मेरी तीन बाल कविताएँ
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
एक
जाओ स्वेटर लेकर आओ
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खौं खौं खें खें करते रहते,
फिक्र नहीं है मेरी।
जाओ श्वेटर लेकर आओ,
करो न अब तुम देरी।
भोलू बंदर पड़ा सोच में,
बोल नहीं कुछ पाया।
किंतु रिझाने बंदरिया को,
उसने प्लान बनाया।
कूँद-फाँद कर बंदर पहुँचा,
एक भेड़ के घर में।
बोला बहिना मदद करो कुछ,
दर्द बहुत है सर में।
ठंड कड़ाके की है बाहर,
काँप रहा हूँ थरथर।
थोड़ी ऊन हमें तुम दे दो,
दया करो कुछ हम पर।
सुनकर भेड़ तैश में आई,
बोली प्यारे भाई।
आज जरूरत तुम्हें बहन के,
द्वारे तक ले आई।
बंदर भाई भूल गए क्या,
दया न हमसे माँगो।
माँगे जामुन तब तुम बोले,
चलो यहाँ से भागो।
दो
मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की
प्रस्तुति
मनोज जैन
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बढ़ता बजन देखकर अपना,
पड़ी सोच में बिल्ली।
रामदेव का योग सीखने,
मैं जाऊँगी दिल्ली।
स्लिम ट्रिम दिखूँ तभी मैं खोलूँ,
ब्यूटी पार्लर अपना।
सँजो रखा बिल्ली मौसी ने,
एक सलौना सपना।
बैठ गई बंदे भारत में,
पहुँची सुबह सबेरे।
मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की,
मित्र मिले बहुतेरे।
ताड़ासन में खड़ा हुआ था,
मोटा काला हाथी।
अलग अलग आसन में बैठे,
दिखे हजारों साथी।
एक टाँग पर खड़े हुए थे,
बकुल बने थे योगी।
भगवा पहने शेर महाशय,
बने हुए थे जोगी।
प्राणायाम किया बकरी ने,
सबके मन को भाया।
गोरिल्ला ने लटक डाल पर,
करतब नया दिखाया।
ऊंट कमर को सीधा करने,
कूबड़ के बल लेट।
करबट लेते धीरे-धीरे,
अपना बजन समेटे।
हाथों के बल खड़े हुए थे,
तगड़े बंदर मामा।
कदकाठी से लगते जैसे,
पहलवान हो गामा।
योग शिविर में बिल्ली जैसे
जाकर बैठी आगे।
बजनी चूहे तभी कूँदकर जान
बचाकर भागे।
तीन
विटामिन डी
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सर्दी के दिन आते हैं।
मन को बहुत लुभाते हैं।
आओ सभी पहाड़ पर,
बोला शेर दहाड़कर।
बंदर बोला आते हैं।
भालू को भी लाते हैं।
बिल्ली से भी कह देना,
हम सब जंगल जाते हैं।
पीछे से बकरी बोली।
भेड़ हमारी हमजोली।
तुम पहुँचो हम आए जी,
जंगल मन को भाए जी।
पहुँचे सब जलपान पर।
शेर डटा चट्टान पर।
पहले थोड़ा गुर्राया,
फिर मीठा गाना गाया।
बोला तुम सब न्यारे हो।
मुझे जान से प्यारे हो।
अभी विटामिन डी लो जी,
खुली धूप में खेलो जी।
©मनोज जैन