सोमवार, 22 नवंबर 2021

कृति चर्चा में प्रस्तुत हैं डॉ मुकेश अनुरागी जी धूप भरकर मुठ्ठियों में

सद्य प्रकाशित नवगीत कृति "धूप भरकर मुठ्ठियों में" चर्चा में है। कृति चर्चा की इस कड़ी में एक नाम जुड़ता है डॉ मुकेश अनुरागी जी का मुकेश अनुरागी जी बहुत अच्छे पाठक और कवि हैं।
                 उन्होंने कृति न सिर्फ खरीदी बल्कि पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की
आइए जानते हैं उनके कृति पर विचार

            नवगीत जगत में अँधेरा मिटाने निकले हैं धूप भरकर मुठ्ठियों में
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                                      नवगीत क्षितिज पर अपनी ‘एक बूँद हम से प्रारंभ गीतयात्रा आज धूप भरकर मुठ्ठियों में क्षितिज पर फैले तमस को दूर करने का सार्थक और अप्रतिम प्रयास है।वागर्थ पटल पर सक्रिय और नवगीत दोहों तथा गीति रचनाओं के माध्यम से मधुर जी किसी पहचान के मोहताज नहीं है। युवा और ऊर्जस्वित नवगीतकारों में शामिल मनोज मधुर की सद्य प्रकाशित कृति धूप भरकर मुठ्ठियों पर अब तक अनेकों प्रतिक्रियाऐं आ चुकी हैं। साहित्य जगत में हुये इस स्वागत के लिए काव्य कृति स्वयं अपनी बात स्पष्ट करती है। 
                बस इतनी सी बात से शुरू करने वाला गीतकार जब एक बूँद हमसे अपने सचेत कवि स्वर को साधते-साधते नवगीत की मधुर लय छंद में आबध्द होकर सामाजिक विद्रूपताओं राजनैतिक दुष्चक्रों और छीजते सस्कारों को शाब्दिक अभिव्यक्ति देने लगता है तो यह आश्वस्ति स्वयं हो जाती है कि वह धूप भरकर मुठ्ठियों में समाज को रोशनी दिखाने निकल पड़ा है। उसका ध्येय वाक्य है- सोया है जो तन के अंदर उसे जगाओ जी अब चेहरे पर नया मुखौटा नहीं लगाओ जी। 
              और इसीलिए वे परिवेश में आए परिवर्तन और जीवन मूल्यों के क्षरण को स्पष्ट रेखांकित करते हुए कहते हैं- चाँद सरीखा में अपने को घटते देख रहा हूँ धीरे-धीरे सौ हिस्सों में बँटते देख रहा हूँ।        लेकिन इन सबसे उनमें उदासीनता या हताशा का भाव जागृत नहीं होता बल्कि वे आत्मविश्वास से भरकर कहते हैं - मैं दम लूँगा देश बदलकर यह पूरा परिवेश बदलकर। तभी उनका यह कथन भी प्रासंगिक और सोद्देश्यता से परिपूर्ण हो जाता है कि - हम सुआ नही हैं पिंजरे के जो बोलोगे रट जाऐंगे। 
                 मधुर जी अपने गीतों में जहाँ प्यार के दो बोल बोलें की बात करते हैं वहीं आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए पावन सम्मेद शिखर को नमन करते हुए आत्मरस को चखकर संसार के यज्ञ में त्याग की समिधा का हवन भी करते हैं यह उनकी सह्नदयता सहजता और सरलता है कि वे अपने लिए नहीं बल्कि औरों के लिए सृजन धर्म का कुशलता से निर्वहन करते हैं और जब सर्जक दूसरों के लिए जीता है तो उसकी झोली में हँसी कम आँसू ज्यादा होते हैं। 
              मगर वह अपने कर्तव्यों से विलग नहीं होता है। तब रचनाकार कहता है- हमने कांधों पर सलीब को ढोना सीख लिया हँसना सीख लिया थोड़ा सा रोना सीख लिया। लेकिन इतने पर भी उनका मधुरमन फूल सा कोमल है और सुवासित भी - अचरज नहीं तनिक भी इनमें हम काँटों में खिले फूल से
         जहाँ तक उनके नवगीतों के कथ्य एवं विषयवस्तु का प्रश्न है तो वे एक ओर प्रकृति के साहचर्य में मेघों का संदेश सुनाते हैं तो वहीं दूसरी ओर जीवन की क्षणभंगुरता को भी शब्दायित करते हैं- डूब रही कागज की कश्ती उथले पानी में। वे श्रृंगार से भी परहेज नहीं करते एक गीत देखिए- मन का हिरन कुलाचें भरता कैसी-कैसी बातें करता चाहत रखता हर पल मुझसे, आँखें चार करूँ, उनसे प्यार करूँ। 
        रचनाकार वर्तमान राजनैतिक उठा पटक से भी आहत होता है। और अपने सृजन धर्म का निर्वहन करते हुए कहता है- किस कदर हालात के मारे हुए हैं लोग दोष इतना भर के तुमको चुन लिया हमने जाल मकड़ी सा स्वयं ही बुन लिया हमने क्या कहें हम इसे घटना या महज संयोग। 
           उनका माँगें चलो अंगूठा गीत हो सगुन पांखी लौट आओ गीत हो या राजाजी हो सरकार को सभी गीत अपने समय को प्रतिबिंबित करते हुए प्रतिरोध के स्वर को मुखरित करने में सफल हैं।
         ऐसा नहीं है कि कवि वर्तमान से त्रसित होकर निराश है वह आशावादी रहा है तभी - जिंदगी तुझको बुलाती है गीत गाकर आशा का संचार भी करता है और उसका यही विश्वास सुबह हो रही है गीत में प्रतिफलित होता दिखता है। हालांकि सृजनधर्मियों को वह लीक से हटकर चलने की सीख भी दे देता है जिससे उनके सृजन में स्थायित्व मिले। 
             और अंत में रचनाकार अपने जीवन का निचोड़ इस गीत में अभिव्यक्त कर ही देता है- पूछकर तुम क्या करोगे मित्र मेरा हाल उम्र आधी मुश्किलों के बीच काटी पेट की खातिर उतरते दर्द की घाटी पीर तन से खींच लेती रोज थोड़ी खाल। 
         दैनंदिन जीवन की आपाधापी का सजीव चित्रण दर्द की घाटी कहकर वह अपने वर्तमान निवास लालघाटी को भी अभिव्यंजित कर गया है। 
                     सभी गीतों की भाषा कथ्य के अनुरूप है और लय छंद से कहन भी मुखरित हुई है उनके गीतों के बिम्ब अद्भुत हैं जो पाठकों को अपनेपन का अहसास कराते हैं। हालांकि उन्होंने अपने गीतों में मात्रा पतन अथवा मात्रा अवग्रहण का सहारा भी लिया है। लेकिन गीत पढ़ने पर प्रतीत नहीं होता है नवगीत संकलन के सभी गीत पठनीय हैं और संग्रहणीय भी। 
             हिन्दी साहित्य जगत में यह संकलन अपना स्थान बनाने में समर्थ होगा ऐसी शुभेच्छा है। 
       समीक्षक
       डाॅ मुकेश अनुरागी
एच 25 फिजीकल रोड शिवपुरी म.प्र. 
मोबा. नं. 9993386078

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