बुधवार, 24 नवंबर 2021

बाल साहित्य में प्रस्तुत हैं कवि लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव जी के बाल गीत : प्रस्तुति वागर्थ

   हम से भी प्यास बुझे

खरबूज बोल पड़ा तरबूज से,
गर्मी आई अब हो जा तैयार।
गर्मी बढ़ते ही हम खूब बिकेंगे,
मुझ से सज जाएँगे बाजार।

इतने में खीरा व ककड़ी बोली,
हम भी नहीं हैं बिल्कुल कम।
हमारे भी गर्मी में भाव बढ़ते,
गला तर करने का हममें दम।

चारों मिल कर के झटपट ही,
लगे खूब झूमने व गाना गाने।
गर्मी आते ही सारे दुकानदार,
प्यार से लगते हमें सजाने।

हम को  खाकर प्यास बुझाते,
पानी  की कमी हम करते दूर।
खाकर आती ताजगी लोगों में,
खरीदने को लोग होते मजबूर।
★★★★★★★★★★★★
 
 *वसंत ऋतु आया*

कक्षा में मेरे टीचर ने,
हम सब को बतलाया।
जाड़े का हो रहा अंत,
वसंत ऋतु अब आया।

वसंत है प्यारा मौसम,
यह ऋतुराज कहलाएँ।
पेड़ों में हो गया पतझड़,
अब नई कोंपलें आएँ।

सरसों के फूल खेतों में,
पीले पीले व प्यारे प्यारे।
आम पर आ जाते हैं बौर,
लगते कितने न्यारे न्यारे।

फूल खिले होते चहुँओर,
फूलों पर तितली मड़राएँ।
हरियाली दिखती है सर्वत्र,
वसंत ढेरों खुशियाँ लाएँ।
★★★★★★★★★

*तितली उड़ जाती है*

बार बार मैं पकड़ूँ तितली
मेरे पकड़ में न आती है।
हाथ लगाता, ज्यों ही त्यों
फुर्र से वह उड़ जाती है।

चाहूँ पकड़ कर मुट्ठी में,
झट पट मैं बंद कर लूँ।
मेरी आहट समझ वो ले,
कितना भी मैं धीरे चलूँ।

रंग बिरंगी ये तितलियाँ,
मेरे मन को खूब भाती हैं।
दौड़ दौड़ कर थक जाऊँ,
मेरे पकड़ में न आती हैं।

माँ कोई उपाय बता दो,
तितली को पकड़ लाऊँ।
बैग में बंदकर तितली को,
स्कूल साथ मैं ले जाऊँ।
★★★★★★★★

*हरी भरी मटर की फली*

खूब हरी भरी मटर की फली,
मटर की फली मटर की फली,
हरे मटर की सब्जी अच्छी हो,
हरे मटर की पूड़ी लगे भली।

जाड़े में हरे मटर की बहार,
हरे मटर से सभी को प्यार,
खाने को मन करे बार बार,
सब्जी, पुलाव या हो पराँठे,
सब में हरे मटर की दरकार।

हरे मटर फाइबर से भरपूर,
दिल की बीमारी करते दूर,
प्रोटीन व विटामिन-के मिले,
सब्जी, पराठा और पुलाव,
मम्मी मुझे खाना है जरूर।

ज्यादा मटर खाएँ, हानि करता,
हमारे शरीर में गैस भी बनता,
डकार भी आए, हमें बार बार,
पेट दर्द से हो जाता है दुश्वार,
कब्ज व पेट भी फूल सकता।
★★★★★★★★★★

*हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी*

गर्व मुझे है राष्ट्र पर अपने,
नित लिखते नई कहानी,
देश पे कोई आँख उठाएं,
हम हो जाते हैं तूफ़ानी,
हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी।

प्रेम की भाषा से करते हैं,
हम लोगों की आगवानी,
प्रेम के बदले जो छल करते,
उसकी न बचे कोई निशानी,
हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी।

भारतवासी ऐसा न काम करें,
जिससे न हो कोई परेशानी,
हम सब हैं सच्चे देशभक्त,
मुश्किल में बच्चा भी सेनानी,
हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी।।

सरहद पे जो आँख उठाएं,
ऐसा वीर न कोई सानी,
तड़पा कर उसको मारे,
मिले न उसे दाना पानी।
हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी।
★★★★★★★★

*शूरवीर महाराणा प्रताप*

( 09 मई 1540--जन्म दिवस)

नौ  मई  को  कुंभलगढ़  में,
इक शूरवीर का जन्म हुआ।
राज्याभिषेक  गोगुन्दा   में,
प्रताप नाम से अमर हुआ।

ऐसे योद्धा को करूँ प्रणाम,
विश्व प्रसिद्ध जिसका नाम।
प्रताप जिसे हम कहते  है,
अनुसरण उसी का करते है।

पूरे भारत वर्ष  में शायद ही,
इकलौते महाराणा वीर हुए।
जीवन में मुगल अकबर की,
अधीनता न स्वीकार किए।

उनका प्रिय घोड़ा चेतक था,
वह  भी बहुत  बहादुर  था।
बैठा कर पीठ पर राणा को,
लंबी  छलांग  लगाता  था।

दृढ़ संकल्पित ऐसा योद्धा,
भारत वर्ष में जन्म लिया।
घास की रोटी खा कर भी,
दुश्मन से खूब संघर्ष किया।

हल्दी घाटी का प्रसिद्ध युद्ध,
मुगलों की सेना बहुत भारी।
बीस हजार योद्धा से राणा ने,
अकबर को टक्कर दे मारी।
★★★★★★★★★★
      
*सबसे अच्छे मेरे पापा*

सबसे अच्छे हैं मेरे पापा,
ऑफिस से घर जब आते।
चॉकलेट व टॉफी ले आएँ,
आकर तुरंत मुझे बुलाते।

जब मैं आता, त्यों ही पापा,
गोदी में झट ही मुझे उठाते।
चॉकलेट और टॉफी देकर,
मुझ से ख़ूब प्यार जताते।

नित सुबह मुझे जगाकर,
बैठा के खूब मुझे पढ़ाते।
जो सवाल हल न मुझसे,
अच्छे से वह समझाते।

पढ़ने से अच्छा बन जाऊँ,
ये भी अक्सर मुझे बताते।
महापुरुषों और वीरों की,
गाथाएं नित मुझे सुनाते।

कभी कभी शाम समय को,
पापा मार्केट मुझे ले जाते।
मनपसंद खिलौना व चीजें,
झट खरीद के मुझे दिलाते।

स्कूल में जब हो लंबी छुट्टी, 
मम्मी संग हम बाहर जाते।
घूम घूम नई जगह को देखे,
छुट्टी में खूब मौज मनाते।

कितने  प्यारे, मेरे पापा।
न गुस्साते, बस मुस्काते।।
★★★★★★★★★
    
      *मेरी पिचकारी*

सजी हुई कितनी पिचकारी,
कोई हल्की, कोई है भारी।
मुझे भी पापा एक खरीदो,
कितनी सुंदर लगती सारी।

कोई बड़ा है कोई है छोटा,
कोई पतला कोई है मोटा।
पापा लो बड़ी पिचकारी,
जो लगता दादा का सोटा।

हरा पीला लाल रंग भरकर,
पिचकारी से करूँ फुहार।
रंगों से मैं सरोबार करूँगा,
जो कोई गुजरेगा मेरे द्वार।

मैं पिचकारी से रंग डालूँगा,
भैया दीदी संग खेलूँ होली।
जो रंग कोई  नुकसान करें,
रंग न डालना मम्मी बोली।

होली खेल कर मैं खाऊंगा,
गुझियाँ, नमकीन, मिठाई।
रंगों का मैं त्यौहार मनाऊँ,
खुशियाँ हैं होली संग आई।
★★★★★★★★★★

*गर्मी में खूब नहाते*

ठंडे  ठंडे पानी से हम,
गर्मी आते खूब नहाते।
कभी तो भूल से शॉवर,
खुला छोड़ आ जाते।

सुबह शाम रोज नहाते,
धमा चौकड़ी करते हम।
कभी नहा बेड पे चढ़ते,
बिस्तर भी कर देते नम।

गर्मी में जब मन होता,
हम बच्चे खूब नहाते हैं।
बालों में हम शैम्पू करके,
ढेरों सा झाग बनाते हैं।

गर्मी में तो हम रोज नहाते,
सर्दी में नहाने से होता डर।
बिना नहाए स्कूल को जाते,
मिस जी लेती खूब खबर।

मम्मी कहती रोज नहाओ,
तन और मन स्वस्थ रहेगा।
दिमाग  रहेगा तरो ताजा,
पढ़ने में भी मन लगेगा।

स्कूल में मिस जी कहती,
अच्छी आदत अपनाओ।
पढ़ो और खेलों भी जम के,
अपने को सफल बनाओ।
★★★★★★★★★★

*गर्म मूँगफली*

गर्म मूँगफली खाने में,
अच्छा लगता है स्वाद।
जाड़े में मूँगफली लाना,
पापा को रहता है याद।

बच्चे बड़े सभी को सर्दी में,
खाने में मूँगफली है भाता।
चटनी संग मूँगफली हो तो,
सबके मन को ललचाता।

जाड़े में शाम समय हम,
मूँगफली रोज ही खाते।
हर चौराहे पर ठेलों पर,
मूँगफली बिकते पाते।

प्रोटीन और मिनरल का,
मूँगफली होता खजाना।
कितना हो चट कर जाते,
अच्छा लगता है खाना।

भुनी हुई हो मूँगफली की,
सोंधी होती है खूब महक।
ज्यादा मात्रा में मूँगफली,
खाने में हम जाय बहक।

गर्मागर्म हो जब मूँगफली,
जाड़े में बिक्री बढ़ जाती।
धनिया पत्ती की चटनी हो,
मूँगफली बहुत सुहाती।
★★★★★★★★

*नए साल में स्कूल खुल जाएँ*

नए साल में हम सब के स्कूल खुल जाएँ,
कितने खुश होंगे कि हम सब पढ़ने पाएँ।
नई किताबे, नए पाठ पढ़ने का मन करता,
दोस्तों संग मिल कर घूमने को जी कहता।

हम सब बच्चों की विनती कर लो स्वीकार,
स्कूल खुल जाए, प्रभु करो ऐसा चमत्कार।
ऑनलाइन क्लास हमारे पल्ले न पड़ रहा,
हम बच्चों पर कर दो बस! यही उपकार।

घर में रहते हुए हम बहुत हो चुके हैं बोर,
पढ़े लिखें व खाली कक्षा में हम करें शोर।
दोस्तों संग मस्ती करने का बहुत है मन,
घर में रहने का न मन करता अब मोर।

जब टीचर हमें पढ़ाते तब अच्छा लगता,
ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ सच्चा लगता।
ऑनलाइन क्लासेज बहुत समझ न आएँ,
नए साल में हम सब के स्कूल खुल जाएँ।
★★★★★★★★★★★★★

*सफाई का रखो ध्यान*

बंदर से बंदरिया बोली
तुम्हें हो गया जुकाम।
पड़े पड़े खास रहे हो,
नाक भी हुआ जाम।

दूर देश से आई बीमारी,
कोरोना जिसका नाम।
खतरनाक बहुत होती,
महामारी जैसा आयाम।

सफाई का रखो ध्यान,
नहीं तो होगे परेशान।
छुआछूत की ये बीमारी,
ले रही लोगों की जान।

दो गज दूरी बहुत जरूरी,
टीवी पर हो रहा प्रचार।
जीवन के लिए जरूरी
दूरी का करें व्यवहार।

इस बीमारी से इंसानों में,
मचा हुआ है त्राहिमाम।
हाथ धुल कर खाना खा,
वरन बुरा होगा अंजाम।
★★★★★★★★★

*जाड़े का मौसम होता प्यारा*

जाड़ा आया सूरज दादा ने मद्धिम कर दिया धूप,
चारों ओर छाया कुहरा, मौसम का बदला रूप।
अब दिन छोटे होने लगें, बड़ी हो रही है रात,
गरमा गरम पकौड़ा और अच्छा लग रहा सूप।

स्वेटर, कोट, टोपी और निकला अब मफलर,
ठंडे ठंडे पानी से नहाने में लग रहा अब डर।
धूप में बैठना अब तो कितना लग रहा अच्छा,
कुछ दिनों में शायद शुरु हो जाए शीत लहर।

अब तो सुबह न छोड़ने का मन मेरा करे रजाई,
जाड़ा बहुत ही प्यारा होता, मानो इसको भाई।
जो कुछ भी खाओ, सब पच जाता आराम से,
सुबह शाम अब अच्छा लगता हीटर से सिकाई।

घंटों हम बच्चे क्रिकेट खेलते, पसीना न बहता,
खेल में मजा आता, घर जाने का दिल न करता।
सच में जाड़े का मौसम बहुत ही सुहावना होता,
पढ़ने लिखने व खेल कूद में हमारा मन लगता।
★★★★★★★★★★★★★★★★

*मेरा प्यारा स्कूल*

कितना सुंदर प्यारा प्यारा,
अच्छा लगता  मेरा स्कूल।
नित यहाँ पर पढ़ने आते,
घर को हम जाते हैं भूल।

टीचर यहाँ बहुत ही अच्छे,
हर विषय खूब समझाते हैं।
जीवन में कैसे आगे बढ़ना,
यह  भी  मुझे   बताते हैं।

पढ़ लिख सूरज सा चमको,
बनना तुम्हें एक नेक इंसान।
मात-पिता का नाम हो रोशन,
दुनिया में हो श्रेष्ठ पहचान।

शिक्षक मुझको खेल खेलाते,
कविता कहानी गीत सुनाते।
अनुशासन जीवन में जरूरी,
नैतिकता का पाठ सिखाते।

गणित अंग्रेजी लगे मुश्किल,
टीचर बताते आसान सा हल।
दोस्त यहाँ खूब मुझे हैं भाते,
पढ़ने लिखने में साथ निभाते।

कितने हरे भरे पेड़ों से घिरा,
सुंदर प्यारा सा मेरा  स्कूल।
खुशबू से खूब महक जाता,
महके यहाँ गुलाब के फूल।
★★★★★★★★★

*वीरों का यह देश*

भारत वर्ष है, वीरों का देश,
जनता सच में है यहाँ नरेश।
महात्मा बुद्ध महावीर स्वामी,
पूरी दुनिया को दिए संदेश।

चारों तरफ दिखती हरियाली,
घर घर जन जन में खुशहाली।
मिल कर हम त्योहार मनाते,
क्रिसमस ईद होली दीवाली।

सब की हम खुशियाँ चाहे,
न रखते हम किसी से बैर।
मेहनतकश हम भारत वाले,
मनाते हैं, हम सबकी खैर।

प्राण न्यौछावर कर देते हैं,
जाने न देते हैं, देश की शान।
ऐसा कोई न कोई कार्य करें,
देश का मिटे जिससे सम्मान।

सुभाष चंद्र भगत सिंह आजाद,
जैसे रणबांकुरों ने जन्म लिया।
वर्षों से हिंदुस्तान गुलाम रहा,
जान गवां कर आज़ाद किया।

भारतवर्ष बन चुका है स्वतंत्र,
चलता न अब यहाँ राजतंत्र।
संविधान से देश का शासन,
अब कोई नही यहाँ परतंत्र।
★★★★★★★★★★

     *शहर की सैर*

कई जानवर जंगल से यूँ,
इक दिन साथ चल पड़े।
हमें घूमना शहर में आज,
चौराहे पर आ हुए खड़े।

सबसे पहले पहुँचे वे माल,
आँखें फाड़े ये माल है टाल।
माल से खूब सामान खरीदे,
फिर चले गए सिनेमा हाल।

पिक्चर में गाना शुरू हुआ,
सब लगे झूम झूम कर गाने।
सिनेमा हाल में किया हंगामा,
मालिक आया उन्हें मनाने।

दिन भर बीत गया सभी को,
अब लग गई सभी को भूख।
होटल में पहुँच खाना खाया,
फिर किया जंगल का रुख।

जंगल जब पहुँचे हो गई रात,
थक कर के हो गए सब चूर।
जम कर खर्राटे ले कर सोए,
नींद आज उन्हें आई भरपूर।
★★★★★★★★★★★

       *चाचा नेहरू*

चाचा नेहरू का जन्म दिवस,
'बाल दिवस' कहा जाता है।
बच्चों से चाचा को खूब प्रेम,
हमें उनकी याद दिलाता है।

हम बच्चे मिल जुल करके,
आज 'बाल दिवस' मनाएँगे।
चाचा नेहरू को गुलाब प्रिय,
हम उससे स्कूल सजाएँगे।

गुलाब लगाते थे अचकन में,
हर समय वह मुस्काते थे।
देश के वे प्रथम प्रधानमंत्री,
बच्चों से प्रेम जताते थे।

हमें आज न पढ़ना लिखना,
खूब खेलेंगे और हम गाएँगे।
चाचा नेहरू की बात करेंगे,
अच्छी आदत अपनाएंगे।

देश के गौरव थे चाचा नेहरू,
बच्चों से खूब लगाव रखते थे।
बच्चों से सत्पथ पर चलने को,
सदैव कहा वह कहते थे।

उन्होंने जो पथ बतलाया है,
पढ़ लिखकर कदम बढ़ाएंगे।
मात पिता गुरु से शिक्षा पा,
हम राष्ट्र को महान बनाएँगे।
★★★★★★★★★★

     *बस की सवारी*

पों पों करते आई लाल बस
सवारी भरी खूब ठसाठस।
जाना बहुत ही रहा जरूरी,
मुश्किल से चढ़े राम दरस।

सीट पर बैठने के लिए लड़े,
बीच में जाकर हो गए खड़े।
खड़े खड़े आ गई उन्हें नींद,
मोटी औरत पर  गिर पड़े।

वो इतने जोर से चिल्लाई,
जैसे हो कोई आफत आई।
राम दरस झटपट से उठे,
मुश्किल से जान बचाई।

सभी लोग तब लगने हँसे,
आ कर के हम कहाँ फँसे।
राम दरस हुए पानी पानी,
बस में याद आ गई नानी।

बस से उतर के घर को भागे,
बस से न जाने के अब इरादे।
घर पहुँच लिया चैन की सांस,
कई दिन आई बस की यादे।



साहित्यिक परिचय
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
पिता--स्व. श्री अमरनाथ लाल श्रीवास्तव
माता--स्व. श्रीमती लीला श्रीवास्तव
स्थायी पता--ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर, जिला-बस्ती
                 272124 (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा--बी. एससी., बी. एड., एल. एल बी., बी टी सी.
(शिक्षक, साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता)
व्यवसाय--शिक्षण कार्य
सामाजिक कार्यब-प्रदेश सचिव, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, उत्तर प्रदेश (अवैतनिक)
सचिव जॉगर्स क्लब बस्ती (अवैतनिक)
सदस्य प्रगतिशील लेखक संघ-बस्ती (उ. प्र.)
लेखन की विधा --कविता/कहानी/लघुकथा/लेख/व्यंग्य/बाल साहित्य/समीक्षा
मोबाइल 7355309428
ईमेल laldevendra204@gmail.com
प्रकाशन

पत्रिका-- (अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय)
छत्तीसगढ़ मित्र, भाषा, संवाद, साहित्य अमृत, सरस्वती सुमन, मुद्राराक्षस उवाच, हरिगंधा, वीणा, प्रगतिशील साहित्य, साहित्य परिक्रमा, सेतु, नव निकष, संवदिया, सर्वभाषा, अभिनव प्रयास, चाणक्य वार्ता, आलोक पर्व, साहित्य समय, नेपथ्य,  हिंदुस्तानी ज़बान, हिंदुस्तानी युवा, आत्मदृष्टि, साहित्य संस्कार, प्रणाम पर्यटन, लोकतंत्र की बुनियाद, सत्य की मशाल, क्षितिज के पार, आरोह अवरोह, यथार्थ, उजाला मासिक, संगिनी, सृजन महोत्सव, साहित्य समीर दस्तक, सुरभि सलोनी, अरुणोदय, हॉटलाइन, फर्स्ट न्यूज़, गुर्जर राष्ट्रवीणा, कर्मनिष्ठा, नया साहित्य निबंध, शब्द शिल्पी, साहित्य कलश, कर्तव्य चक्र, हॉटलाइन, देव चेतना, प्रकृति दर्शन, टेंशन फ्री, द इंडियन व्यू, साहित्य वाटिका, गोलकोण्डा दर्पण, अपना शहर, पंखुड़ी, अविरल प्रवाह, ध्रुव निश्चय वार्ता, कला यात्रा, आर्ष क्रांति, कर्म श्री, मधुराक्षर, साहित्यनामा, सोच-विचार, भाग्य दर्पण, सुबह की धूप, अरण्य वाणी, नव किरण, तेजस, अक्षय गौरव,  प्रेरणा-अंशु, साहित्यञ्जली प्रभा, कविताम्बरा, मरु-नवकिरण, संपर्क भाषा भारती, सोशल संवाद, राष्ट्र-समर्पण, रचना उत्सव, मुस्कान-एक एहसास, साहित्यनामा (द फेस ऑफ इंडिया), खुशबू मेरे देश की, माही संदेश पत्रिका, हिंदी की गूँज, पुरुरवा, समर सलिल, सच की दस्तक, रजत पथ, द अंडर लाइन, जगमग दीपज्योति, साझी विरासत, आदित्य संस्कृति, इंडियन आइडल, साहित्य कुंज, सृजनोन्मुख, सोशल संवाद, समयानुकूल, अनुभव, परिवर्तन, चिकीर्षा, मानवी, सहचर, राष्ट्र समर्पण, प्रतिध्वनि, शबरी, शालिनी, विश्वकर्मा वैदिक समाज, कौमुदी, साहित्यरंगा, साहित्य सुषमा, काव्य प्रहर, काव्यांजलि कुसुम, संगम सवेरा, हिंदी ज्ञान-गंगा, एक कदम, संगम सवेरा, स्वर्णाक्षरा काव्य धारा, अविचल प्रभा, काव्य कलश, नव साहित्य त्रिवेणी, भावांकुर, अवसर, पृथक, तमकुही राज, विचार वीथिका, लक्ष्य भेद, साहित्य अर्पण, सुवासित, तेजस, युवा सृजन, जय विजय, जयदीप, नया गगन आदि पत्रिकाओं में 1000 से अधिक कविताएँ, कहानियाँ व लघुकथाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और सतत प्रकाशित हो रही हैं।

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काव्य संग्रह

(साँझा काव्य संकलन)
"साहित्य सरोवर", "काव्यांजलि", "बंधन प्रेम का" "अभिजना", "अभीति", "काव्य सरोवर", "निभा", "काव्य सुरभि", "अभिजना", "पिता,"कलरव वीथिका" "इन्नर", "आयाति", "नव किरण", "चमकते कलमकार", "मातृभूमि के वीर पुरोधा", "रंग दे बसंती", "शब्दों के पथिक", "कलम के संग-कोरोना से जंग" प्रकाशित व लगभग छह साँझा काव्य संकलन, एक लघुकथा साँझा संकलन प्रकाशनाधीन।

(एकल काव्य संग्रह)
1- "मृत्यु को पछाड़ दूँगा" (काव्य संग्रह - प्रकाशनाधीन)
2- "वो सुबह तो आएगी" (काव्य संग्रह - प्रकाशनाधीन)
3- "सूरज की नई जमीन" (कहानी संग्रह - प्रकाशनाधीन)

बाल कविता संग्रह-
1- "प्यारा भारत देश हमारा" (प्रकाशित)
2- "बच्चे मन के सच्चे" (प्रकाशनाधीन)

संचालन
 "नव किरण साहित्य साधना मंच" बस्ती (उत्तर प्रदेश)

*सम्मान/पुरस्कार*-- राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कलमकार मंच द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित 2019-20 के 'कलमकार पुरस्कार' में तृतीय स्थान के लिए चयनित, "साहित्य सरोवर", साहित्य साधक अलंकार सम्मान-2019, "काव्य भागीरथ सम्मान", "अभिजना साहित्य सम्मान", "अभीति साहित्य सम्मान", "मधुशाला काव्य सम्मान", "वीणा वादिनी सम्मान-2020", " काव्य श्री सम्मान-2020", "काव्य सागर सम्मान" सहित तीन दर्जनों से अधिक साहित्यिक सम्मान व प्रशस्ति पत्र व कई सामाजिक संस्थाओं व संगठन द्वारा सम्मानित।

संपादन

(पत्रिका)
1-  'नव किरण' मासिक ई-पत्रिका का संपादन।
2- 'बाल किरण' मासिक ई-पत्रिका का संपादन।
3- 'तेजस' मासिक ई-पत्रिका का सह-संपादन।

(पुस्तक)
1- राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन
"नव किरण", "नव सृजन" व "सच हुए सपने" का संपादन।
2- एकल काव्य संग्रह 
"प्रेम पीताम्बरी", "दरख़्त की छांव", "अनूठे मोती", "जीवन धारा", "अनुभूति-1", "अनुभूति-2," व "देहरी धरे दीप" का संपादन।
3- एकल कहानी संग्रह*- "प्रेम-अंजलि" का संपादन।

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 7355309428

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