शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

मनोज जैन का एक नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग

मनोज जैन का एक नवगीत

हमारी
राजन ! राखो लाज
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हमारी 
राजन ! राखो लाज ।

घोटाले हैं इतने सारे,
खुलें न इनके राज।
हमारी,
राजन ! राखो लाज ।

संविधान की शपथ उठाकर 
काला पीला कीना।
कहने भर को सत्यव्रती थे,
हक़ दूजों का छीना।
समझाया था हमें जगत ने,
हमीं न आए बाज ।

हमारी,
राजन ! राखो लाज ।

हर-हर गंगे कहकर हमने,
जमकर नदिया लूटी।
रेत माफ़िया को दे ठेके,
जी भर चाँदी कूटी।
जहाँ-जहाँ हम गए गिराई,
पावर वाली गाज ।

हमारी
राजन ! राखो लाज ।

करतूतों की लिस्ट कहें क्या,
बेहद लम्बी-चौड़ी।
वादों वाली ट्रेन सभी के,
सम्मुख सरपट दौड़ी।
हो जाए ना,
राजन ! हमको,
कहीं कोढ़ में खाज ।

हमारी,
राजन ! राखो लाज ।

जस की तस हम धरें चदरिया,
अबकी ऐसा कर दो।
सब कुछ ले लो स्वामी हमसे,
पर हमको यह वर दो।
हम हैं थर-थर,
कँपती चिड़िया,
तुम हो उड़ते बाज ।

हमारी,
राजन ! राखो लाज ।

मनोज जैन