वागर्थ में आज
एक गीत
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अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
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बीच भंवर में ,
छोड़ अकेला,
कहाँ सिधार गए।
अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
अयोध्या!
हम क्यों हार गए?
नाम तुम्हारा लेकर हमने,
जनता को उकसाया।
धरमी और विधर्मी वाला,
जंतर काम न आया।
हमें लहर में छोड़ अकेला
तुम तट पार गए।
अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
अयोध्या!
हम क्यों हार गए?
हमने माया रची निरन्तर,
लोगों को भरमाया।
नाम तुम्हारा लेकर निकले,
लेकिन काम न आया।
संसद में,
राहू की छाया
हम पर डार गए।
अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
अयोध्या!
हम क्यों हार गए?
दाएँ-वाएँ दो बैसाखी,
कैसे बजन टिकाएँ।
भीतर-भीतर रोते रहते,
बाहर से मुस्काएँ।
हम लाये थे तुम्हें,
हमें तुम,
ज़िंदा मार गए।
अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
अयोध्या!
हम क्यों हार गए?
दक्षिण से सेंगोल उठाकर,
हम संसद में लाए।
फिर भी सारे जुलुम हमारे
सिर पर तुमने ढाए।
किए धरे सब
जतन हमारे,
सब बेकार गए।
अयोध्या !
हम क्यों हार गए?
अयोध्या!
हम क्यों हार गए?
मनोज जैन
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