मनोज जैन का एक नवगीत
हमारी
राजन ! राखो लाज
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हमारी
राजन ! राखो लाज ।
घोटाले हैं इतने सारे,
खुलें न इनके राज।
हमारी,
राजन ! राखो लाज ।
संविधान की शपथ उठाकर
काला पीला कीना।
कहने भर को सत्यव्रती थे,
हक़ दूजों का छीना।
समझाया था हमें जगत ने,
हमीं न आए बाज ।
हमारी,
राजन ! राखो लाज ।
हर-हर गंगे कहकर हमने,
जमकर नदिया लूटी।
रेत माफ़िया को दे ठेके,
जी भर चाँदी कूटी।
जहाँ-जहाँ हम गए गिराई,
पावर वाली गाज ।
हमारी
राजन ! राखो लाज ।
करतूतों की लिस्ट कहें क्या,
बेहद लम्बी-चौड़ी।
वादों वाली ट्रेन सभी के,
सम्मुख सरपट दौड़ी।
हो जाए ना,
राजन ! हमको,
कहीं कोढ़ में खाज ।
हमारी,
राजन ! राखो लाज ।
जस की तस हम धरें चदरिया,
अबकी ऐसा कर दो।
सब कुछ ले लो स्वामी हमसे,
पर हमको यह वर दो।
हम हैं थर-थर,
कँपती चिड़िया,
तुम हो उड़ते बाज ।
हमारी,
राजन ! राखो लाज ।
मनोज जैन