बुधवार, 23 जून 2021

ब्लॉग वागर्थ प्रस्तुत करता है वरिष्ठ कवि रामकिशोर मेहता जी की समकालीन कवियाएँ



वागर्थ ब्लॉग में प्रस्तुत हैं कवि रामकिशोर मेहता जी की समकालीन कविताएँ

1

 होली में 
________
           


कुछ चोली की
कुछ दामन की 
श्रृंगार  की
बातें होली में ।
तुम आओ तो 
हो जाएं 
कुछ प्यार की 
बातें  होली में। 

स्मित मुस्कान  हो
होठों  पर 
और  बाँहों  में 
अभिनन्दन  हो
हो मृदुलगात
स्पर्श हटात
और अंगों  मे
स्पन्दन हो
हो अधरों  पे धरे
अधरों  में  जले
श्रृंगार  की बातें 
होली में। 

कुछ रंग के छींटे 
हम पे पड़े 
कुछ तुम  पर भी हो
छींटाकशी ।
सुकुमार उल्हाने
तुमको मिले
कुछ हम पे भी 
तानाकशी। 
हो पिचकारी
हो सिसकारी 
हों बौछार की बातें 
होली में। 

जब झूमती गाती 
भाभी हो
मदमस्त 
दीवाने  हों देवर।
अधबीच हृदय में 
अटकी हो
साली की नजर
तिरछे तेवर।
कुछ चित की हों
कुछ चितवन की 
चितहार की बातें 
होली मे।।


 (कोरोना महामारी के बावजूद लाखों लोगों के कुम्भ  स्नान और चुनाव की रेलियों  में शामिल होने पर) 
2
   गैस चैंबर
             रामकिशोर मेहता 

आश्चर्य हुआ था पढ कर
कि कभी कभी 
कुछ जीव करते है 
सामूहिक आत्महत्या। 

आश्चर्य हुआ
देख कर 
 कि किस तरह
बेग पाईपर की धुन पर
चूहों की तरह 
पीछे पीछे दौड़ने लगे हैं आदमी । 

समझ में आया
कि कैसे 
गैस चैंबर  में
बदलने लगा है देश।
3
 अपने सिपाही बेटे से 
_______________
              

इतना याद रखना
मेरे सिपाही!
मेरे बेटे!
कि तू 
किसी राजशाही के
हुकुम का गुलाम नहीं,
कि तू एक स्वतंत्र  देश का
स्वतंत्र  नागरिक है
कि तेरे हाथ में
जो बंदूक  है
और उसमें जो गोली है
वह मेरे 
गाढ़े पसीने की कमाई  है
और वह गोली
किसी को पहचानती नहीं
पर तू तो पहचानता है
कि कल रात
तू ने जो रोटी खाई थी
वह किसी किसान की
मेहनत की कमाई  थी।
और
वीर तू जानता है 
नमक का मान रखना
और वे जो पूँजीपतियों के दलाल 
वातानुकूलित  कमरों में बैठ कर
हुक्म  दे रहे होते हैं 
कोई खेती  नहीं करते
नमक की भी नहीं।
4
आशंक
 _______       

हो सकता है
कि यह मेरी
अपनो के प्रति
आशंका ही हो
पर मैं  समझ नहीं पाता हूँ
कि कैसे कोई सत्ताधीश
करोड़ो बीमारो की
भूखों,नगो
बे घर बारों की
चिन्ता से मुक्त हो
बजा सकता है बाँसुरी।
मुझे डर लग रहा है
कि महाभारत 
अब दूर नहीं है।

5
 अयाचित उद्घोष
   ___________               

पृथ्वी पर देश है
देश में शहर है
शहर में घर है
घर में पिंजरा है
पिंजरे में कैद है तोता
बंद है दरवाजा पिंजरे का।
उड़ने की 
किसी भी संभावना को
खत्म करने के लिए
कतर दिए गए हैं
तोते के पर
और
बिठा दिया गया है
बिल्ली को पहरे पर।
पूर्व निरधारित कर दिया गया है
तोते का काम
भजना है राम राम
उसके बाद ही मिलती है
तोते को रोटी।
रोटी की एक फितरत है
वह खाली पेट की जरूरत है
और
भरे पेट का नशा।
नशे में
उड़ान भरता 
परकैच तोता
विभ्रम में है।
देखता  क्या है
कि विराट होता जा रहा है
कृष्ण के खुले मुख की तरह
पिंजरे का आकार
जिसमें
समा गया है घर
फिर शहर
उसके बाद देश भी।
आगे देखता  है
कि घर का मालिक 
तोता है
नगर का कोतवाल
और
देश का लोकपाल भी
तोता है
यंत्री , तंत्री, मंत्री और संत्री की
आत्माएं तोतों में हैं
और तोते
समाते जा रहे हैं
काल के गाल में
राम नाम के 
सत्य होने का
उद्घोष. करते हुए।

6
तुम तो केवल निमित्त मात्र थे राम लला

बाल  स्वरूप राम!
इस गलत फहमी में मत रहना
कि तुम 
कभी भी
हमारी आस्था का केन्द्र  थे 

कि तुम्हारे गालों को
तर्जनी से छू भर देने से
खुल जाते थे 
तुम्हारे होठ 
और भर उठता था
हमारा मन 
वात्सल्य  से 

कि तुम्हारी बाल सुलभ 
मुस्कान पर 
खिल उठता था हमारा मन 

कि तुम्हारे
ठुमक ठुमक कर चलने से 
बजती पैजनियों पर
नाच उठता था 
हमारा मन मयूर। 

न, न, न राम!
हमें किसी दाई ने
कोई ऐसी सूचना नहीं दी थी 
कि तुम यहीं 
इसी जगह पर पैदा हुए थे 
जहाँ किसी आततायी  ने
बाद में
बना कर खड़ी कर दी थी 
एक मस्जिद ।
हमें नहीं पता 
कि हजारों साल पहले
यहीं 
इसी जगह पर थी 
वह अयोध्या भी
जिसके राजा थे 
तुम्हारे पिता दशरथ
जिनकी महारानी थी  कौशल्या 

राम !
यहीं कहीं 
आस पास ही
पैदा हुए होंगे 
भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न  भी
हमें उनके जन्म स्थल  का भी 
नहीं पता राम! 

न, न, न राम !
इस सबसे 
हमारा कोई मतलब नहीं था।
हमारा मतलब था 
सत्ता से 
जो हम पा चुके हैं
और 
अब जब तुम्हारे कदम
पड़ ही चुकें है
इस जमीन पर 
अयोध्या बन गई  है
हमारे लिए हिरण्यनगरी
जिसे देख
पुनः जल उठेगी लंका,
फूलने फलने लगा है 
हमारा व्यापार-धर्म। 
7
तुम तो केवल
निमित्त मात्र  थे रामलला।

________________


ईश्वर!
मैं साक्षी हूँ
तुम्हारी मृत्यु का।
वह स्थल था
पूजा घर
जहाँ तुम मारे गए थे
हथियार  था धर्म। 
हत्यारा कोई और नहीं
तुम्हारा ही पुजारी था
फिर 
वहीं, उसी पूजाघर मे ही
बना कर ममी 
तुम्हें रख दिया गया था सुरक्षित 
ताकि नकारा न जा सकें उसका अस्तित्व 
और 
चलती आपकी दुकाने।
रामकिशोर मेहता
प्रस्तुति
वागर्थ ब्लॉग से

  रामकिशोर मेहता 
जन्म तिथि 20-09-1947 जन्म स्थल - ग्राम -बड्ढ़ा बाजीदपुर
जिला - बुलन्द शहर (उ.प्र.) 
विधाऐं
1व्यँग्य  एकाकी 2 नाटक 3 व्यँग्य
4 कविता - नई कविता, गीत, नवगीत, दोहा , कुण्डली , हाइकु, ग़ज़ल 4 लघुकथा 5- कहानी
6 उपन्यास 7- निबंध 4-अखवार में नित्यप्रति काॅलम 9-अंग्रजी से हिन्दी में अनुवाद 10-समीक्षा
पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन आकाशवाणी जबलपुर और अहमदाबाद एवं दूरदर्शन भोपाल से प्रसारण
प्रकाशित पुस्तकें
एकांकी संग्रह- प्रजातंत्र का चौथा पाया 'मुफ्त का मुर्गा' ,'पात्र मुखौटा नौंचते हैं'
नाटक - धम्मघोष( ऐतिहासिक ) ,राख के बीज (ऐतिहासिक), अतिक्रमण( सामाजिक) ' चार लोकधर्मी नाटक।
व्यँग्य संग्रह- वायदों की आधुनिक दुकान, भगवान बचाए उधार मांगने वालों से ,पग में चाकी बाँघ कर.......,  .........हिरना कूदा होय  ,  गुरु फितरती का चुनाव  घोषणापत्र 
कविता संग्रह-गिद्धभोज,  चुप कब तक, पिघलते पात्र से  प्रतीक्षा नही करता समय, अंधेरे का समाजवाद, जोखिमों  के घेरे में, मुखर मौन, ढपोर  शंख का पुनर्जन्म, एक स्वर की तलाश  में,
ग़ज़ल  संग्रह  -बहर से बाहर
उपन्यास - पराजिता का आत्मकथ्य, प्रतिशोध का अनहदनाद (अंग्रेजी अनुवाद भी), वह अंतिम संघर्ष नहीं था। (अंग्रेजी अनुवाद  भी)
निबंध संग्रह - कन्याभ्रूण हत्या और गायब होती 
                      लड़कियाँ
देश में  किसान की दुर्दशा 
भगवद्गीता  - एक पुनर्पाठ 
दिशा और दृष्टि  - समीक्षा  संग्रह। 
प्रकाशनाधीन कविता संग्रह  - तीसरा आदमी।
पुरस्कार /सम्मान
1.मध्य प्रदेश आँचलिक साहित्यकार परिषद जबलपुर द्वारा 1994 में 'दिव्य ' सम्मान।
2.महाकौशल साहित्य एवं संस्कृति परिषद द्वारा 2001-02 में भारत भारती  सारस्वत सम्मान
3 साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा नाटक"' धम्मघोष ' पर 2001- 02 का हरिकृष्ण प्रेमी पुरस्कार।
अन्य बहुत सारे सम्मान 

पता 
बी 11  शिवालय बंग्लोज , सरकारी ट्यूबवेल के पास  , बोपल, अहमदाबाद  380058
मो 09408230881 , 
Email rkm_katni @rediffmail.com
ramkishoremehta9@gmail.com


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