गीत
प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ
आज किसी से
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आज किसी से,
मिलकर,
यह मन जी भर बतियाया।
लगा कि जैसे,
हमने,
अपने ईश्वर को पाया।
स्वप्न गगन में मन का पंछी,
उड़ता,चला गया।
बतरस के,अपनेपन से,
मन,जुड़ता चला गया।
लगा कि जैसे किसी,
परी ने,
गीत नया गाया।
एक पहर में,कसम उठा ली,
युग जी लेने की।
पीड़ा का विष मिले जहाँ,
मिल-जुल पी लेने की।
उमड़ा प्रेमिल भाव,
परस्पर,
पल-पल गहराया।
सन्दर्भों से जुड़े देर तक,
कहाँ-कहाँ घूमे।
मेहँदी रची हथेली छूकर,
मन अपना झूमे।
मोहक मुस्कानों का,
मन को,
पर्व बहुत भाया।
आज किसी से,
मिलकर,
यह मन जी भर बतियाया।
मनोज जैन
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