सोमवार, 12 सितंबर 2022

रमेश रंजक के नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ

आज रमेश रंजक जी की जयन्ती पर उन्हें याद करते हुये ...


(1)

एक दीगर मार
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सह रहा हूँ
एक दीगर मार...
कैदखाने  के  झरोखे  से
   वही तो कह रहा हूँ

दीखते मुस्तैद पहरेदार,
कंठीदार   तोते
      टूटते लाचार खोखे

कुछ न पूछो
किस तरह से दह रहा हूँ
              सह रहा हूँ

चन्द बुलडोजर
सड़क की पीठ पर तैनात,
हाँफती-सी, काँपती-सी,
           आदमी की जात

उफ !
कलम होते हुए 
पाबन्दियों में रह रहा हूँ
            कह रहा हूँ ।

(2)

सम्बोधन झूले
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सुधियों की अरगनी बाँध कर सम्बोधन झूले
सहन भर गीत फूल-फूले

सर्वनाम आकर सिरहाने
माथा दबा गया
अनबुहरा घर लगा दीखने
फिर से नया-नया
तन-मन हल्का हुआ, अश्रु का भारीपन भूले

मिली, खिली रोशनी, अँधेरा
पीछे छूट गया
ऐसा लगा कि दीवाली का
दर्पण टूट गया
लगे दीखने तारे जैसे हों लँगड़े-लूले

हवा किसी रसवन्ती ऋतु की
साँकल खोल गई
होठों की पँखुरी न खोली
फिर भी बोल गई
सम्भव है यह गन्ध तुम्हारे आँचल को छू ले

दमक उठे दालान, देहरी
महकी क्यारी-सी
लगी चहकने अनबोली
बाखर फुलवारी-सी
झूम उठे सारे वातायन भीनी ख़ुशबू ले

(3)

ईमान की चिनगी
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हाय रे ! ईमान की चिनगी !
जोहती है बाट सारी उम्र
उजले एक दिन की

एक दिन यह यों नहीं आता
कि जैसे आम आते
टूट जाते हैं न जाने
किस तरह कितने अहाते

फूस के पाँवों तले
चिकनी छतें दिखतीं मलिन-सी

चटक मैले घाघरे
घुटनों उठी धोती किसानी
कामगर चिक्कट कमीज़ों का
चिपकता ख़ून-पानी

उफन कर तस्वीर सारी
बदल देता है पुलिन की

(4)

गीत-विहग उतरा 
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हल्दी चढ़ी
पहाड़ी देखी
मेंहदी रची धरा ।
अँधियारे के साथ
पाहुना गीत-विहग उतरा ।

गाँव फूल-से
गूँथ दिये
सर्पिल पगडण्डी ने ।
छोर फैलते 
गये मसहरी के
झीने-झीने ।

दिन,
जैसे बाँसुरी बजाता
बनजारा गुज़रा ।

पोंछ पसीना
ली अँगड़ाई
थकी क्रियाओं ने ।
सौंप दिये
मीठे सम्बोधन
खुली भुजाओं ने ।

जोड़ गया 
सन्दर्भ मनचला 
मौसम हरा-भरा ।

(5)

अजगर के पाँव दिये 
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अजगर के पाँव दिये जीवन को
और समय को डैने ।
ऐसा क्या पाप किया था मैंने ?

लहरों की भीड़ मुझे धकिया कर
जा लगी किनारे ।
झूलता रहा मेरा तिनकापन
भाग्य के सहारे ।

कुन्दन विश्वासों ने चुभो दिये
अनगिन नश्तर पैने ।
ऐसा क्या पाप किया था मैंने ?

शीशे का बाल हो गई टूटन
बिम्ब लड़खड़ाये
रोशनी, अँधेरे से  कितने दिन
और मार खाये ?

पूछा है झुँझला कर राहों से
पाँवों के बरवै ने ।
ऐसा क्या पाप किया था मैंने ?
 
(5)

संक्षिप्त परिचय -
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नाम : रमेश रंजक ।
मूल नाम : रमेश उपाध्याय ।
उपनाम : रंजक । 
जन्म : 12 सितम्बर, 1938 ई.। 
गाँव नदरोई , ज़िला-अलीगढ़, उत्तरप्रदेश । 
माँ : श्रीमती सुख देवी उपाध्याय । 
पिता : पं. दाताराम उपाध्याय ।

शिक्षा :
 प्राथमिक परिषदीय प्राथमिक शाला नदरोई, अलीगढ़। ग्यारहवी कक्षा उच्च.माध्य.आर्य विद्या.एटा। बारहवीं माहेश्वरी इंटर कालेज, अलीगढ़ । बी.ए.धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ । एम.ए.,एम.एम.एच.कालेज गाजियाबाद से तथा बी.एड.,धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ उ.प्र. से ।

प्रकाशित कृतियाँ :

[1] 'किरन के पाँव' नवगीत संग्रह ।
 [2] 'गीत विहग उतरा' नवगीत संग्रह ।
 [3] 'हरापन नहीं टूटेगा' नवगीत संग्रह।
 [4] 'मिट्टी बोलती है' नवगीत/जनगीत संग्रह । 
[5] 'इतिहास दुबारा लिखो' नवगीत/जनगीत संग्रह।
[6] 'रमेश रंजक के लोकगीत'
 [7] 'दरिया का पानी' नवगीत ग़ज़ल, कविताएँ । 
[8] गोलबंदी : बतर्ज़ आल्हा एक प्रबंधात्मक लंबी कविता । 
[9] 'अतल की लय' नवगीत, कविताएँ । 
[10] 'पतझर में वसंत की छवियाँ' नवगीत, कविताएँ ।

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