रूपम झा के सात नवगीत
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रूपम झा पूरे नवगीत परिदृश्य में धारदार कथ्य के नवगीत लिखने के लिए पहचानी जाती हैं। रूपम के नवगीत जनगीत के निकट हैं। इन दिनों पूरी हिंदी पट्टी में कवयित्री रूपम झा के नवगीत उनके समकालीनों में सबसे अच्छे हैं। इसका ठोस प्रमाण यह है कि रूपम के पास समकालीन भाषा के साथ-साथ नवगीत/जनगीत सर्जन के लिए परिपक्व वैचारिक दृष्टि है।
आइए पढ़ते हैं रूपम झा के नवगीत
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
1
झूठे किस्से नहीं सुनाओ
हम सच्चाई जान रहे हैं
किसने जीवन में
फैलाये हैं अँधियारे
कैसे डूबी है
जनता की नाव किनारे
लूट रहा है कौन हमारा
पाई-पाई जान रहे हैं
जान रहें हैं किसने
घर-घर आग लगाई
किसने बच्चों के
हाथों दी दियासलाई
इतने भी हम मुर्ख नहीं हैं
हर चतुराई जान रहे हैं
लोकतंत्र को
भीड़तंत्र में बदला किसने
श्रापों को है
आज मंत्र में बदला किसने
कौन यहाँ है बस बातों का
हातिमताई जान रहे हैं
2
कैसे सब कुछ
ठीक-ठाक है
हर दिन ही घुसपैठ
बढ़ रही
सत्ता के मुँह
जमी है दही
बातों में बस
चीन-पाक है
हैं किसान-मजदूर
मर रहे
घर के अंदर
लोग डर रहे
क्या होगा कल
मन आवाक है
वे दलदल में
आज गड़े हैं
अंधियारे के
साथ खड़े हैं
हाथों में
जिनके पिनाक है
3
सबके पास सवाल बहुत हैं
लेकिन कहीं जवाब नहीं हैं
किससे पूछें
हर आँखों में
तैर रही है बस लाचारी
काट रही है
धीरे-धीरे
हमको महँगाई की आरी
फिर भी खड़े लुटेरों के सँग
इन आँखों में आब नहीं है
धीरे-धीरे
मर जाएँगी
अधिकारों की सारी बातें
दिन के हिस्से में
श्रम होगा
फिर भी होंगी भूखी रातें
आखिर कल पाएँगे क्या हम
जब आँखों में ख्वाब नहीं है
हर दिन कितना
खोया हमने
और अभी हर दिन खोना है
अगर न समझे
चक्रव्यूह तो
फँसना है, केवल रोना है
मोबाइल पैठा है मन में
सच की कहीं किताब नहीं है
4
धीरे-धीरे ख्वाब हमारे
हुए बहुत बदरंग
मनाएँ कैसे उत्सव
महँगाई की सेवइयाँ को
बाँट रहा है ईद
आँसू बनकर टपक रहे हैं
आँखों से उम्मीद
रोजगार से रोज हो रही
इन हाथों की जंग
मनाएँ उत्सव कैसे
पाँवों में छाले रिसते हैं
अंतड़ियों में ऐंठ
दीप बुझाकर रोज अँधरा
करता है घुसपैठ
दीवाली भी खोज रही है
अब अपनों का संग
मनाएँ उत्सव कैसे
ईंधन नहीं मिला है उनको
चूल्हे हैं चुपचाप
भूखे पेट करेंगे कबतक
राम नाम का जाप
होली मनी किसानों के घर
खून हो गये रंग
मनाएँ उत्सव कैसे
5
जंग लड़ेगा चिड़िया खुद ही
इन तीखे नाखूनों से
रोक नहीं सकता अब कोई
मन में उसने ठान लिया
आसमान तेरे मंसुबों
को भी उसने जान लिया
ऊपर है मरहम-सी बातें
मन में बसी वासना है
चिड़िया समझ रही आँखों में
बाकी पानी कितना है
बातों में आएगी ना अब
कह दो बात नमूनों से
चिड़िया अब अपने पंखों से
आसमान को भेदेगी
जो आँखें चुभती है तन को
उन सब को बह छेदेगी
और करेगी बेवश होकर
अब चिड़िया फरियाद नहीं
अब तब जो कुछ होता आया
होगा इसके बाद नहीं
नहीं सहारा चाह रही वो
अब अंधे-कानूनों से
6
हँसो कि दुख की घटा न छाए
हँसों कि फूल-फूल खिल जाए
दुख से भरी पड़ी दुनिया में
हँसना बड़ा काम होता है
हँसने और हँसाने वाला
जग का अमर नाम होता है
सुख के नये रास्ते ढूँढो
हँसों कि दुख इस ओर न आए
रोकर जीने से क्या मिलता
अमृत भी विष बन जाता है
रोने वालों को देखो तुम
तन जाता है, मन जाता है
रोकर आखिर मिलना क्या है
हँसो कि धरती भी इतराए
आया नहीं मुझे दुख ढोना
सुख की राह बनाई मैंने
हँसी और मुस्कानों से ही
अपनी जगह सजाई मैंने
हँसो हमेशा मेरे जैसा
दुनिया और हसीं हो जाए
7
कैसे बया गीत गायेगी
चारों ओर शिकारी है
धीरे-धीरे उसने कर दी
अपनी बंद उड़ान
घात लगाए बैठे हैं सब
मुश्किल में है जान
मन से टूटे हुए ख्वाब की
जंग अभी तक जारी है
ख़ुद अपने ही चोचों से वह
तोड़ रही है पंख
घर से बाहर देख रही है
बढ़ा हुआ आतंक
माँस नोचने के मंसूबे
मानवता पर भारी है
घात लगाए आसमान में
घूम रहा है बाज
और दूर से देख रहा है
उसको तिरंदाज
सोच-सोचकर मन ही मन वह
हार गयी बेचारी है
परिचय
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नाम: रूपम झा
जन्म: 1991, शासन, समस्तीपुर, बिहार।
शिक्षा: एम. ए. ( मैथिली एवं हिन्दी )
नेट उत्तीर्ण: मैथिली भाषा
प्रकाशित कृति: मैथिली दोहा-संग्रह - 'चान ओलती ठाढ़ अछि'।
साहित्य अकादमी द्वारा अनुवाद
१.मलियालम से मैथिली
उपन्यास "सूफी परंज कथा",
लेखक के.पी.रामनुण्णि
अनुवाद:
बाल कथा-संग्रह 'अंतरिक्षमे गुनगुन'
लेखक - मनोज कुमार झा।
सम्मान - प्रभात खबर दैनिक अखबार द्वारा-- अपराजिता सम्मान 2019
पं रामानुज त्रिपाठी सृजन संस्थान (उत्तर प्रदेश) द्वारा -- रामानुज त्रिपाठी स्मृति गीत साहित्य सम्मान 2022
विश्वंभर फाॅउण्डेशन (झारखंड) द्वारा -- विजयलक्ष्मी युवा सम्मान 2023
विधा: कथा, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, दोहा।
विशेष : हिन्दी और मैथिली भाषा में निरंतर लेखन ।
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