भीमराव जीवन जी की समीक्षा कृति "धूप भरकर मुठ्ठियों में"
मनोज जैन 'मधुर जी द्वारा स्रजित 'धूप भरकर मुट्ठियों में' नवगीत संग्रह प्राप्त हुआ। अस्सी नवगीतों का यह समृद्ध संग्रह जहाँ युगीन विडंबनाओं पर प्रहार करता हुआ दलित, शोषित, वंचित वर्ग के साथ दृढ़ता से खड़ा दिखाई देता है। उनका स्वर सत्ता का पक्षधर नहीं है, यथार्थ को व्यक्त करने में उन्होंने कहीं भी संकोच नहीं किया है।
माँ वाणी का आशीष प्राप्त कर कवि "प्यार के दो बोल बोलें" का शाश्वत संदेश देना चाहता है। क्योंकि कवि जानता है प्रेम ही सत्य है, प्रेम ही ईश्वर है, प्रेम की "एक बूँद का मतलब समंदर है" और इस एक बूँद से समंदर जैसे तृप्ति प्राप्त की जा सकती है। प्रेम ही वह सत्य है जो "भव भ्रमण की वेदना" से बचा सकता है।
" हम बहुत कायल हुए हैं" नवगीत के माध्यम से कवि ने व्यवस्था के दोगले व्यवहार को आईना दिखाया है। "लाज को घूँघट दिखाया पेट को थाली, आप तो भरते रहे घर, हम हुए खाली। किंतु हमारा ज़मीर जिंदा है, हम सत्य बोलेंगे और लिखेंगे। "हम सुआ नहीं है पिंजरे के, हम बोल नहीं है नेता के, जो वादे से नट जायेंगे।
निरंतर परिवर्तन प्रकृति का स्वभाव है, जिसे कवि सहज स्वीकार करते नजर नहीं आता। चूंकि परिवर्तन जब स्वार्थ पूरा करता है सहज स्वीकार किया जाता है।" घटते देख रहा हूँ, नई सदी को परंपरा से कटते देख रहा हूँ, पूरब को पश्चिम के मंतर रटते देख रहा हूँ।
छंद बद्ध सृजन की एक अलग ही अनुभूति होती है। कवि जिसका पक्षधर है।" जब से मन ने छंद छुआ है, छंदों का कहकरा, करना होगा सृजन बंधुवर हमें लीक से हटकर"।
लोक जीवन प्रत्येक पहलूओं पर कवि ने गहन चिंतन और शोध किया है। लोक कल्याण की पवित्र भावना से लिखें गये नवगीत आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करते हैं। इनकी भाषा सहज, सरल और बोधगम्य है जो कथ्य को सीधे हृदय तक पहुँचा सकने में समर्थ है। युवा कवि मनोज जैन 'मधुर' जी को इस विशिष्ट संकलन के लिए असीम शुभकामनाएँ।
भीमराव 'जीवन' बैतूल
26/11/2021
आदरणीय मनोज जैन 'मधुर' जी को 'धूप भरकर मुट्ठियों में' नवगीतों के नायाब संग्रह के लिए हार्दिक बधाई
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