बुधवार, 2 नवंबर 2022

दो अलग गीतों पर एक वैचारिकी टिप्पणीकार हरगोविन्द ठाकुर जी प्रस्तुति ब्लॉग वागर्थ


वैचारिकी

वैचारिकी
अभी विगत दिनों प्रतिष्ठित समूह वागर्थ में कवियत्री भूमिका जैन का एक गीत पढ़ा जो पति को संबोधित था।उसके कुछ ही अंतराल में वागर्थ के एडमिन कविबर मनोज जैन मधुर  का भी एक गीत पढ़ा जो पत्नी को संबोधित था।
सुलभ संदर्भ के लिए नीचे दोनों ही गीत उधृत हैं।






गीत


        कवयित्री भूमिका जैन "भूमि"

🎊🎊

ज़िद्दी, अल्हड़, पगली, झल्ली
जैसी हूँ,अपनाया तुमने.
सात वचन से आगे जाकर
ये संबंध निभाया तुमने.

मेरा अच्छा बुरा हमेशा
मुझसे पहले तुम्हें पता है.
तुमने वही किया है अब तक
जो मुझको अच्छा लगता है.
बेटा,दोस्त, पिता,भाई बन
सबका प्यार लुटाया तुमने.

जब जब मैंने प्रश्न उठाये
तुम उपलब्ध रहे उत्तर में.
हल ही नहीं हुये वे सारे
प्रश्न खो गये प्रतिउत्तर में.
सच कहती हूँ प्रेम शब्द का
सही अर्थ समझाया तुमने.

मेरी गरिमा और,प्रतिष्ठा 
मुझसे पहले रही तुम्हारी.
मेरे रोने की आदत भी
तुमने हँस हँसकर स्वीकारी.
अपनी अर्धांगिनी बनाकर
मुझको पूर्ण बनाया तुमने.

प्रियवर साथ तुम्हारा पाकर
मुझे लगा मैं भी सीता हूँ.
इस गौरव का श्रेय तुम्हें
हे राम!तुम्हारी परिणीता हूँ.
धरती पर जोड़े रिश्ते को
अंबर तक पहुँचाया तुमने.

सात वचन से आगे जाकर
ये संबंध निभाया तुमने.

भूमिका जैन "भूमि"


गीत

🎊🎊


             मनोज जैन "मधुर"

🎊🎊

खूबसूरत दिन,पहर,क्षण,
पल,हुआ।
तुम मिले तो सच कहें
मंगल हुआ।

पुण्य जन्मों का,फला तो 
छट गयी मन की व्यथा।
जिंदगी की पुस्तिका में,
जुड़ गयी नूतन कथा।

ठूँठ-सा था मन महक,
संदल हुआ।

वेद की पावन ऋचा या,
मैं कहूँ तुम हो शगुन।
मीत! मन की बाँसुरी पर
छेड़ते तुम प्रेम धुन।

पा,तुम्हें यह तप्त मन
शीतल हुआ।

लाभ-शुभ ने धर दिए हैं
द्वार पर दोनों चरण।
विश्व की सारी खुशी 
आकर करे अपना वरण ।

प्रश्न मुश्किल जिंदगी
 का 
हल हुआ।

मनोज जैन मधुर


टिप्पणीकार हरगोविन्द ठाकुर जी


दोनो कवि अलग अलग हैं किंतु दोनो गीतों में एक वायवीय सम्वन्ध और साम्यता है,जिस पर ओशो और लाओत्से के संदर्भ में देखे जाने की आवश्यकता है।
दोनों गीत दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े है,दो विंदु हैं लेकिन दोनो को मिला दें तो पहली ज्यामितीय आकृति रेखा बन जाती है।
दोनो गीतों में भले अनजाने ही सही लेकिन ओशो और लाओत्से के विचार लक्षित होते हैं।
ओशो कहते है कि स्त्री सीधे सीधे पुरुष की शासिका नही बनती,वह दासी बन जाती है फिर  समर्पण करते ही वह रानी की भूमिका में होती है।(संदर्भ-ताओ उपनिषद, प्रवचन संख्या 119-ओशो)
लाओत्से इसे दूसरी तरह से कहते हैं,वे कहते हैं कि स्त्री और पुरुष का विभाजन केवल यौन विभाजन या sex division नही है बल्कि यह जीवन की dialectics है और dialectics evolution के बिना जीवन का विकास संभव नही है।दरअसल female gender प्राथमिक स्वभाव है।आपने महसूस किया होगा कि 5-6 तक के लगभग  सभी बच्चे,लड़कीं जैसे ही लगते हैं।
इसी से पुरुष का जन्म होता है।
दोनो गीतों की ओर पुनः लौटते हुए,अगर पहले भूमिका जैन का गीत पढ़ा जाये फिर मनोज जैन जी का गीत पढ़ा जाये तो ओशो और लाओत्से के विचारों की भावनात्मक छाया इन गीतों में मिलेगी।
----हरगोविन्द ठाकुर
----ग्वालियर
----7067545420

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