मंगलवार, 9 जुलाई 2024

टिल्लू वर्मा जी का एक नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग



वागर्थ में पहली बार
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         ।वरिष्ठ पत्रकार टिल्लू वर्मा जी जबलपुर मध्यप्रदेश से आते हैं। पिछले कई वर्षों से आप बिलासपुर छत्तीसगढ़ में रह रहे हैं। आप बहुत अच्छे गीत लिखते हैं। समूह वागर्थ के प्रशंसक आदरणीय अशोक बक्शी जी ने हमें टिल्लू वर्मा जी के कुछ गीत प्रकाशनार्थ, कुछ समय पूर्व भेजे थे। उनमें से हम एक गीत आप सभी के अवलोकनार्थ आपसे साझा कर रहे हैं। सामग्री सहयोग के लिए समूह अशोक बक्शी जी का कृतज्ञ मन से आभार व्यक्त करते हैं। 
    प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~

जाने किस माटी का बना है 
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भूखा है फिर भी तना है
जाने किस माटी का बना है

चंद चीथड़ों वाला भेष
पिचके गाल, बिखरे केश
जिस्म पसीने से सना है
जाने किस माटी का बना है

भले गालियां दिन भर खाता
लेकिन सिर तक नहीं उठाता 
कहना कुछ भी उसे मना है 
जाने किस माटी का बना है

उसे जुलूसों में है जाना
लाठी,गोली सहना खाना
बजता है, झुनझुना है
जाने किस माटी का बना है

कहीं दिखे वो बोझ ले भारी 
कहीं हथौड़ा या लेकर आरी 
हर जरुरत ने उसे जना है 
जाने किस माटी का बना है

अधिकारों का ज्ञान नहीं 
इसीलिए सम्मान नही
अंधकार अब भी घना है 
जाने किस माटी का बना है

गैरों जैसे अपने देखे
उसने भी कई सपने देखे
अब पागल अनमना है 
जाने किस माटी का बना है

दो वक्त का दाना-पानी 
मिटी इसी में भरी जवानी 
बाकी बस होना फना है 
जाने किस माटी का बना है

जाने किस माटी का बना है
भूखा है फिर भी तना है

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