उनके साथ एक बात जो मुझे कहीं न कहीं अरुचिकर लगती थी, वह यह कि उन्होंने हर पोस्ट में अपनी खुद की फ़ोटो गीत के साथ जोड़ रखी है, जो कही-कहीं तो बहुत जरूरी है और बहुत से सन्दर्भों में गैर जरूरी भी।
          खैर, यह उनकी निजी जिंदगी और निजी मामला है। हमें इससे क्या लेना और क्या देना। जब तथाकथित पत्रिकाओं के फर्जी संपादक अपने नकली पाठकों के सम्मुख खुद को ही प्रस्तुत करते आ रहे हों और हर बार स्वयं के ही फ़ोटो कव्हर पेज से लेकर अन्तिम पृष्ठ तक सिर्फ "मैं ही में हूँ दूसरा...कोई नहीं।
     फिर चाहे अप्रासंगिक और गैर जरूरी ही क्यों न हो! सिर्फ मैं ही मैं!
         फिर हम जैसे सामान्य व्यक्ति की बिसात ही क्या! सम्पादक बेड रूम !!!सम्पादक वॉश रूम में !!!!!सम्पादक छत पर!!!! सम्पादक विमान में!!!! सम्पादक आम खाते हुते!!!! सम्पादक !!!!.इधर सम्पादक !!!!!..उधर सम्पादक !!!!ऊपर !!!!सम्पादक !!!!नीचे!!!!!
खुद का ही बोलबाला !!!! जय हो इस मुग्धता की।
      बहरहाल हमें मिला एक बड़े महत्व का गीत जिसे हम उठा लाए हैं नाविक जी की वाल से नाविक जी के बहाने यह बात बहुत दूर तक पहुचने वाली है। तो लीजिए नाविक जी के एक गीत का आनन्द।
    प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~

जंगल मीठे फल देते हैं
बादल मीठा जल देते हैं
लाड़ प्यार धरती माँ देती,
                  हम आपस में छल देते हैं

सब कुछ उसने दोनों हाथों
जी भर-भर के हमें लुटाया
कहने को  इंसान  हुये हम
मानवता का  मान  घटाया
देने   वाले   ने   दे   डाला,
                  फिर क्यों आप दख़ल देते हैं

माँ का आँचल शीतल पाया
और पिता   मंगलमय छाया
रिश्तों  के  मोती  की  माला
तोड़ी तो सब कुछ खो डाला
पावन  रिश्ते ही  हम सबको
                      जीने  का  संबल   देते  हैं

क्यों  पेड़ों को  काट  रहे हो
क्यों  धरती को  पाट रहे हो
क्यों नदियों को मोड़ रहे हो
क्यों पर्वत को  तोड़ रहे  हो
कुछ तो सोचो ये सब रोको,
                        जीनेे  के  ये  पल  देते   हैं

सागर से  गहरे  हो  लें  हम
नदियों से  पावन हो लें हम
झरनों  से  शीतल  हो जायें
जंगल  सा  चिंतन  पा जायें
सतयुग के भागीरथ हमको,
                       अब  तक  गंगाजल  देते  हैं

                                 रामकिशोर नाविक
                                 8319472047
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