शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

कविवर ईश्वर दयाल गोस्वामी जी काएक नवगीत

कविवर ईश्वर दयाल गोस्वामी जी का
एक नवगीत

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गांव की सांझ 

तप्त पठरिया की नदिया से 
इतराती, पर सधी हुई-सी
भरी खेप पनहारिन जैसी
उतर रही है साँझ गाँव में ।

दौड़ लगाकर पूँछ उठाकर 
आती हैं गायें रंभातीं ।
भेड़-बकरियाँ बना पँक्तियाँ
चली आ रहीं हैं मिमयातीं ।

बहुएँ जला रही हैं चूल्हे ,
जोड़ रही हैं टूटे कूल्हे ।
धधक रही है छाती इनकी
सासों की कर्कशा काँव में ।

गुंड-कसैंड़ी, कलशे-गगरे,
कूप,नलों पर भीड़ मची है ।
उछल रहीं हैं मधुर गालियाँ,
तना-तनी में रसा-कसी है ।

हार-खेत से आते-आते ,
पोंछ पसीना थकन मिटाते ।
बरगद के नीचे चौरे पर
बैठ गए मजदूर छाँव में ।

काम-धाम की ख़ोजबीन में
बैठे-बैठे उकताते हैं ।
रंगदारों की चाल-ढाल में
लुहरे,जेठे गरियाते हैं ।

मार रहे हैं लट्ठ धुआं में,
हार रहे सब जोग जुआ में ।
गोटी इनकी फंसी हुई है
चौसर के मजबूत दांव में ।

तप्त पठरिया की नदिया से
इतराती, पर सधी हुई-सी
भरी खेप पनहारिन जैसी
उतर रही है साँझ गाँव में ।

कवि का एक चित्र


                 -- ईश्वर दयाल गोस्वामी 
                    छिरारी,(रहली),सागर
                    मध्यप्रदेश ।
                    मो - 8463884927

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