गुरुवार, 3 नवंबर 2022

सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी जी का एक नवगीत

गीत
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 ब्लॉग वागर्थ 
प्रस्तुत करता है कविवर सत्येन्द्र रघुवंशी जी का एक नवगीत

          नदी है भरी हुई
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        चप्पू, नाव, मछेरे सब हैं
        मग्न, नदी है भरी हुई।

               ख़ुशियाँ पेड़ों-सी हैं जिनके
               पत्ते समय बुहार रहा।
               बैठे थे जिस जगह पखेरू,
               वह बिजली का तार रहा।

        मिले ओट चिड़ियों को कैसे,
        हर टहनी है झरी हुई।

               आँख गर्द के लिए बनी क्या,
               कान शोर के लिए बने?
               क्या बयार के लिए हमारे
               ये सब टिमटिम दिये बने?

        कभी-कभार हुए हैं हम, ज्यों
        एक गिलहरी डरी हुई।

               इस मन को कालीन समझकर
               भीतर व्यथा चली आयी।
               हारा है ख़रगोश दौड़ में,
               कब से कथा चली आयी!

        एक हँसी खनकी कुछ ऐसे,
        एक चोट फिर हरी हुई।

               रक्तकमल होने के पल थे,
               हम भँवरों का झुंड हुए।
               बोलो मन की दाहकता ने
               क्यों ठंडे अंगार छुए।

        है न अजब, दुनिया न आज तक
        सन्नाटों से बरी हुई!

               क्यारी के पहले गुलाब-सा
               गीत ढूँढते फिरते हैं।
               लोग धूप-सा चढ़ें, मगर क्यों
               हम पारे-सा गिरते हैं!

        अगर भरे हैं मेघ, यहाँ भी
        हैं न तृषाएँ मरी हुई।

            सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी


परिचय
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नाम : सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी
जन्म : 21 नवम्बर,1954 को आगरा में।
शिक्षा : क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर से वर्ष 1975 में अंग्रेज़ी में एम.ए.।
सेवायोजन : नवम्बर, 2014 में आई. ए. एस. अधिकारी के रूप में उ. प्र. शासन के गृह सचिव के पद से सेवानिवृत्त। पुनर्नियोजन के फलस्वरूप तत्पश्चात् भी फ़रवरी, 2017 तक सचिव के पद पर कार्यरत। मार्च, 2017 से 20 नवम्बर, 2019 तक उ. प्र. राज्य लोक सेवा अधिकरण में सदस्य (प्रशासकीय) के पद पर कार्य किया।
रचनाकर्म : वर्ष 1987 में कविता-संग्रह ‘शब्दों के शीशम पर’ प्रकाशित। दूसरा कविता-संग्रह ‘कितनी दूर और चलने पर’ वर्ष 2016 में प्रकाशित। पिछले चार दशकों में लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। छह दिसम्बर,1992 पर केंद्रित ‘परिवेश’ के चर्चित विशेषांक का अतिथि संपादन।

प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ

2 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार(०४-११-२०२२ ) को 'चोटियों पर बर्फ की चादर'(चर्चा अंक -४६०२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. व्यंजनाओं से सज्जित सुंदर नवगीत।

    जवाब देंहटाएं