अनूप अशेष के पाँच नवगीत :
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
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नवगीत को समर्पित चर्चित समूह~।।वागर्थ।।~
अपने पाठकों के लिए स्तरीय सामग्री जोड़ने के लिए इन दिनों खासा चर्चा में हैं।हमें इस बात का कोई मुगालता नही है कि हम यह कार्य अनूठा या अपने आप में यूनिक कर रहे हैं। इससे पहले भी अनेक साहित्यिक अनुरागियों ने अपने-अपने स्तर पर तत्कालीन चर्चित माध्यमों से,साहित्य के संवर्धन में अपने-अपने स्तर पर नया जोड़ा है।आगे भी यही उपक्रम जारी रहेगा।इसी क्रम में हम भी गहन तिमिर को (यत्किंचित ही सही) नष्ट करने के लिए अपनी तरफ से रोज एक दीप भर प्रज्ज्वलित करते हैं और यह क्रम अनेक मित्रो के ना चाहते हुए भी जारी रहेगा!हमारी आस्था गुटवाजी में ना पहले थी ना आगे रहेगी।स्तरीय सामग्री जहाँ से मिलेगी बेझिझक हम वहाँ से सेंधमार कर उसे पाठकों तक पहुँचाएँगे।
सेंध मारने को लेकर चौंकिए मत हमने यह सामग्री भी अन्य माध्यमों से ही आपके लिए जुटाई है।
आज प्रस्तुत हैं
राष्ट्रीय स्तर पर सही मायने में अत्यन्त चर्चित कवि अनूप अशेष जी के पाँच नवगीत
प्रस्तुति
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मनोज जैन
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~।।वागर्थ।।~
आवाजों के खो जाने का दुख कितना / अनूप अशेष
एक
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आस-पास की आवाज़ों के खो जाने का
दुख कितना।
खालीपन कितना-कितना?
बाँस-वनों के साँय-साँय
सन्नाटों-सा
सब डूबा-डूबा,
खुद में होकर भी
जाने क्यों
बस्ती का मन ऊबा-ऊबा।
एक टेर थी नदी किनारे
गीला-मन
कितना-कितना?
यह आंतरिक प्रसंग
हुआ जाता
कुछ बाहर,
बूढ़ों से बच्चों तक जुड़ते
पेड़ों के रिश्ते
जैसे घर।
थोड़ी देर हवा का रुकना
काँपा तन
कितना-कितना?
दो
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आम के हैं पेड़ बाबा / अनूप अशेष
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आम के हैं पेड़ बाबा
पिता फल
नाती टिकोरे हैं ।
भात में है दूध
रोटी में रहे घी,
पोपले मुँह की
असीसें
हम रहे हैं जी ।
नीम की हैं छाँह बाबा
खाटें अपनी
रहे जोरे हैं ।
खेल में घुटने
दुकानों रहे खिसे,
मीठी गोली
बात में बादाम-से पीसे ।
शाम की ठंडई बाबा
धूप दिन के
रहे घोरे हैं ।
भूख की कोरों में गीले
फूल में सरसों,
पिता में कुछ ढूँढ़ते
जैसे रहे बरसों ।
खेतों की हैं मेंड़ बाबा
धान-गंधों
रहे बोरे हैं ।
तीन
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दोपहर कछार में रहें
दिन मेरे चार ये रहें।
महुआ की कूँचों से
गेहूँ की बाली तक,
शाम की महकती
करौंदे की डाली तक।
आँगन कचनार के रहें
दिन मेरे चार ये रहें।
सारस के जोड़े
डोलें अपने खेत में,
हंसिए के पाँवों
उपटे निशान रेत में।
बाँहें आभार को गहें
दिन मेरे चार ये रहें।।
छोटी-सी दुनिया
दो-पाँवों का खेलना,
गमछे में धूल भरे
अगिहाने झेलना।
पुटकी को प्यार से गहें
दिन मेरे चार ये रहें।।
चार
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दुख पिता की तरह / अनूप अशेष
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कुछ नहीं कहते
न रोते हैं
दुख
पिता की तरह
होते हैं
इस भरे तालाब से
बाँधे हुए
मन में
धुआँते से रहे ठहरे
जागते तन में
लिपट कर हम में
बहुत चुपचाप
सोते हैं।
सगे अपनी बाँह से
टूटे हुए
घर के
चिता तक जाते
उठा कर पाँव
कोहबर के
हम अजाने में जुड़ी
उम्मीद
बोते हैं।
पाँच
माँ के घर बेटी है/
मकड़ी के जाले हैं
बाँस की अटारी
सीने में बैठी है
भूख की कटारी।
माँ के घर बेटी है
दूर अभी गौना
चूल्हे में
आँच नहीं
खाट में बिछौना,
पिता तो किवाड़ हुए
सांकल महतारी।
खेतों से बीज गया
आँखों से भाई
घर का
कोना-कोना
झाँके महँगाई,
आसों का साल हुआ
सांप की पिटारी।
पीते घुमड़े बादल
देहों का पानी
मथती
छूँछी मटकी
लाज की मथानी,
बालों का तेल हुई
गाँव की उधारी।
छह
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बहुत गहरे हैं पिता / अनूप अशेष
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बहुत गहरे हैं पिता
पेडों से भी बड़े
उँगलियाँ
पकड़े हुए हम
पाँव में उनके खड़े ।
भोर के हैं उगे सूरज
साँझ-सँझवाती,
घर के हर कोने में उनके
गंध की थाती ।
आँखों में मीठी छुअन
प्यास में
गीले घड़े ।
पिता घर हैं बड़ी छत हैं
डूब में है नाव,
नहीं दिखती
ठेस उनकी
नहीं बहते घाव ।
दुख गुमाए पिता
सुखों से
भी लड़े ।
धार हँसिए की रहे
खलिहान में रीते,
ज़िन्दगी के
चार दिन
कुछ इस तरह बीते ।
मोड़ कितने मील आए
पाँव से
अपने अड़े ।
अनूप अशेष / परिचय
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अनूप अशेष की रचनाएँ
पूरा नाम अनूप सिंह बघेल। म. प्र. के सतना जिले के गाँव सोनौरा में पिता स्व. लाल उदय सिंह के घर ७ अप्रैल १९४५ को जन्म। शिक्षा सतना कालेज से हिंदी में एम. ए। डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित। उनके विभिन्न आंदोलनों में कई बार लंबी जेल यात्राएँ। अब स्वतंत्र लेखन।
गत ४० वर्षों से राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं - धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान, नया प्रतीक, कादंबिनी, रविवार, साक्षात्कार, अक्षरा, गगनांचल, अक्षर पर्व, समकालीन हिंदी साहित्य, अवकाश, सांध्य मित्रा, आकंठ, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, परस्पर, अंतराल इत्यादि अन्य पत्रिकाओं में बहुतायत से नव गीतों का प्रकाशन।
प्रकाशित कृतियाँ -
१ लौट आएँगे सगुन - पंछी। (नवगीत संग्रह)
२ वह मेरे गाँव की हँसी थी। (नवगीत संग्रह)
३ हम अपनी ख़बरों के भीतर।(नवगीत संग्रह)
४ अंधी यात्रा में (काव्य नाटक)
५ मांडवी कथा (नवगीत विधा में प्रथम प्रबंध-काव्य) तथा स्व. डॉ. शंभुनाथ सिंह संपादित 'नवगीत दशक-२', "नवगीत अर्द्धशती" - में संकलित कवि।
शोध -
दिल्ली के अध्यापक सौरतन सिंह आज़ाद द्वारा "अनूप अशेष के नवगीतों का शिल्प सौंदर्य" विषय में शोध ग्रंथ। अन्य शोधार्थियों द्वारा शोध आलेख प्रकाशित।
सम्पर्क : अतुल मेडिकल स्टोर, हॉस्पिटल रोड, सतना- 485 001 (मध्यप्रदेश)
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