रविवार, 7 नवंबर 2021

कृति चर्चा में गोविन्द श्रीवास्तव अनुज की एक प्रतिक्रिया "धूप भरकर मुठ्ठियों में"



आदरणीय भाईसाहब गोविंद श्रीवास्तव  अनुज जी का कृतज्ञ मन से आभार


कृति चर्चा
              धूप भरकर मुठ्ठियों में
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               वर्तमान में नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर भाई मनोज जैन का सध;प्रकाशित नवगीत संग्रह "धूप भर कर मुट्ठियों में "पिछले दिनों डाक से प्राप्त हुआ है। लेकिन दीपावली की व्यस्तता के कारण पढने में बिलम्ब हुआ, और जब पढा तो उस पर कुछ लिखने में बिलम्ब हुआ ।
     बिलम्ब का कारण आलस्य तो कतई नहीं था। हाँ यह असमंजस जरूर था कि अपनी बात कहाँ से शुरू करूँ। ज्यों ही एक बात शुरू करने की कोशिश करता, त्यों ही दूसरी बात सिर उठा लेती और पहले वाली को पीछे धकेल देती ।
     भाई मनोज जैन जी ने आधुनिक जीवन की जद्दोजहद एक नये ही अंदाज में प्रस्तुत की है। उनके इस नवगीत संग्रह "धूप भर कर मुट्ठियों में ", में नये बिम्ब, नये प्रतीक, नयी आस्था और नये कलेवर के स्वर साफ साफ सुनाई देते हैं। जैसे---
चिन्दी चोर विधायक के घर प्रतिभा भरती पानी ।
राजाश्रय ने वंचक को दी संज्ञा औघड़दानी ।
××          ××        ××          ××
जेठ मास के खेत सरीखे 
रिश्ते नाते दरके ।
पल-पल लगता 
पाँव तले से 
अब-तब धरती सरके ।।

     मनुष्य का स्वाभाविक गुण प्रेम है। प्रेम ही वह सेतु है जिसके बल पर एक मनुष्य दूसरे से जुडता है। प्रेम सृष्टि का प्रमुख आधार है। भाई मनोज जैन ने अपने प्रेम की अभिव्यक्ति बड़ी ही शालीनता से अपने नवगीतों में की है। देखें---
नेह के मधुरिम परस से/ खिले मन की पांखुरी/
मौन टूटे तो बजे /मनमीत मन की बांसुरी /
कामना के पंथ में तुम /प्रेम रथ मोडो/
                   मौन तो तोडो/
और
हो गई है आज हमसे  
एक मीठी भूल।
धर दिये हमने अधर पर 
चुम्बनो के फूल/

संग्रह के सभी गीत/ नवगीत सहज और सरल भाषा में हैं, जो जितनी जल्दी समझ में आते हैं उतनी ही गहरी मार भी करते हैं ।अधिकांश गीत / नवगीत सामाजिक विद्रूपताओ से जूझते हुए सकारात्मक चेतना के साथ जनसाधारण के समर्थन में खडे 
प्रतीत होते हैं ।
     सुन्दर मुखपृष्ठ और चित्ताकर्षक मुद्रण वाले 120 पृष्ठीय इस नवगीत संग्रह में मनोज जैन जी के अस्सी गीत / नवगीत संग्रहित हैं । गीतों के गलियारों से गुजरने से पूर्व पाँच वरिष्ठ साहित्यकारों के आलेख भाई मनोज जैन की रचना धर्मिता  को समझने में सहायक होते हैं ।
     सार संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि भाई मनोज जैन जी ने अपनी मुट्ठियों में धूप भर कर सामाजिक संगतियो और विसंगतियों की ओर प्रकाश को उलीचकर वहाँ फैले अंधकार को चुनौती देने का साहसिक कार्य किया है ।
     हिन्दी साहित्य में इस पठनीय और संग्रहणीय नवगीत संग्रह का भरपूर स्वागत होगा यह मेरा विश्वास है ।
      भाई मनोज जैन जी को इस सुन्दरतम कृति के लिए बहुत बहुत बधाई।
      गोविंद श्रीवास्तव अनुज 
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