एक और बाल गीत
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बात हमारी
पूरी हो
मोबाइल से
दूरी हो
साध्य नहीं
यह साधन है
न ही यह
नारायन है
क्या है इसमें
ऐसा जी
जो इतना
मनभावन है
देखें इसको
जी भरकर
जब जब बहुत
जरूरी हो
यह भी एक
महामारी
मजबूरी या
लाचारी
चस्का बुरा
इसे छोड़ो
समझा समझा
माँ हारी
सजा दिलाए
इसकी जो
ऐसी कोई
जूरी हो
रिश्ते कभी
अटूट रहे
वे सब के सब
छूट रहे
नेट कम्पनी
वाले सब
मिलकर
चाँदी कूट रहे
झाँको बाहर
भाई जी
सन्ध्या जब
सिंदूरी हो
हमसे बचपन
छीन रहा
बना हमें
यह दीन रहा
जड़ से जुड़े
हुए दादू
उनका यही
यकीन रहा
चलो चलें
उस झरने पर
जिसकी धुन
सन्तूरी हो
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